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04 January 2016

हर किसी का फेफड़ा खराब नहीं: डॉ. नरेश त्रेहन

गूगल

इस तस्वीर में डॉ. त्रेहन ने हिमाचल 52 वर्षीय एक व्यक्ति और दिल्ली के 52 वर्षीय एक व्यक्ति के फेफड़ों की तुलना की थी। इसी तस्वीर को दिल्ली के प्रदूषण से जोड़ते हुए दिल्ली सरकार ने सम विषम फॉर्मूले के पक्ष में विज्ञापन जारी किया। हालांकि अब इसे लेकर बहस छिड़ी है कि क्या दिल्ली में हर किसी का फेफड़ा इतना ही खराब हो चुका है और क्या किसी सरकार के लिए इस तरह जनता के बीच डर फैलाना उचित है?

इस बारे में आउटलुक हिंदी से बातचीत करते हुए खुद डॉ. त्रेहन ने माना कि दिल्ली में हर किसी का फेफड़ा इतना खराब नहीं है। हालांकि उन्होंने यह मानने से इनकार किया कि यह विज्ञापन लोगों में अनावश्यक डर पैदा करेगा। उनका मानना है कि इस तस्वीर का इस तरह से किया गया इस्तेमाल गलत नहीं है क्योंकि इससे लोगों में जागरुकता तो फैलती ही है। डॉ. त्रेहन कहते हैं कि अगर इस विज्ञापन से प्रेरित होकर लोग कार पूल करने की ओर अग्रसर होते हैं तो इससे भी समाज का भला ही होगा। भले ही डॉ. त्रेहन इस विज्ञापन को डराने का प्रयास न मानें मगर लोग इसे उसी रूप में ले रहे हैं। केंद्र सरकार के कर्मचारी अमित कुमार कहते हैं कि इस विज्ञापन से ऐसा लगता है मानो दिल्ली में जो भी रह रहा है सबका फेफड़ा इतना ही खराब हो। प्रदूषण को दिखाने और उसके प्रति जागरूक करने के और भी तरीके हो सकते हैं। इस तस्वीर में जिस तरह का काला फेफड़ा दिखाया गया है वह किसी भी वजह से हो सकता है। अत्यधिक धूम्रपान के कारण भी ऐसा हो सकता है। इसे सीधे-सीधे प्रदूषण से जोड़ना ठीक नहीं है।

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TAGS: स्वास्‍थ्य, दिल्ली सरकार, प्रदूषण, विज्ञापन, फेफड़े, डॉ. नरेश त्रेहन
OUTLOOK 04 January, 2016
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