क्या है हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा जिसकी ट्रंप से लेकर ब्राजीली राष्ट्रपति ने की भारत से मांग
कोरोना वायरस का संकट दुनिया पर लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बीच हर देश इससे निपटने के लिए हर जरूरी कदम उठा रहा है। साथ ही अन्य देश भी बातचीत कर एक-दूसरे से मदद की मांग कर रहे हैं। भारत भी अधिक प्रभावित देशों को हर संभव मदद दिए जाने की भी बात कह रहा है। कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने के साथ ही हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन टेबलेट चर्चा में आ गई है। इसकी चर्चा पूरी दुनिया में तब और बढ़ गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस टेबलेट की मांग की। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) टेबलेट्स मुहैया कराने का अनुरोध किया है। अमेरिका के बाद ब्राजीली राष्ट्रपति जेर बोलसोनारो ने भारत से मदद मांगी और इस दवा की तुलना हनुमान द्वारा लाई गई संजीवनी से कर दी। जानलेवा कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा की मांग अचानक काफी बढ़ गई है। आइए सबसे पहले जानते हैं कि क्या है यह दवाई और किस काम आती है। साथ ही ये भी जानेंगे कि आखिर इस दवाई की मांग अचानक क्यों बढ़ गई-
क्या है हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीइन
भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन का उत्पादन करती हैं। मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन बेहद कारगर दवा है। भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं, इसलिए भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका जैसे देशों में यह दवा कोरोना वायरस के मरीजों को दी जा रही है और सहायक भी साबित हो रही है। इसी वजह से न सिर्फ अमेरिका में बल्कि अन्य देशों में इसकी मांग बढ़ गई है।
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन के साइड इफेक्ट भी हैं
इस दवा के बारे में फिजिशियन और दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि यह दवा फिलहाल उन्हें ही दी जा रही है जो कोरोना से संक्रमित हैं। क्लोरोक्वीन दवा शुरुआत में मलेरिया के लिए आई थी। हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन उसी दवा का एडवांस वर्जन है। अब तक की जांच में यह साबित हुआ है कि यह दवा कोरोना के इलाज में कुछ हद तक कारगर है। बचाव के अलावा अभी इस बीमारी का कोई और इलाज नहीं है, इसलिए यही दवा उपयोग में ली जा रही है। लेकिन, इसके साइड इफेक्ट भी हैं, ऐसे में बिना डॉक्टर की सलाह के इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन नहीं मिलने के कारण लोग क्लोरोक्वीन को कर रहे हैं स्टोर
डॉक्टर बंसल ने बताया कि इस दवा के साइड इफेक्ट किडनी फेल होना, उल्टी आना और स्किन से संबंधित है। साथ ही डॉक्टर बंसल ने ये भी बताया कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन नहीं मिलने के कारण लोग जरूर क्लोरोक्वीन को स्टोर कर रहे हैं लेकिन कोरोना के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन ही कारगर है ना कि क्लोरोक्वीन।
क्यों दी जा रही है कोरोना मरीजों को यह दवा
डॉक्टर अनिल ने बताया कि हालांकि ये दवा एंटी मलेरिया ड्रग क्लोरोक्वीन से थोड़ी अलग दवा है। यह एक टेबलेट है, जिसका उपयोग ऑटोइम्यून रोगों जैसे कि आर्थराइटिस के इलाज में किया जाता है, लेकिन इसे कोरोना से बचाव में इस्तेमाल किए जाने की बात भी सामने आई है।
बाजार में आसानी से नहीं मिल पा रही है ये दवा
बाजार से हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन के गायब होने के बारे में पूछे जाने पर एक फार्मासिस्ट ने बताया कि सामान्य तौर पर हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन का 10 टेबलेट का एक रैपर करीब 100 रुपये का मिलता था। लेकिन, अचानक बढ़ी मांग का असर यह हुआ कि अब 100 रुपये में एक टेबलेट भी नहीं मिल रही है। मेडिकल स्टोर से यह टेबलेट लगभग पूरी तरह से गायब दिख रही है। इसकी वजह यह भी है कि पहले जहां दिनभर में पूरे शहर में इसकी खपत 100 टेलबेट से ज्यादा नहीं थी, वहीं अब हजारों लोग यह टेबलेट लेने मेडिकल स्टोर पर पहुंच रहे हैं। न सिर्फ हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन बल्कि क्लोरोक्वीन टेबलेट भी आसानी से बाजार में उपलब्ध नहीं है। बताया जा रहा है कि लोगों ने हाईड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के बाजार से गायब होने के बाद क्लोरोक्वीन को स्टोर करके रखना शुरू कर दिया है।
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा का सबसे बड़ा उत्पादक है भारत
भारत ने मंगलवार को कहा था कि जिन देशों को इस दवाई की सख्त जरूरत है और जहां कोरोना वायरस के मामलों का असर काफी ज्यादा है वहां कुछ निश्चित दवाइयों की सप्लाई की जाएगी। भारत मलेरिया के इलाज में उपयोग होने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का सबसे बड़ा उत्पादक है। इस दवा को अब कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में पासा पलटने वाला माना जा रहा है।
क्या है स्थिति?
इंडियन फार्मास्यूटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन का कहना है कि दुनिया में आपूर्ति होने वाली कुल हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन में भारत की हिस्सेदारी 70 फीसदी है। देश में हर महीने 40 टन हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) उत्पादन की क्षमता है। यह 200-200 एमजी के करीब 20 करोड़ टैबलेट के बराबर बैठता है। चूंकि इस दवा का उपयोग रूमेटाइड आर्थराइटिस जैसी 'ऑटो इम्यून' बीमारी के इलाज में भी किया जाता है, इसके कारण मैन्यूफैक्चरर्स के पास उत्पादन क्षमता अच्छी है जिसे वे कभी भी बढ़ा सकते हैं।
जानें कौन सी कंपनियां करती हैं इस दवा का उत्पादन
इपका लैबोरेटरीज, जाइडस कैडिला और वालेस फार्मास्यूटिकल्स शीर्ष दवा कंपनियां हैं जो देश में एचसीक्यू का विनिर्माण करती हैं। जैन ने कहा कि भारत में मौजूदा मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता पर्याप्त है। अगर जरूरत पड़ती है तो कंपनियां उत्पादन बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं।
ट्रंप को क्यों चाहिए हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन (HCQ)?
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोरोना वायरस के संक्रमण पर इस दवा ने असर दिखाया है। यही वजह है कि बार-बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस दवा के लिए भारत की मदद चाहते हैं, जो मिल भी गई है। भारत इसका बड़ा एक्सपोर्टर है। मार्च में इसके निर्यात पर बैन लगा दिया गया था। अब भारत ने इसके लिए हां कह दी है। कोरोना वायरस की मार से बेहाल अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका ने 29 मिलियन दवा की डोज खरीदी है।
इस दवा पर भारत ने लगा दी थी पाबंदी
भारत ने 25 मार्च को एचसीक्यू के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी, जिसके बाद अब सरकार ने कोविड-19 से फैले संक्रमण से निपटने में इस्तेमाल होने वाली दवाओं- पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन (HCQ) के निर्यात पर लगी रोक हटाते हुए दोनों को लाइसेंस वाली कैटिगरी में डाल दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी के बाद यह फैसला लिया गया। भारत सरकार यह संकेत दे चुकी है कि कोरोना से जंग में जिन देशों को मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली इस दवा की जरूरत होगी, उनकी मदद की जाएगी। ऐसे में फार्मा कंपनियों ने इस दवा का प्रॉडक्शन कई गुना करने का फैसला किया है।