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04 October 2015

सदियों तक नुकसान पहुंचाएगा समुद्र में गया प्लास्टिक कचरा

पानी के बोतल, रैपर, प्लास्टिक थैले, नेट और अन्य औद्योगिक कचरे ही विनाश के कारक नहीं हैं बल्कि इन प्लास्टिक अवयवों के छोटे घटक जिन्हें माइक्रो प्लास्टिक्स कहा जाता है, वे भी नए और अदृश्य खतरे का रूप लेते जा रहे हैं। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआईओ) के निदेशक डॉ. एस. डब्ल्यू. ए. नकवी ने कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या है और माइक्रो प्लास्टिक से विश्व भर के महासागरों में पैदा हुआ प्रदूषण आने वाले समय में बहुत विकट समस्या होगी जो सदियों तक मानव को परेशान करेगी। मछलियां, व्हेल, कछुए और सील गलती से प्लास्टिक थैलियों और बोतलों जैसी बड़ी वस्तुओं को निगल लेते हैं। ये पदार्थ उनकी आहार नली को अवरूद्ध कर देते हैं। इसी तरह बड़े प्लास्टिक पदार्थों के छोटे घटक भी परेशानी के कारक बनते हैं क्योंकि वे छोटे रूप में परिवर्तित होकर अंतत: इंसानों के भोजन का हिस्सा बनते हैं।

प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण को लेकर आगाह करते हुए एनआईओ में समुद्री प्रदूषण पर काम करने वाली वैज्ञानिक डाॅ. महुआ साहा ने कहा कि विश्व की आबादी लगभग अपने वजन के बराबर प्लास्टिक हर वर्ष उत्पन्न करती है। प्रतिष्ठित अमेरिकी जर्नल सांइस में प्रकाशित 2015 के एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार 192 तटीय देशों में करीब 27.5 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ और 1. 2 करोड़ टन कचरे के रूप में महासागरों में प्रविष्ट हो गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड (सीबीसीपी) के एक आकलन के अनुसार प्रतिवर्ष हर भारतीय आठ किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग करता है इसका अभिप्राय है कि हर साल भारत में 80 लाख टन प्लास्टिक का उपयोग होता है।

अमेरिका के यूनिवर्सिटी आॅफ जाॅर्जिया के 2015 के अध्ययन में भारत को प्लास्टिक कचरा के कुप्रबंधन और इसे महासागर को दूषित करने देेने वाले देशों की सूची में 12 वें स्थान पर रखा गया। सबसे ऊपर चीन, उसके बाद इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और श्रीलंका का नाम आता है। अध्ययन में कहा गया है कि तटीय इलाकों में 87 फीसदी प्लास्टिक कचरा कुप्रबंधित होता है।

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साहा ने कहा कि प्लास्टिक वास्तव में इंसानों के लिए बड़ा खतरा हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि करीब 80 फीसदी समुद्री कचरा भूमि से आता है और उनके अनुसार कुछ प्लास्टिक थैलियों के नष्ट होने में।,000 वर्ष तक लग सकते हैं और जब वे नष्ट होते हैं तब भी जीवों के लिए बड़ा खतरा पैदा करते हैं। दिलचस्प है कि साहा की रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक के पुनर्चक्रण में 47 फीसदी के साथ भारत पहले स्थान पर है इसका मतलब है कि भारत द्वारा उपयोग किया गया आधा से ज्यादा प्लास्टिक कचरे के रूप में रहता है।

 

(पीटीआई-भाषा के लिए जाने-माने विज्ञान लेखक पल्लव बाग्ला का साप्ताहिक काॅलम)

 

 

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TAGS: पल्लव बाग्ला, प्लास्टिक, महासागर, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, एनआईओ, डॉ. एस. डब्ल्यू. ए. नकवी, औद्योगिक कचरे, माइक्रो प्लास्टिक्स, Plastics, Ocean, NIO, Dr. S.W.A. NAQWI, Industrial wastes, Micro Plastics, Pallav Bagla
OUTLOOK 04 October, 2015
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