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05 December 2019

माताओं को शिशु पोषण के बारे में सिखाना क्यों महत्वपूर्ण

सीआइएनआइ

बेहतर स्वास्थ्य के लिए चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट की परियोजना का विस्तार करना जरूरी

डॉ. समीर नारायण चौधरी एवं स्वपन बिकास साहा

मार्च 2018 में केंद्र सरकार ने कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए महत्वाकांक्षी पोषण अभियान लांच किया था। हालांकि सरकार के तमाम फ्लैगशिप प्रोग्रामों के बावजूद बच्चों में कुपोषण अभी भी बड़ा खतरा बना हुआ है। ग्लोबल स्तर पर भी यह समस्या गंभीर है। ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2018 ने एक बार फिर कुपोषण को विकट समस्या बताया है। लैंसेट मैटरनल एंड चाइल्ड न्यूट्रीशन, जून 2013 के अनुसार  बच्चों की करीब आधी मौतें कुपोषण के कारण होती हैं। इसलिए इस समस्या से निपटने को बहुउद्देश्यीय दृष्टिकोण अपनाना बहुत जरूरी है।

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पश्चिम बंगाल के शीर्ष राष्ट्रीय एनजीओ चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट (सीआइएनआइ) ने इस समस्या से निपटने के लिए अपने 1000 डेज केयर प्रोजेक्ट के तहत यूनीसेफ, सेव दि चिल्ड्रिन, डीएफआइडी, ओरेकल, एचसीएल और जॉनसन एंड जॉनसन के साथ हाथ मिलाया है। बच्चों के कुपोषण से निपटने के लिए समुदाय के नेतृत्व वाली यह परियोजना इस तरह तैयार की गई है कि जागरूक माताएं अपने पड़ोस के समुदाय के समर्थन और भागीदारी से अपने बच्चों में पोषण का स्तर प्रभावी तरीके से सुधार सकती हैं। सीआइएनआइ की पद्धति के मार्गदर्शक सिद्धांत के साथ इस परियोजना का उद्देश्य सामुदायिक परंपराओं का स्थायी मॉडल बनाना है। यह परियोजना पश्चिम बंगाल के कई जिलों दक्षिणी 24 परगना, उत्तरी दिनाजपुर, मालदा और कोलकाता में चलाई जा रही है।

बच्चों को कैसे खिलाया जाता है

परियोजना का मुख्य जोर आंगनवाड़ी स्थापित करके वहां छोटे बच्चों को खिलाने और परामर्श सत्र आयोजित करने पर है ताकि कम वजन के बच्चों की बिना किसी दवाई के सामुदायिक स्तर पर देखभाल के लिए प्रोत्साहित किया जाए और सामुदायिक स्तर पर उन्हें खिलाने की प्रेक्टिस डाली जाए।

पश्चिम बंगाल में सीआइएनआइ की यह परियोजना उन स्थानों और गांवों में चलाई जा रही है जहां बाल विकास सेवाएं पहुंची नहीं हैं या फिर पर्याप्त रूप से नहीं मिल रही हैं। इन स्थानों पर बड़ी संख्या में छोटे बच्चे अल्प पोषण और कुपोषण के शिकार हैं फिर वे बाल विकास कार्यक्रमों के तहत दर्ज नहीं हैं।

परियोजना में शिशुओं और छोटे बच्चों को खिलाने की मौजूदा प्रैक्टिस समझने और अच्छी प्रैक्टिस की पहचान करने के लिए पार्टिसिपेटरी लर्निंग एंड एक्शन कार्यक्रम चलाया गया।

सीखने के लिए सबक

बच्चों को खिलाने के बारे में परियोजना में दो अहम सबक मिले। पहला, अधिकांश माताओं और देखभाल करने वालों को बच्चों की आयु के अनुरूप पूरक आहार की जानकारी नहीं है। बच्चे की आयु छह माह होने पर अधिकांश माताओं को आयु के अनुरूप सही मात्रा, क्वालिटी, बारंबारता और नियमितता में पूरक आहार नहीं मिल पाता है। इस जानकारी के आधार पर बच्चों को दिए जा रहे आहार में बदलाव किया गया और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध परिवार की खाद्य वस्तुओं (तेल, सीजनल हरी पत्तीदार सब्जियों, लाल और पीली सब्जियों, दालों, सीजनल फल, डेयरी, अंडें और आयोडाइज्ड नमक) में से जोड़ा गया। ध्यान देने वाली बात यह है कि आहार को ज्यादा कैलोरी युक्त और सूक्ष्म पोषण से भरपूर बनाया जाए।

घर पर देखभाल

कुपोषण के खिलाफ इन प्रयासों के दिखने वाले परिणामों से परियोजना ने साबित कर दिया कि अस्पताल में भर्ती करके दवाई दिए बगैर अच्छी तरह लागू की गई परियोजना से घरों में ही आहार सुधारकर कुपोषित बच्चों का स्वास्थ्य कम खर्च में सफलतापूर्वक सुधारा जा सकता है। घरों में ही बच्चों का पोषण बढ़ाने में सफलता के लिए आहार संबंधी परामर्श और व्यक्तिगत स्वच्छता पर कार्यक्रम के तहत विशेष ध्यान दिया गया। अब इस सफल परियोजना को बाकी पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे राज्यों में  लागू किया जा सकता है।

(डॉ. समीर नारायण चौधरी चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट के संस्थापक निदेशक और स्वपन बिकास साहा इंस्टीट्यूट में प्रोजेक्ट डायरेक्टर- न्यूट्रीशन हैं)

सीआइएनआइ के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें https://www.cini-india.org/

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TAGS: Child Nutrition, CINI, malnutrition, save children, cini india, UNICEFIndia
OUTLOOK 05 December, 2019
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