Advertisement
19 November 2019

नोबेल पुरस्कार विजेताओं के लिए प्रेरणा बना ओडिशा का यह शख्स

अगर नोबेल पुरस्कार के लिए मुख्य मानदंड आम लोगों को लाभ पहुंचाना और उसके फायदे दिलाना होता तो अभी एक भारतीय की कहानी बताने की आवश्यकता होती। जो मादियात प्रभाव का लिटमस टेस्ट बताने के लिए इस साल दो नोबेल पुरस्कारों (अर्थशास्त्र और केमिस्ट्री) से जुड़े हैं। 

जो मादियात कौन हैं? 2019 के नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत वी. बनर्जी और एस्टर डुफ्लो के शब्दों में, “वह मजाकिया तौर पर खुद के विरोधाभास निकालने वाले व्यक्ति हैं जो अपने घर पर ही बुने सूती वस्त्रों में दुनिया के अमीर और प्रभावशाली लोगों के स्विट्जरलैंड के दावोस में होने वाली वार्षिक सम्मेलन वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में हिस्सा लेते हैं।” मादियात ऐसे सामान्य व्यक्ति हैं जो काम अलग तरीके से करते हैं।

गरीबी के अर्थशास्त्र के अपने अध्ययन में बनर्जी और डुफ्लो ने जमीनी स्तर पर गरीबों के जीवन को समझने को कई वर्ष गुजारे तो मादियात और उनके जैसे अन्य लोगों ने ही इन अर्थशास्त्रियों को गांवों और वहां की पगडंडियों पर घूमकर सवाल करने और आंकड़े खोजने, कार्यकर्ताओं, नौकरशाहों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और गांव के साहूकारों से मिलकर काम करने में सहायता की। मादियात की ही मदद से वे दोनों बेहतरीन कहानी बुन पाए कि गरीब कैसे जीवन जीते हैं।

Advertisement

मादियात एक सामाजिक उद्यमी, ओडिशा के मोहुदा के ग्रामीण विकास संगठन ग्राम विकास के संस्थापक हैं। पिछले 40 साल में उनके नेतृत्व में ग्राम विकास 1700 गांवों के 6,00,000 लोगों से ज्यादा लोगों के जीवन स्तर पर स्थायी सुधार लाया। उनका सबसे मशहूर प्रयास वाश (वाटर, सेनिटेशन और हाईजिन) है।

एक मकसद के लिए विद्रोही

तीन दिसंबर, 1950 को केरल के चेरुवाली में जन्मे मादियात मात्र 12 साल के थे, जब उन्होंने अपने पिता के रबर बागान में श्रमिकों को संगठित किया। 1971 में जब वह अपनी उम्र के दूसरे दशक में थे, उन्होंने 400 छात्रों के साथ बांग्लादेश की स्वाधीनता के समय भारत आए शरणार्थियों के लिए राहत शिविर स्थापित किया। उसी साल वह काम करने के लिए 40 कार्यकर्ताओं के साथ चक्रवात प्रभावित ओडिशा चले गए। उन्होंने वहां रुकने का फैसला किया ताकि वह तय कर सकें कि क्या वह वहां गरीब ग्रामीणों की मदद के लिए कुछ स्थायी तरीके तलाश सकते हैं।

अंततः उन्होंने ग्राम विकास कार्य में सबसे पहले गांव के लोगों के साथ मिलकर जल और स्वच्छता पर फोकस किया। उन्होंने हजारों हैक्टेयर निर्जन भूमि को हरा-भरा बना दिया। इसके अलावा खुले में शौच खत्म करने के लिए काम किया। इससे गंदे पानी से होने वाली बीमारियां कम करने में काफी मदद मिली। उन्होंने आपदा रोधी मकान बनाने, ग्रामीण संस्थाओं में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए हजारों महिलाओं को तैयार करने, सैकड़ों लड़कियों को शिक्षित करने और दूसरे कई कार्यों पर ध्यान दिया। 2018 तक, ग्राम विकास ने 83,000 मकानों तक जल और स्वच्छता की पहुंच बनाई।

2007 में आउटलुक के पत्रकार संजीव मुखर्जी को दिए एक इंटरव्यू (बीमारी से ग्रसित गांव बने चमकते आधुनिक ग्राम) में मादियात ने कहा, “एक शौचालय संक्रमण से बचाने भर के लिए नहीं है, बल्कि यह गरिमा और सामाजिक समावेशी का एक माध्यम है।” उन गांवों में जहां ग्राम विकास काम कर रहा है, एक ही पाइपलाइन से प्रत्येक घर को जोड़ा गया है। इसका आशय है कि सभी जातियों के लोगों को पानी साझा किया जा रहा है। जबकि शुरू में लोगों को यह प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं था। लेकिन मादियात की शर्त थी कि प्रत्येक मकान को इसके लिए रजामंदी देनी होगी और प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले हर किसी को लेबर और अन्य वस्तुओं के लिए योगदान देना होगा।

“पुअर इकोनॉमिक्सः ए रेडिकल रिथिंकिंग ऑफ दि वे टू फाइट ग्लोबल पावर्टी” (2011) में बनर्जी और डुफ्लो लिखते हैं, “इसके तुरंत बाद और भविष्य के वर्षों के लिए डायरिया के केस घटकर आधे रह गए जबकि मलेरिया के मामलों में एक तिहाई कमी आई। इस प्रणाली के रखरखाव का मासिक खर्च प्रत्येक के लिए 190 रुपये है जो आमतौर पर आने वाले खर्च का सिर्फ 20 फीसदी है।” ग्राम विकास हर महीने प्रत्येक गांव में मलेरिया और डायरिया के मामलों के आंकड़े भी एकत्रित करता है।

 बैटरी से रोशनी

ग्राम विकास ने धीरे-धीरे अपने कार्य का दायरा इन्फ्रास्ट्रक्चर, हाउसिंग और अब ऊर्जा बचत जैसे क्षेत्रों में बढ़ाया है। इससे हमें मादियात के कार्यों का इस साल के केमिस्ट्री के नोबेल पुस्कार का लिंक मिलता है। यह पुरस्कार अमेरिका के ऑस्टिन स्थित यूनीवर्सिटी ऑफ टेक्सास के जॉन बी. गुनएनफ, स्टेट यूनीवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क की बिंगटन यूनीवर्सिटी के एम. स्टेनले व्हिटिंघम और जापान के टोक्यो स्थिति असाही केसी कॉरपोरेशन से जुड़े और नगोया की मेजी यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर अकीरा योशिनो को लिथियम आयन बैटरी विकसित करने के लिए मिला है।

यही तकनीक है जिसका इस्तेमाल मादियात ओडिशा के कालाहांडी में नौ स्थानों पर विद्युतीकरण कार्यक्रम चलाने के लिए कर रहे हैं। इस समय उनकी टीम मालीगांव में कड़ा परिश्रम कर रही है जहां सोलर माइक्रो-ग्रिड 2009 में स्थापित की गई थी। लेकिन कुछ वर्षों में ही इसने काम करना बंद कर दिया।

2018 में एसबीआइ यूथ फॉर इंडिया फेलो के तौर पर ग्राम विकास में ज्वाइन करने वाले हार्वर्ड के छात्र ईशान पठेरिया अब मालीगांव में माइक्रो-ग्रिड रिन्यूअल प्रोजेक्ट पर स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। अब लंबे समय तक काम करने वाली लीथियम फेरोफॉस्फेट (एलएफपी) बैटरी आधारित आधुनिक तकनीक के साथ सोलर पैनल और स्मार्ट मीटर का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि हर घर में बिजली खपत का रियलटाइम डाटा भी एकत्रित किया जा सकता है।

मादियात इस साल का केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वैज्ञानिकों के संपर्क में हैं। वह एक और अनूठा प्रयोग देश में पहली बार करने जा रहे हैं। बिजली को लीथियम आयन बैटरी के साथ सोलर ग्रिड में संरक्षित रखने का प्रयोग अनूठा ही होगा।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Nobel Laureate, Joe Madiath, Odisha
OUTLOOK 19 November, 2019
Advertisement