शाह के सिर चुनौती का ‘ताज’
संघ की रणनीति में सरकार और भाजपा संगठन का साथ तभी मिल पाता जब प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष की राह एक हो। संघ नेताओं को इस बात का अंदेशा था कि अगर शाह की जगह कोई और अध्यक्ष बनेगा तो सरकार से तालमेल बिठा पाना मुश्किल होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की चर्चा पहले ही हो चुकी है। शाह के अध्यक्ष बनने के बाद एक बात और साफ हो गई कि अगला लोकसभा चुनाव भी मोदी-शाह की जोड़ी के ही नेतृत्व में लड़ा जाएगा। संघ के एक बड़े नेता के मुताबिक जब भाजपा अध्यक्ष के रूप में कई नामों पर विचार हो रहा था तब मोदी ने अमित शाह के दो दशक से किए जा रहे कार्यों का ब्यौरा दिया कि किस प्रकार शाह अध्यक्ष पद के लिए उपयुञ्चत हैं। दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो शाह के खाते में उपलब्धियां ही उपलब्धियां हैं। चाहे वह गुजरात राज्य वित्त निगम का कार्यकाल हो या फिर गुजरात में परिवहन मंत्री का कार्यकाल। उत्तर प्रदेश का प्रभारी रहते हुए लोकसभा चुनाव में 80 में 71 सीटें भाजपा और दो सीटें सहयोगी दलों को दिलाने का श्रेय भी शाह के खाते में जाता है। अगस्त 2014 में जब शाह को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया तब संगठन को मजबूत करने के अलावा पार्टी की सदस्यता संख्या बढ़ाने में भी अभूतपूर्व सफलता हासिल की। शाह के अध्यक्ष बनने के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड में जहां अकेले दम पर सरकार बनाई वहीं जम्मू-कश्मीर में पहली बार गठबंधन के साथ भगवा रंग दिखा। बिहार में विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट प्रतिशत में बढ़त ही हुई। नरेंद्र मोदी का तर्क साफ था कि एक बार शाह को पूर्ण कार्यकाल का मौका दिया जाए। संघ नेताओं ने भी प्रधानमंत्री की इस मांग को अनसुना नहीं किया और साफ कर दिया कि शाह ही अध्यक्ष होंगे। उसके बाद इस पद के दावेदारों ने चुप्पी साधना ही बेहतर समझा।
शांत स्वभाव, गंभीर आंखे और दूरदर्शी सोच अमित शाह की खासियत है। बिहार चुनाव के दौरान इस संवाददाता ने जब शाह से यह सवाल किया था कि आप भाजपा को कहां ले जाना चाहते हैं तो उन्होने कहा था कि, ' आज हम दस करोड़ सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी हैं। हम लोग अब उस प्रक्रिया में हैं जिसके तहत इन नए कार्यकर्ताओं को व्यापक प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि ये कार्यकर्ता पार्टी की नीतियों से विचारधारा से अवगत हो सकें। शाह का साफ तौर पर कहना था कि, 'असम, बंगाल, केरल और तमिलनाडु में परंपरागत तौर पर पार्टी मजबूत नहीं है, लेकिन हमारे कार्यकर्ता इन राज्यों में कड़ी मेहनत कर रहे हैं और चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं। उस समय की बातचीत से एक बात साफ तौर पर जाहिर हो रही थी कि शाह को एक पूर्णकालिक कार्यकाल जरूर मिलेगा। मोदी-शाह की जोड़ी के मुरीद भाजपा में नहीं बल्कि अन्य दलों में हैं। जिस प्रकार से विश्लेषकों ने इस जोड़ी को तमाम तरह के से नवाजा था वह भी संघ नेताओं के सामने सकारात्मक रूप में पेश किया गया। शाह की ताजपोशी के समय भाजपा के मागर्दशक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी भले ही पार्टी मुख्यालय न पहुंचे हों लेकिन कई दिग्गज नेता इस सवाल को नजरअंदाज कर तारीफ ही कर रहे थे। गृह मंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि इस फैसले से पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह है और आने वाले दिनों में भाजपा और मजबूत होगी।
जो भी लेकिन शाह की राह में चुनौतियां बहुत होंगी। सबसे बड़ी चुनौती उन राज्यों को लेकर है जहां भाजपा की सरकार पहले रह चुकी है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड पर शाह का विशेष जोर है। क्योंकि असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पुद्दुचेरी में भले ही इस साल विधानसभा चुनाव है लेकिन यहां भाजपा की कभी सरकार नहीं रही। अगर भाजपा अपने वोट प्रतिशत में बढ़त कर लेती है तो यह भाजपा अध्यक्ष के लिए सुकून भरा होगा और अगर किसी राज्य में सरकार बन जाए तो बड़ी उपलब्धि कही जाएगी। गुजरात में भाजपा की साख को बचाना, हिमाचल प्रदेश में पार्टी को सत्ता में वापस लाना, पंजाब में गठबंधन के साथ सरकार बनाना और गोवा में सत्ता बचाए रखने की चुनौती शाह के सामने है। भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रभात झा इन चुनौतियों के बारे में कहते हैं कि इस तरह के सवाल विरोधी दलों के लोग करते हैं। भाजपा के कामकाज को जनता स्वीकार करती है और आने वाले समय में पार्टी और मजबूत होगी। भाजपा अध्यक्ष बनने के अगले ही दिन बाद शाह ने पश्चिम बंगाल में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार की तारीफ की और कहा कि केंद्र सरकार ने हर मोर्चे पर देश को आगे ले जाने का काम किया है। उधर शाह के अध्यक्ष बनने के बाद भी मोदी ने ट्वीट किया कि, 'मुझे विश्वास है कि पार्टी उनके नेतृत्व में नई ऊंचाइयों को छुएगी।
शाह के अध्यक्ष बनने के बाद सरकार और संगठन में फेरबदल आगे की चुनौतियों से निपटने में कब और कितना कारगर होगा इसका लोगों को इंतजार है। शाह के एक करीबी नेता के मुताबिक पार्टी के कार्यक्रमों का विस्तार करने के उद्देश्य से भाजपा अध्यक्ष ने 19 विभाग और 10 प्रकल्पों का गठन किया। इन सभी विभागों और प्रकल्पों के कार्यक्रमों की जो रूपरेखा पहले तय की गई थी उसे अब और विस्तार दिया जाएगा। मतलब साफ है कि पूर्ण कार्यकाल नहीं होने के कारण शाह के कई कार्यक्रमों को गति नहीं मिल पाई थी लेकिन अब उन कार्यक्रमों पर जोर दिया जाएगा जो अभी तक मंद पड़ी हुई थी। सूत्रों का कहना है कि इनमें कई कार्यक्रम संघ की ओर से निर्देशित किए गए थे लेकिन दिल्ली और बिहार की हार के बाद मायूस कार्यकर्ताओं को इस बात का एहसास नहीं था कि शाह की कुर्सी बरकरार रहेगी। लेकिन अब शाह समर्थक कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा साथ ही संघ का भी साथ मिलेगा ञ्चयोंकि उन बिन्दुओं को अमल में लाया जाएगा जो सुझाए मिले थे।