क्या सौर उर्जा में होगी क्रांति
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने वाले इस संस्थान के वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा किए गए शोध में हेमेटोपोरफायरीन तत्व की जांच की गई। यह तत्व पशुओं के रक्त या किसी अन्य किस्म के रक्त के हीमोग्लोबिन में पाया जाता है।
संस्थान के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने इस परियोजना के बारे विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि यह तत्व सौर पैनलों के निर्माण में मदद करता है जो उर्जा को संग्रहित कर सकते हैं। परियोजना के प्रमुख वैज्ञानिक समीर कुमार पाल ने बताया, ‘हमारा प्रमुख लक्ष्य एक ऐसे तत्व का पता लगाना था, जो सौर उर्जा को संग्रहित करने में मदद कर सके और सौर पैनलों की कीमत को भी कम कर सके।’
पाल ने कहा, यह तत्व बूचड़खानों में मिलने वाले रक्त से हासिल किया गया है। रक्त के इस तत्व से बने सौर पैनलों में सिलिकॉन से बने सौर पैनलों जितनी ही क्षमता होती है और ये बादलों से ढके आसमान के नीचे भी काम कर सकते हैं।
सौर पैनल एक सेंटीमीटर चौड़े और एक सेंटीमीटर मोटे हैं। पाल ने कहा, यह सौर सेलों के बीच संग्रहित उर्जा की मदद से सौर उर्जा पैदा करने के तरीके में क्रांति लाएगा। सिलिकॉन एक महंगा उत्पाद है और इसकी ज्यादा मात्रा भी नहीं है। एक दिन ऐसा आएगा, जब यह मिलेगा ही नहीं। जबकि पशुओं का रक्त देश के किसी भी बूचड़खाने में पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। इस में हीमोग्लोबिन पाया जाता है।
उन्होंने कहा, दूसरा ये सेल जैविक रूप से नष्ट हो सकते हैं जबकि सिलिकॉन से बने सौर सेल इस तरह से नष्ट नहीं हो सकते। सिलिकॉन सेलों की मियाद पूरी हो जाने के बाद ये ई-कचरा बन जाते हैं। पशुओं के रक्त से बने ये सौर सेल चूंकि जैविक कोशिकाएं होंगी, इसलिए ये प्रकृति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगी।
उन्होंने कहा कि ये सेल सुबह से लेकर अंधेरा होने तक काम कर सकते हैं। जबकि सिलिकॉन सेल सिर्फ सूर्य निकलने की स्थिति में सुबह 10 बजे से पांच बजे तक ही काम करते हैं। इनसे फोन भी चार्ज किए जा सकते हैं। सेलों की संख्या बढ़ाकर पंखे और अन्य उपकरण भी चलाए जा सकते हैं।
जब उनसे पूछा गया कि हेमेटोपोरफायरीन नामक रसायन कितनी मात्रा में उपलब्ध है तो उन्होंने कहा, एक व्यस्क शरीर में खरबों लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं और हर लाल रक्त कोशिका में पर्याप्त हीमोग्लोबिन होता है। हर हीमोग्लोबिन में पर्याप्त मात्रा में हेमेटोपोरफायरीन भी होता है। यह मात्रा पशुओं में भी पाई जाती है।