'लेस्बियन' के बाद विज्ञापन में अब 'लिव इन'
रेड लेबल चाय का नया विज्ञापन आया है, जिसमें दूसरे शहर में रह रहे अपने बेटे के घर माता-पिता ‘सरप्राइज विजिट’ करते हैं। सुबह का वक्त है अस्त-व्यस्त घर में एक लड़की दांत साफ करते हुए अचकचा जाती है। लड़के के मात-पिता भी। पर लड़का बहुत ही शांति से कहता है, ‘हम साथ रहते हैं।’ लड़की चाय बना कर लाती है। चाय लाने से पहले वह ठिठकती है और दुपट्टा अपने गले में डाल लेती है। गौर कीजिए वह बहू नहीं है लेकिन ट्रे में चाय के कप लाती है, दुपट्टा ओढ़ कर। ठीक 20 साल पहले की लड़की की तरह जो लड़के वालों के सामने चाय की ट्रे के साथ पेश की जाती थीं। लेकिन यह लड़की आत्मविश्वासी है। वह बताती है कि एक प्याली बिना चीनी वाली है तो दूसरी में दो चम्मच चीनी है। यानी उसे घर के सदस्यों की जरूरत पहले से पता है।
लिव इन जोड़े की यह छोटी सी कहानी चाय के प्याले पर माता-पिता की हामी के साथ खत्म होती है। रिश्तों को जोड़ने में खाने-पीने की वस्तुओं का बहुत बड़ा हाथ होता है। खास कर चाय का। लेकिन इस विज्ञापन की चर्चा यहां इसलिए क्योंकि विज्ञापन धीरे-धीरे कई बातों को सार्वजनिक मान्यता देने का काम कर रहे हैं। हाल ही में एक और विज्ञापन आया था जिसमें लेस्बियन जोड़े की ऐसी ही छोटी सी कहानी थी। भारत में गे या लेस्बियन होना अभी भी अपराध है। ऐसे रिश्ते की सामाजिक हैसियत के बारे में क्या कहा जाए। लेकिन मिंत्रा डॉट कॉम के इस विज्ञापन ने ऐसे जोड़े की बात की और दर्शकों ने इसे सराहा भी।
धर्मनिरपेक्षता, एकता, आजादी, कर्तव्य जैसे कई बातें विज्ञापनों में होती रही हैं। लेकिन सामाजिक बदलाव या ऐसी बातें जो समाज के लिए आज भी ‘टैबू’ हैं अब तक बड़े परदे यानी फिल्मों में ही देखी जाती थी। विज्ञापन की दुनिया ने इसे कभी छुआ नहीं था। अब नए बदलावों पर विज्ञापन जगत की भी पैनी नजर है। तो क्या आने वाले वक्त में हम विज्ञापन समाज का आईना होता है कहा करेंगे।