व्हॉट्स ऐप पर साहित्यिक चर्चा
स्मार्ट फोन सिर्फ बतियाने या कहीं भी ईमेल या फेसबुक देख लेने से ज्यादा काम का है यह तो अब ऐसे फोन इस्तेमाल करने वाले हर व्यक्ति को पता है। तमाम एप्लीकेशन (सुविधाएं) इस पर मौजूद हैं। स्मार्ट फोन हो तो आप रास्ता नहीं भटकेंगे, मौसम का हाल जान पाएंगे, रेलवे की कई सुविधाएं आपकी एक क्लिक पर उपलब्ध रहेंगी और जितने एप्लीकेशन आप फोन पर डाउनलोड करते जाएंगे उतने स्मार्ट कहलाएंगे। इस दौर में इंसान भले ही बुद्धू हो फोन स्मार्ट होना जरूरी है। बातचीत के साधन से ऊपर उठ कर अब फोन पर साहित्यिक गोष्ठियां होने लगी हैं। आभासी संसार-ट्विटर और फेसबुक से इतर इसमें कोई भी पहचान छुपा कर किसी पर छद्म हमले नहीं कर सकता यह इसकी सबसे बड़ी ताकत है। इस गोष्ठी में कोई जरूरी नहीं कि किसी हॉल या पांडाल में सभी लोग इकट्ठे हों और साहित्यिक चर्चा हो। व्हॉट्स ऐप ने अब ऐसा मंच तैयार कर दिया है कि कई व्यक्ति एक समूह में जुड़ कर अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। यह रास्ता उस सुविधा से बना है जिसमें यह एप्लीकेशन समूह (ग्रुप) बनाने की सुविधा प्रदान करता है। संभवत: इंदौर में रहने वाले सत्यनारायण पटेल पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने व्हॉट्स ऐप पर ‘कथाकार’ नाम का समूह बनाया और पूरे भारत से कई लोगों को जोड़ा। ‘कथाकार’ में साहित्य विधा से जुड़े कई लोग जुड़े साथ ही कुछ पाठक भी जो रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते थे। ‘कथाकार’ में सिर्फ गद्य पर बात होती थी, तब सत्यनारायण पटेल ने ‘बिजूका’ नाम से एक और समूह बनाया और इस पर कविताओं के साथ अन्य समसामयिक विषयों पर भी बात होने लगी। समूह की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब ‘बिजूका’ के कई समूह हो गए हैं। ‘बिजूका – 1, 2,3 और 4,’ ‘बिजूका अमरावती’ और ‘बिजूका मुंबई।’ अब इस समूह की रोहतक शाखा खुलने जा रही है। इस समूह के एडमिन सत्यनारायण कहते हैं, 'जब से यह समूह बना है, मैंने कोशिश की है कि इस पर साहितत्येतर गतिविधि पोस्ट न की जाए। चुटकुले, हंसी-मजाक इस समूह पर पोस्ट नहीं की जाती है। अनुशासन की वजह से ही इस समूह की लोकप्रियता भी है और इससे जुडऩे की मांग भी।’
साहित्य को लेकर एक ऐसा ही समूह ‘रचनाकार’ चलाने वाली गीताश्री का समूह कई मायनों में बहुत खास है। ‘रचनाकार’ में कई देश से बाहर के सदस्य हैं, जो वहां की संस्कृति, कला और परिवेश की जानकारी समय-समय पर देते रहते हैं। ‘रचनाकार’ पर शुरूआती दिनों में गीताश्री ने एक अंत्याक्षरी और कविता को कवि की ही आवाज में सुनाने का एक सिलसिला चलाया था जो उस काफी लोकप्रिय हुआ था। कवि अपनी ही आवाज में अपनी कोई पसंदीदा कविता सुनाते थे और फिर उस कविता पर बात होती थी। अंत्याक्षरी का आलम यह रहता था कि शुक्रवार की शाम सदस्य अपने दूसरे कार्यक्रम इसके बाद का रखते थे। सभी इस एप्लीकेशन पर जुड़ कर अंत्याक्षरी का आनंद उठाते थे जिसे अनपरा में रहने वाली रेणु मिश्रा संचालित करती थीं। ‘रचनाकार’ की गीताश्री कहती हैं, 'यह ऐसा मंच है, जिसमें खुल कर अपने दिल की बात कही जा सकती है। यहां साहित्य पर भी बहस होती है और समकालीन विषयों पर भी। जो बहसें यहां उठती हैं, वह शायद हम आमने-सामने भी बैठे रहें तो नहीं उठ सकती।’ इसी समूह पर कथा वाचन का एक ब्लॉग ‘कॉफी हाउस’ चलाने वाले युनुस खान और ममता शर्मा अपनी कशिश भरी आवाज में हर रविवार किसी प्रसिद्ध कहानी का ऑडियो पोस्ट करते हैं और लेखक श्रोता बन कर उस कहानी का आनंद लेते हैं।
इन तमाम सुविधाओं के एक तार से जुड़ जाने के बाद भी कभी-कभी अनिश्चितता का फन उठ ही जाता है। कई सवाल हैं जो किसी भी पाठक या साहित्य से जुड़े व्यक्ति के मन में आ सकते हैं। इस एप्लीकेशन ने दुनिया जोड़ी जो पहले फेसबुक या ट्विटर पर जुड़ी हुई थी। इसका सटीक उत्तर देते हैं, ‘समालोचन लिटरेरी’ समूह के एडमिन अरुण देव। अरुण कहते हैं, 'व्हॉट्स एप ग्रुप एक सुरक्षित जोखिम है। यदि फेसबुक पर कुछ लिखा जाए तो इसके दूर तक फैलने के आसार रहते हैं और फेसबुक की किसी पोस्ट पर अनजान व्यक्ति भी आकर बेकार की बात लिख सकता है। लेकिन व्हॉट्स एप ग्रुप में छद्म नाम से कुछ नहीं हो सकता। जो है आपकी पहचान से है। पहले समूह में सदस्यों की संख्या पचास थी जो अब बढ़ा दी गई है, तब भी सौ से ज्यादा सदस्यों से ज्यादा यहां नहीं रखे जा सकते।’ अरुण देव मानते हैं कि साहित्य को इससे नई दिशा मिलेगी ऐसा कहना अभी जल्दबाजी है, क्योंकि स्मार्टफोन की पहुंच एक खास वर्ग तक है, सो वैचारिक बातें भी नियंत्रित हैं। फिर भी ऐसे समूहों से कम से कम साहित्य की बातें तो हो ही जाती हैं। दरअसल इस एप्लीकेशन पर साहित्यिक गतिविधियों ने जोर इसलिए पकड़ा कि मोबाइल हर वक्त आपके हाथ में है। जब भी कोई पोस्ट समूह में अवतरित हुई तो तुरंत उसे देखा जा सकता है। एक बार बहस चल पड़े तो फिर यह पक्ष-विपक्ष का सिलसिला दूर तक चला जाता है। व्हॉट्स ऐप में जितने भी समूह चल रहे हैं, उनमें अब कविता- कहानी से अलग सम सामयिक मुद्दों पर भी बात की जाने लगी है। भले ही वह जम्मू की योगिता यादव का ‘स्त्री सृजन’ हो या दिल्ली के भरत तिवारी का ‘शब्दांकन।’ ‘शब्दांकन’ और ‘समालोचन लिटररी’ ऐसे समूह हैं जिनकी इन्हीं नाम से एक ब्लॉग भी हैं। ‘शब्दांकन’ के एडमिन भरत तिवारी कहते हैं, 'ब्लॉग पर पोस्ट की गई किसी कहानी से ज्यादा अच्छा रेस्पांस व्हॉट्स ऐप पर आता है। यहां पाठक और लेखक सीधे तौर पर जुड़े रहते हैं। जैसे आप मैसेज देखते हैं, वैसे ही व्हॉट्स ऐप तुरंत प्रतिक्रिया देने की सुविधा प्रदान कता है।’ कई बार तुरंत प्रतिक्रियाओं से नुकसान भी होते हैं लेकिन इससे से बेखबर साहित्य रचने वाले इस एप्लीकेशन से लगातार संपर्क में रहते हैं।
लगभग साल भर पहले जब अनिल करमेले ने कविता पर आधारति समूह ‘दस्तक’ बनाया था तो उन्हें खुद भी अंदाजा नहीं था कि मित्रों के संदेशों और फोटो के आदान प्रदान की सुविधा देने वाले इस एप्लीकेशन के इतने फायदे हैं। अनिल करमेले कहते हैं, 'फेसबुक से इसकी तुलना बिलकुल नहीं हो सकती। यहां हम रचनाकर्मी जुड़ते हैं और मुद्दे पर बात करते हैं। समूह का एडमिन होने के नाते मैं किसी विषय को मूल मुद्दे से भटकने नहीं देता। मुझे लगता है कि साहित्य की विरासत को समझने के लिए भी यह अच्छा मौका है। हर व्यक्ति सभी पत्र-पत्रिकाएं नहीं पढ़ सकता। सभी रचनाकारों तक पहुंच नहीं बना सकता। लेकिन एक समूह के माध्यम से साहित्य की दुनिया पर नजर रखना यहां आसान हो गया है।’ जो खुद लिखते हैं उन्हें तो यह मंच सशक्त लगता ही है, लेकिन पाठकों को भी इसमें बराबर रुचि बनी रहती है। ‘स्त्री सृजन’ की एडमिन योगिता यादव कहती हैं, 'मैं ऐसे समूहों से संतुष्ट भी हूं और आशावान भी। पठन-पाठन पर इनमें अच्छा काम हो रहा है। मैंने अपने समूह में रंगमंच से जुड़े कलाकारों को भी रखा है, जो समूह अलग तरह से गति देते हैं। आखिर महिलाओं का अपना मंच होना ही चाहिए यही सोच कर इस समूह को मैंने बनाया।’ इस तरह के समूह में बहुत सी बातें अच्छी हैं तो कुछ कमियां भी हैं। इस मंच पर चूंकि सभी एक-दूसरे को जानते हैं या परिचय नहीं भी है तो कम से कम नाम और पहचान के बारे में कोई शंका नहीं है, इसलिए कई बार रचनाओं पर खुल कर बात नहीं हो पाती। लेखक और पाठक दोनों आलोचना से बचते हैं और खुदा न खास्ता कोई इतनी हिम्मत दिखा पाए तो बाकी या तो बीच का रास्ता खोजते हैं या चुप्पी साध लेते हैं। ‘रचनाकार’ समूह से जुड़े आलोचक अनंत विजय की छवि समूह में इसी तरह की है कि वह बहुत स्पष्टता और साफगोई से अपनी बात रखते हैं। कई बार यह स्पष्टता विवाद भी उत्पन्न करती है, लेकिन फिर भी समूह के सदस्यों को देश के साथ विदेश की साहित्यिकि सामग्री पढऩे को मिलती है, जो उन्हें बोनस लगता है। कई बार संकोचवश जो रचनाएं किसी पत्र-पत्रिकाओं में जगह नहीं पातीं या किसी रचना को लिखने के बाद लगता है, उसमें सुधार की गुंजाइश है तो भी इन समूहों पर काफी मदद मिलती है।