पूर्व पत्रकार बालाकृष्णन ने ऐसे खरीदी दाऊद इब्राहिम की संपत्ति
आपने नीलामी में भाग क्यों लिया?
दाउद की संपत्तियों की हुई पहली नीलामी में मैं सेवानिवृत नहीं होने के कारण हिस्सा नहीं ले पाया था। इसलिए जब मैंने इसके बारे में सुना तो मुझे लगा कि मुझे बोली लगानी चाहिए।
क्या इससे पहले आपने उसकी किसी भी संपत्ति को हासिल करने का प्रयास किया था?
उसकी संपत्ति को सरकार उपयोग के लिए परिवर्तित करने या मेरे एनजीओ की खातिर मुझे देने के लिए मैंने मनमोहन सिंह और चिदंबरम को लिखा था। नई सरकार के आने से चीजें आगे बढीं।
क्या आपने बोली के 4 करोड़ पार कर जाने की उम्मीद की थी?
नहीं। नीलामी में मैंने 4 करोड़ 28 लाख रुपये पर बोली जीती। मेरे पास सिर्फ 30 लाख रुपये शुरुआती जमानत राशि थी।
आप इतनी रकम कैसे इकट्ठा कर पाएंगे?
मेरा देशभक्ति में विश्वास है। अकेले एक वड़ा पाव बेचने वाले ने 5000 रुपये देने की पेशकश की, मेरा भतीजा 1000 रुपये देना चाहता है, जो एक छोटी मदद है, पर बहुत अहम है।
आप उस संपत्ति के साथ क्या करेंगे?
हम उस जगह पर लैंगिक न्याय और बच्चों में नशे की लत से बचाव के लिए एक केंद्र की शुरुआत करना चाहते हैं।
क्या आप डरे हुए हैं, क्या आपको धमकाया गया है?
नहीं, लेकिन मुझे धमकाया गया था। दाऊद भले ही पाकिस्तान भाग गया हो लेकिन भारत में उसके व्यवसायिक हित मौजूद हैं।
आपकी पत्रकारिता के दौर में दाऊद को किस तरह से देखा गया था?
वर्दराजन मुदलियार, करीम लाला और हाजी मस्तान की मौत के बाद अंडरवर्ल्ड में एक खालीपन आ गया था। दाऊद ने उस जगह को भरा। जब तक वह डॉनगिरी करता रहा तब तक खतरनाक था। लेकिन सिर्फ तभी तक।
क्या कभी दाऊद को वापस लाया जा पाएगा?
नहीं, अगर उसने अपना मुंह खोल दिया तो वह आईएसआई के लिए बहुत बड़ा खतरा होगा। वह लोग उसे वहीं मार देना बेहतर समझेंगे।
लेकिन हम अबू सलीम और छोटा राजन के मामले में सफल हुए।
दाऊद का मामला उन सबसे बिल्कुल अलग है।
आप क्या संदेश भेजना चाहते हैं?
यही कि अब हम दाऊद से जरा भी नहीं डरते हैं। पाकिस्तान में बैठा कोई व्यक्ति हम पर शर्तें नहीं थोप सकता ।