आयुर्वेद का 'उद्योगीकरण’
प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति 'आयुर्वेद’ पर बाजार की निगाह जब से पड़ी है, यह अब उद्योग में बदलने लगा है। इस पुरातन पद्धति ने पश्चिमी देशों का ध्यान खींचना शुरू किया है। अब वाणिज्यिक कंपनियां बड़े पैमाने पर कारोबार की संभावना देख रही हैं। दूसरी ओर, सरकारी स्तर पर मान्य चिकित्सा पद्धतियों के समकक्ष इसे रखा जाने लगा है। हाल ही भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद को लेकर जिस तरह से दो फैसले लिए हैं उनसे स्पष्ट है कि आयुर्वेद के अनछुए हजारों करोड़ के कारोबार तक पहुंचने की होड़ बड़े पैमाने पर शुरू होने वाली है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक अप्रैल से फैसला किया है कि नई आयुर्वेदिक औषधियों को बाजार में उतारे जाने के पहले कड़े चिकित्सकीय परीक्षण से गुजारा जाएगा। दूसरा निर्देश आयुर्वेदिक अस्पतालों के बारे में है। 'द नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पीटल्स एंड हेल्थकेयर्स प्रोवाइडर्स (एनएबीएच)’ ने आयुर्वेदिक अस्पतालों को मान्यता देने के मापदंड तय करने की कवायद शुरू की है। आयुष मंत्रालय जल्द ही इसके बारे में निर्देश जारी कर सकता है। इस बारे में जाने-माने अस्पतालों, अन्य चिकित्सा प्रतिष्ठानों और आयुर्वेदिक कंपनियों से जुड़े लोगों- विशेषज्ञों- के सुझाव मंगाए गए हैं।
सारी तैयारी इस बात के मद्देनजर है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की मांग जबरदस्त तौर पर बढऩे वाली है। भारत में आयुर्वेद को मान्य दवा प्रणाली (ओआरएस) पहले ही घोषित किया जा चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे 'ट्रेडीशनल मेडिसिन’ (टीआरएम) की मान्यता दे रखी थी। अब इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्य चिकित्सा प्रणाली की मान्यता दिए जाने के बारे में डब्ल्यूएचओ सोच रहा है।
आयुर्वेद का अभी का बाजार नौ हजार से 12 हजार करोड़ रुपये का माना जा रहा है और इसमें सालाना 15-20 फीसद की रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है। अगले 10 साल में यह कारोबार बढक़र तीन गुना तक पहुंच जाएगा। बाजार में 30 हजार ब्रांडेड प्रॉडक्ट और 15 सौ पारंपरिक उत्पाद उपलब्ध हैं। सीआईआई के अनुसार, भारत में अभी सालाना 10 हजार करोड़ रुपये की आयुर्वेदिक औषधियां बनाई जा रही हैं, जिनमें से तीन हजार करोड़ की औषधियों को निर्यात किया जा रहा है। निर्यातित औषधियों में 60 फीसद जड़ी-बूटियां हैं और 30 फीसद दवाओं की शक्ल में।
देश का आयुर्वेदिक बाजार बिखरा हुआ है। 10 हजार से ज्यादा उत्पादक इकाइयां हैं। इनमें से अधिकतर कुटीर उद्योग। पिछले कुछ वर्षों में 30 कंपनियां मैदान में उतरी हैं। आयुर्वेद बाजार में चर्चित और बड़ी खिलाड़ी डाबर इंडिया, श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन, झंडू फार्मास्यूटिकल्स, दीनदयाल, हिमालय ड्रग कंपनी, मेघदूत, जी लैब जैसी कंपनियों के उत्पाद 85 फीसद बाजार पर कब्जा जमाए हुए हैं। 'आयुर्वेदिक ड्रग मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 'फिलहाल, भारतीय आयुर्वेद उद्योग में हर साल एक हजार करोड़ रुपये के औषधीय पौधों की खपत होती है। वजन के हिसाब से एक लाख 53 हजार टन किलोग्राम जड़ी-बूटियां 960 औषधीय पौधों से इंतजाम की जाती हैं।’ अब आयुर्वेदिक औषधि निर्माता कच्चे माल (जड़ी-बूटियों) की गुणवत्ता परखने का मेकेनिज्म भी विकसित करने पर जोर दे रहे हैं। कॉस्मेटिक्स के क्षेत्र की अग्रणी इमामी समूह द्वारा कुछ अरसा पहले अधिग्रहीत की गई कंपनी झंडू फार्मास्यूटिकल्स जिन योजनाओं के साथ रीलांचिंग की तैयारी कर रही है, गुणवत्ता का मेकेनिज्म विकसित करना भी उनमें से एक है। झंडू फार्मास्यूटिकल्स के निदेशक हर्ष अग्रवाल कहते हैं, 'हमारा हेल्थकेयर पोर्टफोलियो 20-25 फीसद हर साल की दर से बढ़ रहा है। हम इस बढ़त को जारी रखेंगे।’
आयुर्वेदिक औषधियों के लिहाज से श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन को सबसे बड़ा निर्माता माना जाता है। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सात सौ से ज्यादा फॉर्मूलेशंस इस कंपनी के हैं। वैद्यनाथ कंपनी के कपिल राय कहते हैं, 'अब यह कंपनी मंत्रा हर्बल नाम से हर्बल ब्यूटी प्रोडक्ट ला रही है। इसे 21वीं शताब्दी के उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।’ मेघदूत आयुर्वेदिक के प्रबंध निदेशक विमल शुक्ला कहते हैं, 'खादी ग्रामोद्योग जगत में आयुर्वेदिक औषधि बनाने वाला पहला संस्थान है। हम इस साल 10 नई औषधियां बाजार में उतारने जा रहे हैं।’
आयुर्वेदिक औषधियों के क्षेत्र में 'दीनदयाल औषधि’ की बाजार में ठीक-ठाक हिस्सेदारी मानी जाती है। दीनदयाल समूह के वाइस प्रेसीडेंट जयकुमार सूचक के अनुसार, 'इस वित्त वर्ष में हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पैठ बढ़ाने जा रहे हैं। कई विदेशी एजेंसियों से बात चल रही है।’ वह कहते हैं, 'दीनदयाल औषधि 1927 से काम कर रही है। दो उत्पादन इकाइयां हैं, जहां कड़े नियमों का पालन किया जाता है। यह आईएसओ और जीएमपी प्रमाणित कंपनी है।’
आयुर्वेदिक उत्पादों की गुणवत्ता और बाजार में मांग के बीच चल रही बहस के मद्देनजर ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) के तहत आयुर्वेदिक फार्मा कंपनियों को लाए जाने की भी बात उठ रही है। अभी एक भी आयुर्वेदिक कंपनी इसके तहत नहीं आती। इस बारे में भी जल्द ही नीतियां आने वाली हैं। इस लिहाज से भारतीय आयुर्वेदिक औषधि निर्माण के बाजार में अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी बड़ी संभावनाएं देख रही हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनी 'नोवार्टिस इंडिया’ के एक आला अधिकारी के अनुसार, लोग अब अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए दवाएं ले रहे हैं। नोवार्टिस इंडिया भारत में रिसर्च एंड डेवलपमेंट का केंद्र खोलने की योजना पर काम कर रही है।
भारत सरकार ने अपनी 12वीं योजना में आयुर्वेद उत्पादों को अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोपीय देशों के मानकों के हिसाब से तैयार कराने के लिए कई मापदंड बनाने शुरू किए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से औषधीय पौधों को उगाने से लेकर दवाएं बनाने तक के मापदंड तैयार किए जा रहे हैं। 'आयुष क्लस्टर’ की योजना के तहत 10 करोड़ रुपये की लागत से केंद्र खोलने की योजना इसी मापदंड के तहत तैयार की गई है। रोचक तथ्य यह है कि आयुर्वेद के शोध एवं विकास के लिए संयुक्त उपक्रम के तहत विज्ञान व तकनीकी विभाग ने भी योजनाएं बनाई हैं। यह वैश्विक योजना है।
भारत में 60 फीसद पंजीकृत चिकित्सक एलोपैथी से इतर प्रणाली पर काम करते हैं। चार लाख आयुर्वेदिक प्रैक्टीशनर हैं। गांवों में कई आर्वेदिक चिकित्सक काम कर रहे हैं, जो रजिस्टर्ड नहीं हैं। ऐसे वैद्यों को भी केंद्रीयकृत प्रणाली के तहत लाए जाने की योजना जरूरत बताई जा रही है। वजह, आयुर्वेद अब मेडिकल-टूरिज्म के लिहाज से भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। खासकर, विदेशियों में। सीआईआई-मैकिंजे की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 तक मेडिकल टूरिज्म में आयुर्वेद की हिस्सेदारी 20 लाख डॉलर की होगी। देश में कुल आंकड़ा 33.3 लाख डॉलर का बताया जाता है। पिछले वित्तीय वर्ष में भारतीय आयुर्वेदिक कंपनियों को मेडिकल टूरिज्म से आठ हजार करोड़ रुपये की कमाई हुई है। भारत दुनिया में औषधीय जड़ी-बूटियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और शायद इसीलिए इसे 'बोटेनिकल गार्डेन ऑफ द वर्ल्ड’ यानी 'विश्व का वनस्पति उद्यान’ कहा जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर करीब 25 हजार पौधों में से महज 10 फीसदी को ही औषधीय कार्यों के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। भारत में पारंपरिक औषधीय पौधों की भरमार है। औषधीय पौधों के गुणों को संहिताबद्ध (कोडिफाइड) करने की भारतीय प्रणाली में तकरीबन 1,800 प्रजातियों को दस्तावेजीकृत (डॉक्यूमेंटेड) किया गया है। दुनियाभर में औषधीय पौधों के गुणों को संहिताबद्ध (कोडिफाइड) करने की भारतीय प्रणाली को समझा जा रहा है और अनेक देशों में इसे वैधता हासिल हो रही है। ऐसे में वैश्विक बाजार में भारतीय हर्बल मेडिसिन की हिस्सेदारी बढ़ सकती।
2050 तक छह खरब डॉलर का बाजार
अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में अरसे तक पारंपरिक औषधि विज्ञान को जटिल माना जाता रहा है। एक-एक जड़ी-बूटी पर खास ध्यान रहा। आज की तारीख में आयुर्वेदिक फॉर्मूले वाली औषधियों की मांग बढ़ रही है। विदेशों में तंत्रिका तंत्र चिकित्सा, स्त्री रोग, पाचन संस्थान, चपापचय की समस्या, जोड़ों और रीढ़ की हड्डियों के दर्द, श्वास रोग, एलर्जी, चर्मरोग समेत कई अन्य रोगों में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की मांग बढ़ रही है। वर्ष 1999 में जापान की 'टोयोमा मेडिकल एंड फार्मास्यूटिकल यूनिवर्सिटी’ में पारंपरिक औषधियों पर अंतरराष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया गया था। 'एनर्जी प्लांटेशन डिमॉन्सट्रेशन प्रोजेक्ट एंड बायोटेक्नोलॉजी सेंटर’, राजस्थान यूनिवर्सिटी, जयपुर के अश्विनी कुमार के शोधपत्र- 'आयुर्वेदिक मेडिसिंस, सम पोटेंशियल प्लांट्स फॉर मेडिसिन फ्रॉम इंडिया’- के मुताबिक, इस परिचर्चा में पारंपरिक औषधियों में व्यापक रोगनिदान क्षमता पाई गई। शोधपत्र के मुताबिक, भारत, मिस्र और सूडान में करीब 79 फीसदी ग्रामीण आबादी पारंपरिक औषधियों का इस्तेमाल करती है। भारत और चीन में हैजा और मलेरिया से ग्रस्त मरीजों में से करीब 60 फीसद आयुर्वेदिक विधि से रोगनिदान का तरीका अपनाते हैं। सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में तकरीबन 60 फीसद लोग पारंपरिक औषधियों का इस्तेमाल करते हैं। इन देशों में 17,000 के करीब रजिस्टर्ड हर्बल उत्पाद हैं।
एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक की रिपोर्ट के हवाले से सीआईआई के पदाधिकारी कहते हैं कि आयुर्वेदिक उत्पादों का मौजूदा बाजार 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है, जो सात फीसद सालाना की रफ्तार से बढ़ रहा है। 2050 तक यह बढक़र छह ट्रिलियन हो जाएगा। चीन के उत्पाद अभी वैश्विक बाजार में भारत की तुलना में आगे हैं लेकिन मेडिकल टूरिज्म में बढ़ोतरी के साथ ही भारतीय आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। न्यूयॉर्क, सैन-फ्रांसिस्को, मैड्रिड, पेरिस में कई कंपनियां अपने केंद्र खोलने लगी हैं। इंग्लैंड में आयुर्वेद के चिकित्सक और 'पक्का हर्ब्स’ ब्रांड के संस्थापक सेबेस्टियन पोल कहते हैं, 'उपभोक्ता अब प्राकृतिक उत्पाद चाहते हैं। बीमार पडऩे पर आयुर्वेदिक औषधियों की मांग इसी कारण बढ़ रही है।’
कोचीन में सीआईआई ने वर्ष 2010 में वैश्विक आयुर्वेदिक सम्मेलन आयोजित कराया था। तब इस उद्योग के 2050 तक छह खरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया था। भारत में 16 ऐसे कृषि क्षेत्र हैं, जहां आयुर्वेदिक औषधीय पौधों की 45 हजार प्रजातियां बहुतायत में उगती हैं। भारत से 3600 करोड़ रुपये की जड़ी-बूटियां निर्यात की जा रही हैं। भारत में 10 वेजिटेटिव जोन, 15 बायोटिक जोन, 426 बायोमास समेत 15,000 से ज्यादा पौधों की प्रजातियां हैं, जिनमें 7,000 आयुर्वेदिक पौधों की प्रजातियां हैं। दुनिया के 12 'मेगा बायोडायवर्सिफायड’ देशों में भारत की गिनती होती है।