Advertisement
05 November 2015

बकाया वेतन की मांग को लेकर गोलबंद हुए सहाराकर्मी

गुगल

एक तरफ सहारा समूह के सर्वेसर्वा सुब्रत राय सहारा जेल से सुप्रीम कोर्ट से तारीख-दर-तारीख हासिल करने में कामयाब हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वह और उनका प्रशासन भुखमरी और बदहाली के कगार पर ढकेले गए सहाराकर्मियों की बकाया वेतन की मांग की आपराधिक अनदेखी करने में लगे हैं। बकाया वेतन की मांग को लेकर आंदोलनरत सहाराकर्मियों की मांग को वे सुनने तक को तैयार नहीं है। सहारा प्रशासन सुब्रत राय के इशारे पर समूह के प्रशासन में फेर-बदल करके अपने पुराने भरोसेमंद अधिकारियों को –पूरी खुली छूट के साथ काम करने की इजाजत देकर समूह में आतंक का माहौल बना रहे हैं।

 

protest

Advertisement

नोएडा के सेक्टर 11 में स्थित सहारा परिसर में बकाया वेतन की मांग को लेकर सहाराकर्मियों का धरना जारी है।  आठ महीने के बकाया वेतन की मांग को लेकर सहाराकर्मी (मीडियाकर्मी और अन्य सहायक स्टाफ) का पिछले नौ दिन से धरना दे रहे हैं। गौरतलब है कि सहारकर्मी जिसमें पत्रकार और गैर पत्रकार दोनों शामिल हैं लंबे समय से वेतन संकट से जूझ रहे हैं। आलम यह है कि सहारा प्रशान इन कर्मियों को यह भी बताने के लिए तैयार नहीं है कि कंपनी पर मीडियाकर्मियों का कुल बकाया कितना है। इस संकट की शुरुआत करीब दो साल पहले सहारा-सेबी के विवाद के समय से ही हो गई थी। संस्थान के चेयरमैन सुब्रत रॉय के तिहाड़ जेल जाने के बाद यह संकट बढ़ गया। मीडियाकर्मियों व अन्य सहायक स्टाफ का वेतन रोका जाने लगा। सुप्रीम कोर्ट में सहारा प्रशासन ने यह भी बहाना करने की कोशिश की कि चूंकि सुब्रत राय सहारा जेल में हैं, इसलिए सहारा समूह अपने कर्मियों को वेतन देने में असमर्थ हो रहा है।

सहारा के मालिक पर आए संकट की गाज सिर्फ मीडियाकर्मियों पर ही पड़ी, जबकि  सहारा की अन्य व्यापारिक गतिविधियों और सहारा-सेबी के विवाद मीडिया का कभी कोई लेना-देना नहीं रहा। इस संकट के बाद भी सहारा के अन्य संस्थानों जैसे पैराबैंकिंग, हॉस्पिटल, होटल इत्यादि में नियमित वेतन दिया जा रहा है। इससे सहारा में कार्यरत मीडियाकर्मियों के बीच यह संदेश गया कि सुब्रत रॉय ने अपनी किसी रणनीति के तहत मीडिया जिसमें राष्ट्रीय सहारा अखबार और इलेक्ट्रॉनिक चैनल (समय नेशनल, सहारा समय यूपी-उत्तराखंड, सहारा समय बिहार-झारखंड, सहारा समय मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़, सहारा समय राजस्थान और आलमी सहारा) शामिल हैं, के नोएडा मुख्यालय समेत देशभर में फैले कर्मचारियों का वेतन पहले देरी से और अब बिल्कुल न देने की चाल चली।

लंबे समय से वेतन में कटौती, देरी से जुझ रहे सहाराकर्मियों का सब्र का बांध अक्तूबर में टूट गया। अक्टूबर तक सहारा कंपनी पर सहारा कर्मियों का आठ महीने का वेतन बकाया हो गया। नवंबर में भी वही हाल रहने की आशंका है। इस दरम्यान कई सराहाकर्मियों की तनाव और बिमारी में इलाज न करा पाने की वजह से मौत भी हो गई। बहुत से कर्मियों के बच्चों के नाम स्कूल से कट गए। बैंक लोन की किस्त जमा नहीं हो पा रही है, यहां तक कि फीस न दे पाने के कारण कर्मचारियों के बच्चों के नाम स्कूल से कट रहे हैं और बहुतों को अपना परिवार गांव भेजना पड़ा है। भुखमरी के हालात में पहुंचाएं गए इन कर्मियों ने आंदोलन का रास्ता पकड़ा।

ऐसे हालात में कर्मचारियों ने एकजुटता बनाते हुए दबाव और बढ़ाया तो प्रबंधन ने अक्टूबर माह में कंपनी के प्रमुख सुब्रत रॉय से तिहाड़ जेल में कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल की दो बार भेंट कराई, लेकिन दोनों ही बार वार्ता विफल रही और कोरे आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। भूखों मरने के हालात पर सुब्रत रॉय ने जब कहा, भूख से कोई नहीं मरता, ज़्यादा खाने से मरता है, तो इससे भी गहरा आक्रोश सहाराकर्मियों में फैला।  

इस दौरान संगठित आंदोलन चलाने के लिए सहाराकर्मियों ने सहारा मीडिया वर्कर्स यूनियन (यूनियन का पंजीकरण अभी प्रक्रियाधीन है।) बनाई। इस के तत्वाधान में 28 अक्टूबर से सहारा के नोएडा कैंपस में धरना जारी है। गौरतलब है कि एक के बाद एक मीडिया संस्थानों में कर्मचारियों की छंटनी, बंदी की घटनाएं सामने आ रही है। दैनिक जागरण जैसे मीडिया संस्थान मजीठिया को लागू करने की मांग को लेकर जब सुप्रीम कोर्ट गए तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: media, sahara, struggle, sahara mediaworkers, dharna, starvation
OUTLOOK 05 November, 2015
Advertisement