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02 June 2015

ममता की ना के बाद, तीस्ता समझौता अटका

पीटीआइ

अटका ही है

यानी पिछले दो दशकों से दक्षिण एशिया की चौथी सबसे बड़ी नदी के पानी के बंटवारे का मामला जो अटका हुआ था, वह अटका ही रहेगा। अगर ऐसा होता है तो इसे ममता बनर्जी की जीत ही मानी जाएगी क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बांग्लादेश न जाकर भी उन्होंने यही हासिल किया था।

ममता बनर्जी 5 जून को बांग्लादेश के लिए निकल रही है, जहां वह 6 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चर्चा में शामिल होंगी। मोदी दो दिन की बांग्लादेश यात्रा पर जाएंगे, जहां तीस्ता नदी जल बंटवारे को छोड़कर दूसरे अहम मुद्दों पर चर्चा होगी।

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दरअसल, ममता बनर्जी का रुख भांपने के बाद ही सुषमा स्वराज को यह कहना पड़ा था, -हम तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर करने की स्थिति में नहीं पहुंचे हैं। भारत और बांग्लादेश की सरकारों के बीच कोई भी सहमति पर्याप्त नहीं होगी क्योंकि राज्य (पश्चिम बंगाल) सरकार के साथ परामर्श किए बिना कोई भी निर्णय संभव नहीं है। -
बांग्लादेश लंबे समय से इस विवाद को निपटाने के लिए भारत पर दबाव बना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस बाबत संपर्ख किया और शुरू में भारत की तरफ से आश्वासन भी मिला था। लेकिन मामला फिर अटक गया है।

तीस्ता नदी का मामला क्या है

तीस्ता नदी का उद्गम सिक्कम से है और यह पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश पहुंचती है। अलग-अलग मौसम में इस नदीं में पानी की मात्रा बढ़ती-घटती रहती है। यही विवाद की मुख्य जड़ है। एक अनुमान के मुताबिक तीस्ता नदी का औसत सालाना बहाव 60 अरब घन मीटर होता है, जिसमें से अधिकांश जून से लेकर सितंबर के दौरान प्रचुर पानी की वजह से होता है। वहीं अक्टूबर से अप्रैल-मई में यह घटकर 50 करोड़ घन मीटर हो जाता है। अब कमती के मौसम में पानी का बंटवारा किस सिद्धांत पर हो, यह एक बड़ा मुद्दा बना हुआ।

अब तक क्या हुआ

करीब 18  तक चली वार्ताओं के बाद वर्ष 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दोनों देशों के बीच 50-50 फीसदी पानी के बंटवारे पर सहमति बन रही थी। लेकिन इसके लिए ममता बनर्जी तैयार नहीं हुई थी। ममता बनर्जी का कहना है कि इस तरह के किसी भी समझौते से राज्य को बेहद नुकसान होगा।

वहीं बांग्लादेश का कहना है कि तीस्ता नदी घाटी के किनारे बांग्लादेश में 2.1 करोड़ लोग रहते हैं जबकि 80 लाख और करीब 50 लाख सिक्कम में रहते हैं। यानी बांग्लादेश की ज्यादा आबादी तीस्ता पर निर्भर है, लिहाजा उसे ज्यादा हिस्सा पानी का मिलना चाहिए।

वहीं पश्चिम बंगाल का कहना है कि 2013 के समझौते के बाद तीस्ता नदी सूख रही है और पश्चिम बंगाल में पानी का बहुत संकट हो गया है। इशी तरह से तीस्ता नदी का पानी बांग्लादेश के लिए महत्वपूर्ण है खास कर दिसंबर से मार्च की अवधि में, जब जल प्रवाह 5,000 क्यूसेक से अस्थाई रूप से घट कर 1,000 क्यूसेक से भी कम रह जाता है।

गतिरोध बरकरार

इस तरह से अभी तक यह तय है कि तीस्ता जल समझौते का जिक्र इस ढाका यात्रा के दौरान नहीं किया जाएगा।  पश्चिम बंगाल में नए नागरिकों का पुनर्वास दोनों देशों के लैंड बाउंड्री अग्रीमेंट के तहत रिहाइशी बस्तियों की अदला-बदली दोनों देशों की सहमति से ही की जाएगी।

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TAGS: teesta water dispute, mamta banerjee, modi, सुषमा स्वराज, नरेंद्र मोद, पश्चिम बंगाल, तीस्ता नदी
OUTLOOK 02 June, 2015
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