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15 September 2025

130वां संविधान संशोधन विधेयक: महज फसाना मकसद?

मौजूदा संख्या गणित में संसद में शायद ही पारित हो पाने वाले विधेयक के सियासी ताल्लुक क्या

अचानक संसद के वर्षाकालीन सत्र के खत्म होने की पूर्व-संध्या पर 20 अगस्त को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 130वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया, जिसकी सुगबुगाहट तक नहीं थी। यही नहीं, कहा तो यह भी जाता है कि उसके पहले की शाम तक लोकसभा सचिवालय को भी इसकी जानकारी नहीं थी। विपक्ष को भी आखिरी मौके पर उसकी प्रतियां मिलीं। फिर, उसके मजमून में ही तय है कि उसे समीक्षा के लिए दोनों सदनों की संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया जाए। ऐसे में सवाल उठा कि इस मौके और वक्त पर विधेयक पेश करने का सियासी मकसद क्या हो सकता है और क्यों इसका ताल्लुक मौजूदा राजनैतिक हालात से है। विपक्षी इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने इसके सरकारी पक्ष की मंशा पर सवाल उठाकर इसे विपक्ष शासित राज्यों को अस्थिर करने तथा क्षेत्रीय दलों पर दबाव बढ़ाने का औजार बताया।

दरअसल विधेयक में प्रस्ताव है कि प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य के मंत्री ऐसे आपराधिक मामले में हिरासत में लिए जा सकते हैं, जिसमें पांच साल या उससे ज्यादा सजा हो सकती हो और उन्हें 30 दिन के भीतर जमानत न मिल सकती हो। ऐसी स्थिति में उन्हें पद छोड़ना पड़ेगा। प्रावधान यह भी है कि जमानत मिल जाती है, तो पद फिर मिल सकता है, बशर्ते राष्ट्रपति, राज्यपाल या उपराज्यपाल की सहमति हो। ये प्रस्ताव संवैधानिक व्यवस्था में बदलाव है, क्योंकि अब तक सिर्फ दोषसिद्ध होने पर ही पद से हटने की व्यवस्था है। मंत्री पद पर शामिल करना भी मंत्री परिषद के अधीन है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239ए में संशोधन का प्रस्ताव है। संवैधानिक व्यवस्था को उलटने की वजह से ही विपक्ष इसे असंवैधानिक बता रहा है।

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अलबत्ता विधेयक संसद के मौजूदा संख्या बल में पास नहीं हो सकता, बशर्ते सियासी समीकरण न बदल जाएं। संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में दो-तिहाई बहुमत से पास होना जरूरी है। फिर कम से कम 15 विधानसभाओं में अनुमोदन भी जरूरी है। फिलहाल सत्तारूढ़ एनडीए के पास न लोकसभा, न राज्यसभा दोनों में ही दो तिहाई बहुमत नहीं है। इसके अलावा, संविधान के मूल सिद्धांत में बदलाव की वजह से उसे न्यायिक समीक्षा से भी गुजरना पड़ सकता है। इस तरह, शायद यह भी 129वें संविधान संशोधन विधेयक की तरह ही फिलहाल प्रस्ताव भर बनकर रह जाए, जिसमें एक राष्ट्र, एक चुनाव का जिक्र है।

लेकिन इस मौके पर इसे लाने के सियासी मायने भी फौरन स्पष्ट हो गए। बिहार के गया की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त होना चाहती है, लेकिन विपक्ष को इसमें आपत्ति है। अमित शाह भी एक रैली में बोले, ‘‘क्या जेल से सरकार चलाई जानी चाहिए।’’ वे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जिक्र कर रहे थे, जो कई महीने तक जेल से ही सरकार चलाते रहे और जमानत पर छूटने के बाद ही इस्तीफा दिया था। इसी तरह तमिलनाडु में मंत्री सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बावजूद मुख्यमंत्री एम.के. स्टालीन ने उन्हें हटाया नहीं था। गृहमंत्री ने इन्हीं मामलों का संसद में भी हवाला दिया था। हालांकि झारखंड के मुख्य्मंत्री हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दे दिया था। इन मामलों में अदालतों ने जमानत मंजूर करने के लिए प्राथमिक सबूत तक न होने के लिए ईडी को फटकार लगाई थी।

दरअसल इस विधोयक के खिलाफ विपक्ष की शंकाएं इस वजह से भी हैं कि पिछले दस साल में ईडी और सीबाआइ के करीब 5,900 मामलों में सिर्फ 8 में दोष सिद्ध हो पाए। विपक्षी नेताओं के खिलाफ 950 से ज्यादा मामलों में सिर्फ दो में सजा सुनाई जा सकी। हाल में दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ अदालत ने सबूत न होने पर मामला बंद कर दिया, जबकि उन्हें ढ़ाई साल दिल्ली के तिहाड़ जेल में बिताने पड़े। इसलिए शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत कहते हैं कि अगर यह कानून बन गया, तो किसी भी शिकायत पर कोई थानेदार गिरफ्तार कर लेगा। उनके मुताबिक, ‘‘जहां भाजपा वोट चोरी से चुनाव नहीं जीत सकती, वहां ऐसे कानून से सरकार लूट की योजना बना रही है।’’

विपक्ष, खासकर इंडिया ब्लॉक की सभी राजनैतिक पार्टियां तो इस कदर खिलाफ हैं कि लोकसभा में जब अमित शाह इसे पेश कर रहे थे, तो विपक्षी बेंचों से इसकी प्रतियां भी फाड़कर उनकी ओर उछाल दी गईं। तृणमूल कांग्रेस ने, तो इसकी समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति में न शामिल होने का ऐलान कर दिया है। उसके राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि असंवैधानिक विधेयक की समीक्षा नाटक के अलावा कुछ नहीं है।

संभव है, इसके जरिए सत्तारूढ़ भाजपा और एनडीए का एक सियासी मकसद भ्रष्टाचार के मसले पर विपक्ष को घेरने का हो, क्योंकि विपक्ष बिहार में एसआइआर को लेकर विपक्षी महागठबंधन अपनी वोटर अधिकार यात्रा में ‘‘वोट चोरी’’ के आरोप उछाल रहा है। वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के जरिए चुनाव जीतने के विपक्ष के आरोपों की काट के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन को शायद भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाना मुफीद लग रहा है। हालांकि कांग्रेस के सांसद वेणुगोपाल का यह भी आरोप है कि इस विधायक के जरिए भाजपा अपने सहयोगियों, जनता दल (यूनाइटेड) और तेलुगु देशम को डराना चाह रही है, जो कई मुद्दों पर नाराज चल रहे हैं। इतना तय है कि यह सियासी शह-मात के खेल का ही हिस्सा है।   

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TAGS: 130th constitutional amendment bill, politics, bjp government, amit shah
OUTLOOK 15 September, 2025
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