विश्व अस्थमा दिवसः दिनोंदिन बढ़ रही है मरीजों की संख्या; जागरूकता जरूरी, जानें क्या हैं लक्षण और उपाय
मौजूदा समय में वायु प्रदूषण को देखते हुए अस्थमा के रोगियों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस बीमारी से छोटे बच्चों से लेकर वयोवृध्द जन तक प्रभावित हो रहे हैं। अस्थमा विरोध की जागरूकता के लिए इसे पूरे विश्व में दमा दिवस के तौर पर मई महीने के पहले मंगलवार को मनाया जाता है। अस्थमा संक्रामक बीमारी नहीं है और यह किसी भी उम्र में हो सकता है। दमे को लेकर मरीजों में कई तरह की गलतफहमियां भी है। अगर समय रहते दमे के लक्षणों पर ध्यान दिया जाए को काफी हद तक इससे बचा जा सकता है।
अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जो आम तौर पर एलर्जी से जुड़ी हुई है। अस्थमा के महत्वपूर्ण कारकों में वातावरण में धूल, धुआ जैसे कण हमारे सांस लेने के साथ ही हमारी श्वास नली में पहुंच जाते हैं और व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। यही स्थिति आगे चलकर धीरे-धीरे अस्थमा का रूप ले लेती है। अस्थमा रोग की सही पहचान के लिए व्यक्ति का पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट बहुत जरूरी होता है और इसी टेस्ट के जरिए व्यक्ति में अस्थमा की पहचान की जाती है।
चेस्ट फिजिशियन डा आर के गर्ग का कहना है कि दमा एक ऐसी बीमारी है जिसे श्वसन मार्ग के प्रदाह और श्वसन मार्ग के संकुचित हो जाने से पहचाना जाता है। उनका कहना है कि हालाकि दमे को हम ठीक नहीं कर सकते लेकिन दवाओं के जरिए इसकी रोकथाम की जा सकती है। दमे वाले व्यक्ति को दवा का उचित रूप से पालन करना चाहिए। साथ ही जीवनशैली में बदलाव भी जरूरी है।
डा गर्ग बताते हैं कि दमे के लक्षणों में खांसी आना, सांस फूलना, व्यायाम करते समय सांस का फूलना, घरघराहट शामिल है। उनका कहना है कि अधिकतक दमे वाले व्यक्ति को ऐसे लक्षण होते हैं कि दिन की अपेक्षा रात में काबू से बाहर अधिक होता है।
उन्होंने कहा कि दमे के बारे में यह गलत धारणा है कि दमा लगातार रहने की बजाय बीच-बीच में ठीक होने के बाद फिर से होता रहता है। कई मरीजों का कहना है कि मुझे दमा तभई होता है जब मेरी सांस में घबराहट होती है। वैसे मैं ठीक रहता हूं, यह सच नहीं है। डाक्टर गर्ग का कहना है कि दमा पूरे जीवनकाल रहने वाली बीमारी है। आप दमे को कुछ समय के लिए शांत कर सकते हो, पूरी तरह ठीक नहीं कर सकते।
डाक्टर गर्ग कहते हैं कि दमे के बारे में एक और ग़लतफ़हमी है कि मरीजों को लगता है कि वे अब व्यायाम या शीरीरिक कामकाज नहीं कर पाएंगे लेकिन इलाज हो तो दमा रोगी स्वस्थ्य रह सकते हैं। उन्होंने बताया कि बीमारी को फेफरों के कामकाज का मापन कर जांचा जाता है जिसके लिए एक सहज सी सांस की जांच करनी होती है जिसे स्पाइरोमेट्री कहते हैं। जांच के बाद ही श्वसन मार्ग के अवरोध का पता चलता है।
फेफडों के कामकाज और लक्षणों के आधार पर, दमे को हल्के, मध्यम या तीव्र स्तरों के तौर पर श्रेणीबद्धकिया जाता है। दमे के 70 फीसदी मरीजों में दमे का कारण एलर्जन्स होते हैं, दमे के कुछ मरीजों मरीजों में दमा कुछ जलनकारी कारकों की वजह से होता है जैसे धुआं,, फ्यूम, या परफ्यूम. श्वसन संक्रमण जैसे कि वायरल संक्रमण के कारण भी दमा भड़क सकता है। पालतू जानवरों से एलर्जी के कारण भी बढ़ दमा बढ़ जाता है।