आयुर्वेद के घोड़े पर सवारी
इस समय आयुर्वेद हर मर्ज की दवा के रूप में उभर रहा है। इसे प्रचारित-प्रसारित और इसके बाजार में अंतरराष्ट्रीय विस्तार के लिए केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने सारे घोड़े खोल दिए हैं। आयुर्वेद को लेकर बड़े पैमाने पर कवायद में सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर आयुष मंत्री श्रीपद यासो नाइक शामिल हैं। आयुर्वेद के विकास के लिए रोड मैप तैयार किया गया है। तय लक्ष्यों के साथ केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारें आगे बढ़ रही हैं। इस सोच के तहत आयुर्वेद, योग, यूनानी आदि के सही विकास के लिए पहली बार अलग से आयुष मंत्रालय बना। इसके मंत्री श्रीपद यासो नाइक ने आउटलुक को बताया कि अगले दो साल में आयुर्वेद को दुनिया के नक्शे पर लाने का काम चल रहा है। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों का इलाज हमारे पास है।
अगले तीन महीने में नई आयुर्वेदिक दवाओं के लिए कड़े क्लिनिकल ट्रायल्स को अनिवार्य बनाया जा रहा है। इसके पीछे अमेरिका और यूरोपीय यूनियन का दबाव भी काम कर रहा है। पिछले दिनों पारंपरिक औषधि पर अमेरिका और भारत के बीच बने यूएस-इंडिया हेल्थ डायलॉग की दो दिन की कार्यशाला दिल्ली में आयोजित हुई। दिल्ली में हुई बैठक में आयुर्वेद सहित बाकी पारंपरिक दवाइयों, उत्पादों को गुणवत्ता को सुधारने और जांच के मापदंड की मांग अमेरिकी पक्ष में उठाई। यहां इस बैठक का इसलिए उल्लेख करना जरूरी है, क्योंकि भारतीय आयुर्वेद बाजार से किस तरह के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय हित जुड़े हुए हैं, इसका आभास होता है। योग के बाजार का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो सफलता हासिल की है, उसी दिशा में अब आयुर्वेद की तैयारी है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और राजस्थान के उदयपुर में संघ से संबद्ध स्कूल के प्रधानाचार्य सुरेंद्र स्वामी ने बताया कि आयुर्वेद और योग के फलने-फूलने से हमें भी फायदा है। आयुर्वेद के और अधिक कॉलेजों को खोले जाएंगे, संस्थान बनेंगे। इनमें कौन लोग जाएंगे, हम ही न। इस साल केंद्र सरकार ने 12 आयुर्वेद मेले भी आयोजित करने का फैसला किया है।
वैसे भी, कई प्लेयर्स इस समय आयुर्वेद में सक्रिय हैं। इसके साथ ही दिलचस्प परिघटना नेपथ्य में चल रही है। वह है आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा में अपनी पकड़ रखने वाले योग गुरुओं, आध्यामिक गुरुओं में राजनीतिक वर्चस्व हासिल करने की जबरदस्त होड़ लगी हुई है। राजनीतिक वरदहस्त हासिल करने के लिए भव्य-दिव्य आयोजन हो रहे हैं और प्रधानमंत्री सहित बाकी नेताओं के साथ अपनी नजदीकी के दावे किए जा रहे हैं। निशाना आयुर्वेद के करोड़ों रुपये के बाजार पर है।
केंद्र सरकार इन तमाम गुरुओं और बाबाओं के बीच इस आपसी होड़, व्यावसायिक स्पद्र्र्धा को और अधिक बढ़ाने के पक्ष में दिख रही है। राष्ट्रीय स्तर पर जरूर इसमें दो बड़े प्रतिद्वंद्वी उभरे हैं, बाबा रामदेव और श्रीश्री रविशंकर। इनमें भी अभी पलड़ा भारी रामदेव का है। वह अपने उत्पादों की मार्केटिंग में लंबे समय से काम कर रहे हैं। आलम यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के गांवों तक रामदेव की संस्था पतंजलि ने बड़ी संख्या में पपीते, बेल, जामुन आदि की खरीद को सुनिश्चित करने के लिए दूर-दराज में अपना नेटवर्क बना लिया है।
बाजार के विशेषज्ञ और इनक्रिएट वैल्यू एडवाइजर्स के प्रमुख मिलिंद सारवाटे का कहना है कि रामदेव की रणनीति बिल्कुल अलग है, इसलिए इतने कम समय में उसने तेजी से बढ़ते उपभोक्ता उत्पादों (एफएमसीजी) के बाजार के पांच फीसद हिस्से पर कब्जा कर लिया है। हालांकि यह भी सही है कि इसके उत्पादों पर गहरा संदेह जताया जाता रहा है लेकिन अपने दबदबे और राजनीतिक असर का इस्तेमाल करके यह उस संकट से बाहर निकल ही जाती है। पतंजलि के उत्पादों का विवादों से पुराना रिश्ता रहा है। इस बारे में जनता दल (यू) के सांसद के. सी. त्यागी ने बताया, कानून से ऊपर किसी को भी नहीं समझा जाना चाहिए। इस समय राजनीति और बाबाओं का जो गठजोड़ हो गया है, उसने आयुर्वेद की साख पर बट्टा लगा दिया है। हमने संसद में भी सवाल उठाया था कि पुत्रवर्धक दवाइयां बेचने वाली पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, यह कन्या भ्रूण हत्या के लिए माहौल बनाने और कन्या के जन्म के खिलाफ कदम है। अब इस बाजार में श्रीश्री रविशंकर भी बड़े पैमाने में उतर रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली में यमुना के तट पर विश्व सांस्कृतिक महोत्सव करके, अपने अंतरराष्ट्रीय कद की धमक रविशंकर ने दिखाई। अब वह भी अपने आयुर्वेद उत्पादों की पूरी शृंंखला बड़े पैमाने पर उतारने की तैयारी में हैं। बाजार के जानकारों का मानना है कि अब रविशंकर और रामदेव के उत्पादों के बीच कड़ी टक्कर शुरू हो जाएगी। रविशंकर अपने उत्पादों के लिए स्टोरों की संख्या को 600 से बढ़ाकर 2,700 करने जा रहे हैं। बिग बाजार वाले किशोर बियाणी से भी समझौता करने जा रहे है। वैसे अलग-अलग राज्यों में खासतौर से केरल, तमिलनाडु और पंजाब में आयुर्वेद और उससे जुड़े उत्पादों का खासा बाजार है। पिछले दिनों पंजाब और हरियाणा में प्रभाव रखने वाले गुरमीत राम रहीम ने 150 उत्पादों को लॉन्च किया। केरल की माता अमृतानंदमयी ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। साथ ही यह मांग भी उठ रही है कि आज हमें उन बाबाओं और धर्म गुरुओं से उपचार से सावधान रहने की जरूरत है, जो ऊल-जलूल दावे करते फिरते हैं। ये कहीं से भी पारदर्शी ढंग से इलाज नहीं करते। मरीज को कभी नहीं पता चलता कि उसे ञ्चया दवा दी जा रही है और उस दवा में क्या है। यह उपचार की वैज्ञानिक पद्धति नहीं है। आयुर्वेद का विज्ञान हैं और उसकी कद्र की जानी चाहिए।
दुनिया भर में गुंजाएंगे आयुष-श्रीपाद
केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद यासो नाइक का कहना है, 'आयुर्वेद में जबर्दस्त क्षमता है। इसका सही ढंग से प्रदर्शित करना जरूरी है। हम इसी दिशा में कदम उठा रहे हैं। कैंसर जैसी मारक बीमारियों का योग और आयुर्वेद में इलाज संभव है। इसे पर्याप्त शोध और तथ्यों के साथ दुनिया के सामने रखने की कोशिश है। हम बेंगलूरू के स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान गए थे, जहां योग आसनों के जरिये कैंसर जैसी बीमारियों को ठीक करने की बात सामने आई है। जब यह बात सौ फीसदी वैज्ञानिक आधार पर साबित हो जाएगी, तभी हम इसे आगे बढ़ाएंगे।’