हिंदी वालों, कब तक पाखंड का हिस्सा रहोगेः नीलाभ अश्क
नीलाभ अश्क
मैं विष्णु खरे से कई बातों में मतभेद रखता रहा हूं, लेकिन उनके ताजा बयान से न सिर्फ सहमत हूं, बल्कि मजीद यह जोड़ना चाहता हूं कि उदय प्रकाश ने साहित्य अकादेमी पुरस्कार को अपनी एक कविता में "कुत्ते की हड्डी" क़रार देते हुए बड़ी बेशर्मी से अशोक वाजपेयी को, जिन्हें वे पहले बुरा-भला कह चुके थे, "देवता" का ख़िताब दे कर, स्वीकार किया था। उदय प्रकाश इस खेल के कुशल खिलाड़ी हैं और इसीलिए पुरस्कार लेने के बाद कुचर्चित होने के बाद उन्होंने इसे लौटा कर फिर चर्चित और सुर्ख़रू होने के मौक़े का फ़ायदा उठाया है। याद करें कि यह वही उदय प्रकाश हैं जिन्होंने योगी आदित्य नाथ से बड़ी बेशर्मी से पुरस्कार ले लिया था और मुखालिफत करने वालों को ब्राह्मणवादी क़रार दिया था, गो उनका विरोध करने वालों में ठाकुरों की तादाद भी काफी थी। यारो, हिंदीवालो, आप लोग कब तक इस पाखण्ड का हिस्सा बने रहोगे। श्री कालबुर्गी की हत्या के विरोध में प्रतीकात्मक विरोध दर्ज करने की बजाय कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है, क्योंकि खतरा सिर पर मंडरा रहा है। आप लोग पुरस्कार लेने-न लेने के विवादों में उलझे रहेंगे और उधर वे श्री कालबुर्गी जैसे लेखकों-विचारकों का सफाया करते रहेंगे (यहां से एक अंश मैंने हटा दिया है, क्योंकि उसका इस मुद्दे से कोई संबंध नहीं है)
इसलिए वे उदय प्रकाश जैसों की हिमायत न करें, जो अंग्रेज़ी कहावत के अनुसार "hunting with the hounds and running with the hares" की जीती-जागती मिसाल हैं..
उदय प्रकाश के बारे में विष्णु खरे का ताजा पत्र
हिंदी के लेखक उदय प्रकाश के साहित्यक अकादेमी पुरस्कार लौटाने पर थोड़ी ही देर पहले हिंदी के कवि विष्णु् खरे का यह पत्र ई.मेल से प्राप्त हुआ है और इसे छापने का आग्रह किया गया है। नीचें पढ़ें विष्णुा खरे जी की पूरी पाती ,मॉडरेटर-
मैं श्री उदय प्रकाश के साहित्यक विचारों वक्तव्यों कार्यों, मनःस्थितियों और कार्रवाइयों पर कुछ भी नहीं कहता हूं क्योंकि उसे भी वह उसी वैश्विक षड्यंत्र का हिस्सा मान लेंगे जो अकेले उनके खिलाफ मुसल्सल चल रहा है। किंतु मुझे उनका यह साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाना बिलकुल समझ में नहीं आया। अकादेमी और अन्य संदिग्ध पुरस्कारों पर मैं वर्षों से लिखता रहा हूं। कुछ पुरस्कारों को लेकर मेरी भी भर्त्सना हुई है। प्रस्तावित होने पर कुछ पुरस्कार मैंने लेने से इनकार भी किया है। मैं अकादेमी पुरस्कारों और प्रो. मल्लेशप्पा मदिवलप्पा कलबुर्गी की नृशंस हत्या के बीच कोई करण-कारण संबंध नहीं देख पा रहा हूं। यदि उदय प्रकाश साहित्य अकादेमी को केंद्रीय सरकार का एक उपक्रम मान रहे हैं और इस तरह मोदी शासन, भाजपा, आरएसएस, विहिप, बजरंग दल आदि को किसी तरह प्रो. कलबुर्गी की हत्या के लिए जिम्मेदार मानकर उसका विरोध कर रहे हैं तो 2011 के उनके पुरस्कार के पहले और बाद में भी सभी केंद्रीय सरकारें और उनके समर्थक कई हत्याओं और अन्य अपराधों के लिए नैतिक रूप से जिम्मेदार रहे हैं और होंगे। सच तो यह है कि केंद्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार अपने आप में वर्षों से इतना कुख्यात हो चुका है कि उसे स्वीकार ही नहीं किया जाना चाहिए। न कांग्रेस के शासन में न भाजपा के शासन में।
और भी विचित्र यह है कि डॉ दाभोलकर की हत्या 20 अगस्त 2013 को की गई थी और कॉमरेड गोविंद पानसरे को 20 फरवरी 2015 को मारा गया लेकिन ये दोनों कत्ल श्री उदय प्रकाश को इस योग्य नहीं लगे कि उनके प्रतिवाद में वह अकादेमी पुरस्कार लौटा दें। शायद उन्हें रघुवीर सहाय की तर्ज पर बता यह दिया गया था फिर एक हत्या होगी। लेकिन हत्याएं तो अनिवार्यतः और होंगी ही। सब हो लेने देते। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मैं उदय प्रकाश जी की इस कार्रवाई को an insult to intelligence समझने और प्रो.कलबुर्गी की हत्या को exploit करने जैसा मानने के लिए विवश हूं। यह एक तरह से उनका दूसरा कत्ल है। लेकिन कल 5 सितंबर को प्रगतिकामी-वामपंथियों की एक सार्वजनिक प्रतिवाद-सभा दिल्ली में है और संभव है उदय प्रकाशजी ने यह कार्रवाई एक उम्दा sense of timing के तहत आयोजकों का मनोबल बढाने के लिए की हो। तब यदि वह राजधानी में हों तो उन्हें बोलने के लिए बुलाया जाना चाहिए। बहुत असर पड़ेगा।
(साभार- जनपथ ब्लॉग)