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16 June 2015

‘ब्रूमबर्ग’ करेगा घर साफ

 

लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से पढ़ कर आए सम्राट गोयल ने जब अपने घर पर बताया कि वह एक कंपनी खोलना चाहते हैं तो सभी खुश हुए। लेकिन जब उन्होंने कहा कि वह दूसरों के घरों की सफाई का काम करेंगे तो उनकी मां लगभग रुआंसी हो गईं और उन्हें बड़ा अजीब लगा कि दूसरों के घर की सफाई करना भला कौन सा काम हुआ। जब सम्राट के दिमाग में घर की सफाई का विचार आया तो उन्हें सबसे पहले अपने बचपन के दोस्त ईशान बसोया का खयाल आया जो पढ़ने में व्यस्त थे। लॉ की डिग्री कर रहे ईशान ने सम्राट का विचार समझा और 'ब्रूमबर्ग’ की शुरुआत हो गई। यह सन 2013 की विदा का महीना था। लेकिन एक नई शुरुआत जन्म ले रही थी।

 

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आखिर यह ब्रूमबर्ग है क्या बला, यह समझाना तो और भी कठिन था। घर की सफाई तो इतना छोटा सा काम है जो घर पर महरी आसानी से कर देती है तो फिर जनाब आप क्या करेंगे इस सवाल से सम्राट और ईशान का साबका अब आए दिन पड़ने लगा था। ईशान कहते हैं, 'सफाई को लेकर एक और फंडा होता है कि दीपावली पर घर को खूब साफ किया जाता है। कोने-कोने को उजला करना बस उसी वक्त जरूरी है। या फिर जब घर में रंग-रोगन हो रहा हो!’ जब इतनी दिक्कतें थीं और पढ़ाई भी इससे अलग थी तो फिर घर साफ करने के बारे में ही क्यों सोचा, कुछ और काम भी तो किया जा सकता था। इस सवाल का जवाब सम्राट के पास है। क्योंकि पहले उन्होंने ही सोचा कि ऐसी कोई कंपनी शुरू की जा सकती है। सम्राट को ऐसे 'साफ-साफ’ विचार तब आए जब मुंबई में उनके भाई के घर आग लग गई। पूरे घर में कालिख का साम्राज्य था। घर का बहुत सारा सामान खराब हो गया था और जले सामान के कण घर के कोने-कोने में जम गए थे जिसे साफ करना मुश्किल भरा था। महरी ज्यादा से ज्याद फर्श के साथ थोड़ी-बहुत दीवारें साफ कर सकती थी। सम्राट कहते हैं, 'तब मुझे लगा कि यदि घर में और सफाई की जरूरत पड़े तो या तो आप खुद यह काम करें या फिर बाहर खड़े हो कर मजदूर की तलाश करें। जो कि इस काम के लिए प्रशिक्षित भी नहीं होगा। बस तभी मैंने तय किया कि भारत में ऐसी सफाई की सर्विस की सख्त जरूरत है। और हमने ब्रूमबर्ग कंपनी बना ली।’

 

 

इस कंपनी की शुरुआत के बाद सीखने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। सम्राट और ईशान ने यू ट्यूब पर सफाई के वीडियो देखे, इंटरनेट पर सफाई के बारे में पढ़ा और मॉल जा कर सफाई के जितने भी उपकरण, साबुन, पॉलिशिंग क्रीम और तमाम चीजें खरीद लाए। यह सोच कर कि पता नहीं क्या कब काम आ जाए। फर्श को साफ करने से लेकर शीशे चमकाने तक की सारी सुविधाएं उनके पास उपलब्ध थीं। इंटरनेट पर देखकर ही उन्हें पता चला कि डस्टर के कपड़े की चार तह कर सफाई करने से सफाई बेहतर होती है। इस कपड़े की तह करने का तरीका भी अलग है। शुरुआती दौर में 10 लाख रुपये का निवेश उन्होंने किया।

 

 

अब स्थिति बहुत कुछ साफ हो गई थी। क्या करना है यह दिमाग में साफ हो गया था, क्या सामान चाहिए, यह साफ तौर पर पता था, बस धूल जमी थी तो इस बात पर कि कैसे करना है। तीन महीने की भाग-दौड़ और समझ के बाद विचार पर से धूल हट कर वह चमकने लगा था। ईशान मानते हैं कि लोगों का दिमाग बनना जरूरी था। फिर आई स्टाफ रखने की बारी जिसे ट्रेनिंग दी जा सके और वह एक टीम की तरह काम करे। टीम बनाना ही सबसे मुश्किल काम है। ऑनलाइन प्रचार शुरू हुआ और सफाई टीम का हिस्सा बनने के लिए लोग आने लगे। सबसे जरूरी था कि इन्हें प्रशिक्षण दिया जाए और समूह का कोई भी सदस्य सफाई के काम को छोटा या दोयम दर्जे का न समझे। इसके बाद सभी सदस्यों का पुलिस सत्यापन ताकि जिनके घरों में सफाई के लिए ये लोग जाएं तो उनके प्रति घर के लोगों में अविश्वास न रहे।

 

 

इस सफाई की खासियत यह है कि जितना बड़ा घर है उस हिसाब से सदस्य जाते हैं। पूरे घर की धूल, जाले, कोने-कोने से साफ कर सामान को दोबारा करीने से जमाया जाता है। पंखे, झाड़फानूस, रसोई के डिब्बे, किताबों की अलमारी, बेतरतीब अलमारी, शौचालय, कबूतरों के हुड़दंग से गंदी हुई बालकनी, बच्चों की चित्रकारी से रंगी दीवारें आप बस सोच कर देखिए ब्रूमबर्ग की टीम उस जगह को चकाचक कर देगी। आप चाहें तो सारा घर साफ करा लें, चाहे तो सिर्फ पंखे, अलमारी या केवल सोफे ड्राइक्लीनिंग के लिए इनकी सेवाएं ले लें। ईशान कहते हैं, महरी या मजदूर की सफाई और हमारी सफाई में वैसा ही अंतर है जितना एक सर्विस सेंटर और मैकेनिक का अंतर होता है।

 

 

यह थोड़ा संवेदनशील विषय था फिर भी यह जानना जरूरी था कि क्या किसी खास वर्ग के सदस्य सफाई टीम का हिस्सा होते हैं। इस पर सम्राट-ईशान एक साथ कहते हैं, 'हम जाति या धर्म के आधार पर किसी को काम पर नहीं रखते। न ऐसी बातें यहां होती हैं। यहां जो पहले सफाई टीम में था उनमें से कुछ प्रशिक्षण टीम में चले गए हैं। हम प्रमोशन भी देते हैं और पर्क्स भी।’ पच्चीस सदस्यों की टीम को लेकर दिल्ली के ये दोनों छोरे हर घर को साफ-सुथरा बना देना चाहते हैं। चमकता हुआ सा एकदम स्वच्छ-स्वच्छ सा।    

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TAGS: broomberg, ishan basoya, samrat goyal, ब्रूमबर्ग, ईशान बसोया, सम्राट गोयल
OUTLOOK 16 June, 2015
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