नई पीढ़ी को रमजान की रूह के करीब ला रहे हैं मोबाइल ऐप्स
गूगल-प्ले स्टोर पर ऐसे ढेरों मोबाइल एप्लीकेशन उपलब्ध हैं, जिनके जरिये रोजे की अनिवार्यताएं, रोजे की हालत में अपनाए जाने वाले तौर-तरीके, नमाज और तरावीह का तरीका, अजान की रूहानी टोन्स, खूबसूरत लिपि में लिखा कुरान शरीफ और उसका अनुवाद, नमाज के रिमाइंडर, विभिन्न परिस्थितियों में पढ़ी जाने वाली दुआओं समेत इस्लाम से जुड़ी तमाम जानकारियां मिलती हैं। युवा मुसलमानों में इसका काफी क्रेज देखा जा रहा है। गूगल-प्ले पर मुस्लिम प्रो, रमजान प्रो, रमजान नशीद, रमजान दुआज एंड अजकार, मुस्लिम कम्पेनियन और आई-मुस्लिम कुरान रमजान किबला समेत ऐसी 200 से ज्यादा एप्लीकेशंस मौजूद हैं, जिनसे रमजान के महत्व समेत इस पवित्र माह से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी मिल जाती है। आज की इंटरनेट की आदी पीढ़ी रोजों के दरम्यान सहरी, अफ्तार और नमाज के लिए मस्जिदों की अजान पर निर्भर रहने के बजाय मोबाइल एप्लीकेशंस का इस्तेमाल करते देखी जा रही है।
धर्मगुरुओं एवं इस्लामी विद्वानों का कहना है कि यह अच्छा चलन है, बशर्ते उन एप्लीकेशन में दी गई जानकारी इस्लामी तालीम से अलग या खिलाफ न हो। प्रमुख इस्लामी शोध संस्थान दारुल मुसन्निफीन शिबली एकेडमी के निदेशक प्रोफेसर इश्तियाक अहमद जिल्ली ने इस्लामी मोबाइल एप्लीकेशन के बढ़ते चलन के बारे में कहा कि अगर तकनीक से चीजों को समझने में मदद मिलती है तो कोई हर्ज की बात नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इंटरनेट के हाईवे पर इतना ज्यादा ट्रैफिक है कि क्या सही और क्या गलत है, इस बारे में पता लगाना मुश्किल है। ऐसे में उपयोगकर्ता को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। देश के प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने कहा कि युवा पीढ़ी और अन्य लोग अगर रमजान और इस्लाम को समझने के लिए मोबाइल एप्लीकेशंस का इस्तेमाल कर रहे हैं तो यह अच्छा है। इसमें कोई ऐब नहीं है। उन्होंने कहा कि इसमें बस एक खतरा है कि इंटरनेट पर ऐसे अनेक एप्लीकेशन भी हैं जिनमें अधकचरी जानकारियां दी गई हैं। ऐसे में जरूरी है कि युवा सिर्फ उनमें दी गई जानकारी पर ही न निर्भर रहें।