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14 May 2015

वित्तीय मॉडल मीडिया की चुनौती

जेटली ने कहा, ‘डिजिटल माध्यम के पीछे क्या वित्तीय मॉडल है कि यह अभी तक संघर्ष कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में असामान्य बात यह है कि इसकी वितरण लागत, इसकी विषय वस्तु (कंटेंट) की लागत से अधिक है। वितरण की लागत लगातार बढ़ती जा रही है और कंटेंट की कीमत पर समझौता करना मजबूरी है क्योंकि जिस मात्रा में विज्ञापन उपलब्ध हैं, वह हमेशा ही स्थिर या आंशिक रूप से वृद्धि करने वाला है। उन्होंने कहा कि इस स्थिति में समाचार संगठन दर्शकों को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर सकते हैं, जिसका नतीजा खबरांे को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना और उनमें तीखेपन का आना हो सकता है।

उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में संगठन प्राथमिकताओं को कायम रखेंगे, जबकि कुछ अन्य समझौतों करेंगे और इस तरह पेड न्यूज (पैसे लेकर खबर छापना या दिखाना) की समस्या पैदा हो सकती है, जो खासतौर पर चुनाव के दौरान बहुत देखा जाता है। जेटली ने कहा, क्या कोई तरीका है कि हम इसे रोक सके या ब्रॉडकास्टिंग (कंटेंट) कंप्लेन काउंसिल इसे रोक सकता है, इस पर मुझे बहुत संदेह है। उन्होंने कहा कि करीब डेढ़ दशक पहले उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि वाणिज्यिक अभिव्यक्ति भी स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्री भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित एक सेमिनार में एक संचार विश्वविद्यालय की स्थापना विषय पर बोल रहे थे, जहां बीसीसीसी प्रमुख न्यायामूर्ति मुकुल मुद‍्गल और सूचना एवं प्रसारण सचिव बिमल जुल्का भी मौजूद थे। जेटली ने कहा, अगर ब्रॉडकास्टिंग कंप्लेन काउंसिल पेड न्यूज के खिलाफ कार्रवाई के लिए आगे बढ़ता है तो जो लोग पेड न्यूज की मार्केटिंग कर रहे हैं वे उच्चतम न्यायालय के इस व्याख्या को अपने लिए सहायक मान सकते हैं क्योंकि यह वाणिज्यिक अभिव्यक्ति है।उन्होंने कहा कि यह फैसला विज्ञापन के संदर्भ में है। जेटली ने कहा कि हालांकि दर्शकों या पाठकों को यह निर्णय करने का अधिकार है कि कौन सा पहलू वास्तविकता के करीब है और यहां परंपरावादियों को पलटवार का मौका मिलता है।

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TAGS: Paid News, Media Houses, content transparency, BCCC, Justice Mudgal, Bimal Julka, IIMC
OUTLOOK 14 May, 2015
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