गर्भपात नियम में संशोधन, कानूनी रूप से अब 24 सप्ताह की मियाद
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गर्भपात कराने के लिए अधिकतम 20 सप्ताह की सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह करने की अनुमति दे दी है। कैबिनेट ने ऐसा करते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में बदलाव कर दिया है। समय सीमा को बढ़ाने को लेकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 20 सप्ताह में गर्भपात कराने पर मां की जान जाने के कई मामले सामने आए। इसके बाद पाया गया कि इसकी सीमा बढ़ाई जानी चाहिए। उनका कहना है कि 24 सप्ताह में गर्भपात कराना सुरक्षित होगा और ऐसा करने से बलात्कार पीड़िताओं या दुष्कर्म की शिकार नाबालिग बालिकाओं को मदद मिलेगी। अब इसके लेकर आने वाले संसद सत्र में बिल पेश किया जाएगा।
सालों से थी समय बढ़ाने की मांग
मंत्रिमंडल की बैठक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई। पहले कानूनी रूप से यदि कोई महिला किसी कारणवश गर्भपात कराना चाहती थी तो वह 5 महीने या 20 हफ्ते तक ही गर्भपात करवा सकती थी। यह समय बीत जाने पर कानूनी रूप से गर्भपात नहीं कराया जा सकता था। भारत सरकार ने 1971 में ‘एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी) एक्ट’ बनाया था जिसके तहत कोई भी महिला 20 हफ्ते (5 महीने) तक गर्भपात करा सकती थी।
एमटीपी की समय सीमा बढ़ाने की मांग कई सालों से चल रही थी। महाराष्ट्र की एक महिला ने इस अवधि के बाद गर्भपात कराने के लिए अदालत का रुख किया था। उस महिला को 22 हफ्ते बाद पता चला था कि भ्रूण ठीक से विकसित नहीं है और बच्चा गंभीर शारीरिक बीमारियों के साथ पैदा होगा।
नियम बदलने में लग गया लंबा वक्त
इसके बाद 2014 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट में संशोधन के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया था। ड्राफ्ट में, इस अवधि को 24 महीने तक बढ़ाने की बात की गई थी। साथ में यह भी कहा गया था कि ऐसा तभी हो जब बच्चे या मां को कोई खतरा हो। लेकिन इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके थे।
कुछ चिकित्सकों का मानना है कि गर्भावस्था के दौरान कई ऐसे मामले आते हैं जब 20 हफ्तों के बाद ही पता चलता है कि भ्रूण का मस्तिष्क या रीढ़ ठीक से विकसित नहीं हो पा रहा है। इससे बच्चे में स्थायी अपंगता का खतरा रहता है।