गोल्डन राइस: कुपोषित दुनिया में एक नई रोशनी
मई 2018 में अमेरिका के फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ॰डी॰ए॰) ने आखिरकार अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र (आई॰आर॰आर॰आई॰) फिलीपींस की जांच पड़ताल को मान्यता देते हुए गोल्डन राइस की GR2E वैरायटी को हरी झंडी दिखा दी। इससे कुछ महीने पहले हेल्थ कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड की फूड स्टैंडर्डस एजेंसियों ने गोल्डन राइस की GR2E वैरायटी को रीलीज करने का निर्णय लिया था। संभव है जल्द ही चीन, बांग्लादेश और फिलीपींस में गोल्डन राइस उगाया जाये। गोल्डन राइस जी॰एम॰ तकनीक से बनी धान की ऐसी किस्म है जिसमें समुचित मात्रा में 'विटामिन-ए' मौजूद है, और इसका रंग हल्दी जैसा है।
एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के कई देशों में रहने वाले गरीब लोग अपना पेट चावल खाकर भरते हैं। उनके आहार में पर्याप्त फल-सब्जी, दूध और मांसाहार का अभाव रहता है। इसका सीधा नतीजा यह होता है कि उनके शरीर में विटामिन-ए की भारी कमी हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे के अनुसार चावल पर गुजारा करने वाले 26 देशों के 40 करोड़ से ज्यादा लोगों में विटामिन-ए की कमी है, जिसके कारण प्रतिवर्ष ~5 लाख बच्चे रतौंधी या अंधेपन का शिकार हो जाते हैं और ~10 लाख बच्चे मर जाते हैं।
विटामिन-ए मनुष्य व अन्य प्राणियों के समुचित विकास के लिए आवश्यक है। यह आंखों की ज्योति को बनाये रखने, हड्डियों की वृद्धि, मांसपेशियों की मजबूती और रक्त में कैल्सियम का स्तर सही बनाये रखने में मदद करने के साथ-साथ हमें विभिन्न रोगाणुओं से लड़ने की ताकत भी देता है। मनुष्य और दूसरे स्तनधारी जीव स्वयं विटामिन-ए का निर्माण नहीं कर सकते लेकिन वे इसे दूध व मांसाहार से प्राप्त करते हैं या फिर लाल-नारंगी-पीले रंग की सब्जियों या फलों (शकरकंद, गाजर, नारंगी, आम आदि) में मौजूद ‘बीटा कैरोटिन’ को विटामिन-ए में बदलकर इस कमी को पूरा करते हैं।
जैव-प्रौद्याेगिकी का कमाल
वैज्ञानिक बहुत सालों तक धान की ऐसी किस्म की खोज में लगे रहे जिसके चावल में बीटा कैरोटिन पाया जाता हो, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। अत: ब्रीडिंग के जरिए धान की ऐसी किस्म तैयार नहीं की जा सकती जो बीटा कैरोटिन से भरपूर हो। 1990 के दशक में इंगो पोट्रराइकस ने जैव-तकनीकी की सहायता से बीटा कैरोटिन युक्त चावल को विकसित करने का प्रोजेक्ट शुरू किया था। पौधों में बीटा कैरोटिन बनाने की प्रक्रिया में आठ जैव-रसायानिक क्रियाएं होती हैं जो चार एंजाइमों की मदद से संपन्न होती हैं। चावल में बीटा कैरोटिन बनाने के लिए अधिकतर तत्व मौजूद हैं, लेकिन उसके भीतर तीन जीन काम नहीं करते।
सन 2000 में पोट्रराइकस और उनके सहयोगी पीटर बेयर ने डेफोडिल पौधे से दो जीन (फायोटिन सिन्थेज व लायकोपिन सायक्लेज) और जीवाणु इरवीनिया से फायोटिन डिसेचुरेज जीन को क्लोन किया। इन तीन जीनों को जैव-प्रौद्योगिकी की तकनीक से धान के भीतर डालकर उन्होंने जी॰एम॰ धान की गोल्डन राइस वैरायटी बनाई। इस किस्म के एक किलोग्राम चावलों में ~8 मिलीग्राम बीटा कैरोटिन पाया जाता है जिससे इनका रंग पीला-सुनहरा दिखता है। यदि मनुष्य इस धान को खाए तो उनके शरीर के भीतर बीटा कैरोटिन से विटामिन-ए बन जाता है।
एक बार जब यह प्रयोग सफल हो गया और गोल्डन धान बनाने की प्रक्रिया की समझ बन गई तो उसे बड़े पैमाने पर कारगर बनाने और इस धान में बीटा कैरोटिन की मात्रा में इजाफा करने के लिए पोट्रराइकस ने सीजेंटा कंपनी से अनुबंध किया। सीजेंटा ने गोल्डन राइस की SGR2 किस्म तैयार की जिसमे डेफोडिल की जगह मक्का का फायोटिन डिसेचुरेज इस्तेमाल किया गया। इस किस्म में बीटा कैरोटिन की मात्रा 27 मिलीग्राम प्रति किग्रा चावल हो गई है।
अन्य जी॰एम॰ फसलों से अलग
“गोल्डन राइस ह्यूमनटेरियन बोर्ड” ने गोल्डन राइस को विकासशील देशों के 10 हजार डॉलर प्रतिवर्ष से कम आय वाले किसानों के लिये मुफ्त कर दिया है। विभिन्न देशों के कई सरकारी शोध संस्थानों की भागीदारी से कई स्थानीय धान की किस्मों जैसे भारत में मुख्य रूप से उगाए जाने वाला IR64, बांग्लादेश का ‘बोरो’, फिलीपीनी PSB, RC 82 आदि में भी बीटा कैरोटिन बनाने की क्षमता को विकसित किया गया। जी॰एम॰ धान की इन किस्मों पर कई तरह के टेस्ट और परीक्षण के बाद वे हानिरहित पाए गए हैं। चूंकि धान में मुख्यत: स्वपरागण होता है इसलिए अन्य जी॰एम॰ फसलों के विपरीत गोल्डन धान को उगाने वाले किसान अपनी फसल से अगले वर्ष की बुआई के बीज बचा कर सकते हैं
पिछले 18 वर्षों से यह सुनहरा धान जी॰एम॰ फसलों के भारी विरोध के कारण ठंडे बस्ते में पड़ा था। इसे किसी भी देश में उगाने की सरकारी अनुमति नहीं मिली थी। अब संभव है कि जल्द ही चीन, बांग्लादेश, और फिलीपींस में गोल्डन राइस उगाया जाये। और उम्मीद की जा सकती है कि यह नया धान गरीब देशों के कई बच्चों की अकाल मौत और नेत्र रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक होगा।