बिहार चुनाव: आतिथ्य की कीमत चाहता है जेएमएम
झारखंड में सत्ताधारी पार्टी जेएमएम ( झारखंड मुक्ति मोर्चा) बिहार के विधानसभा चुनाव में गंभीरता के साथ खुद को आजमाना चाहता है। पार्टी के अनुसार झारखंड में गठबंधन का हिस्सा, राजद के साथ तालमेल के आधार पर बिहार में एक दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है।
महागठबंधन में बिहार के लिए सीटों को बटवारा हो चुका है, ऐसे में राजद को अपने 144 सीटों के कोटे में जेएमएम को एडजस्ट करना होगा। बिहार के विभाजन के बाद भी झामुमो बिहार में चुनाव लड़ता रहा है। हर विधानसभा चुनाव में एक दर्जन से अधिक सीओं पर लड़ने के बावजूद सिर्फ 2010 के चुनाव में एक सीट चकाई जीतने में कामयाब रहा। मगर जीत का श्रेय जेएमएम के बदले उम्मीदवार सुमित सिंह को जाता है। सुमित बिहार के पुराने नेता, जेपी आंदोलन से निकले और नीतीश व लालू के शासन में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह के पुत्र हैं। सुमित ने भी कम समय में ही जेएमएम का दामन छोड़ दिया था।
कीमत चाहिए
जेएमएम बिहार में भी अपना विस्तार चाहता है। बिहार की तुलना में झारखंड छोटा प्रदेश होने के बावजूद 2019 के विधानसभा चुनाव में राजद को जेएमएम ने सात सीटें दी थीं। हालांकि, राजद का उम्मीदवार सिर्फ एक सीट पर कामयाब रहा। चतरा से सत्यानंद भोक्ता। एक उम्मीदवार जीतने के बाद भी हेमंत सोरेन ने कैबिनेट में स्थान दिया। भोक्ता श्रम मंत्री हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पशुपालन घोटाला मामले में सजा पाने के बाद रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के कैदी हैं। इलाज के नाम पर लंबे समय से रिम्स ( राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान) में भर्ती हैं। कोरोना के खतरे के हवाले उन्हें रिम्स निदेशक के तीन एकड़ में फैले आवास, केली बंगला में रखा गया है। जब भाजपा शासन में रघुवर दास की सरकार थी, लालू प्रसाद के प्रति सख्ती थी। विशेष परिस्थिति को छोड़ सिर्फ शनिवार को तीन लोगों के मिलने की अनुमति थी। हेमंत शासन में लालू प्रसाद को क्या राहत मिली, बताने की जरूरत नहीं। खबरें मीडिया में जगह पाती रहीं, सोशल मीडिया में वायरल रहीं। जाहिर है विधानसभा चुनाव में जेएमएम आतिथ्य की कीमत चाहेगा। झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं लालू प्रसाद और उनके पुत्र, बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से बात हुई है। 12 सितंबर को तो हेमंत सोरेन ही लालू प्रसाद से केली बंगला में मिले थे। सुप्रियो कहते हैं कि बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ने की हमारी सांगठनिक तैयारी पूरी है। तालमेल नहीं हुआ तो ज्यादा सीटों पर लड़ेंगे। हमारी पहली प्राथमिकता गठबंधन में लड़ने की है। हाल के विधानसभा चुनाव में राजद के लिए झारखंड में सात सीट छोड़े थे। जीतने वाले एकमात्र सत्यानंद भोक्ता के मंत्री बनाया। लालू प्रसाद की सेहत-सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं। इसके एवज में हमें भी तो कुछ मिलना चाहिए।
नहीं रहा है प्रभाव
बिहार में जेएमएम का परफार्मेंस खराब रहा है। 2015 में जेएमएम ने बिहार में 32 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे मगर एक पर भी जीत हासिल नहीं हुई। 2010 में 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे मगर सिर्फ एक सीट चकाई से सुमित सिंह जीते। मनिहारी और कटोरिया अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें हैं। इनमें से एक राजद और एक कांग्रेस के कब्जे में है। जेएमएम की इन दोनों सीटों सहित कोई एक दर्जन सीटों पर नजर है। ज्यादातर सीटें झारखंड सीमा से लगने वाली हैं और राजद के प्रभाव वाली हैं। राजद के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार राजद इस बार लोकसभा चुनाव वाली गलती नहीं दोहरायेगा। करीब डेढ़ सौ सीटों पर लड़ना चाहेगा ताकि हालात बेहतर रहे। इसलिए महागठबंधन में छोटी पार्टियों को बहुत महत्व नहीं दिया गया। बहरहाल महागठबंधन में तालमेल की तस्वीर साफ हो गई है। राजद के हिस्से 144, कांग्रेस 70, भाकपा माले 19, भाकपा 6 और माकपा को 4 सीटें मिली हैं। अब राजद को अपने कोटे में से ही जेएमएम को सीटें देनी होंगी। जेएमएम के एक बड़े नेता के अनुसार हमारी मांग एक दर्जन की है मगर आधा दर्जन सीटों पर भी बात बन सकती है। वैसे एक बात तो तय है कि कांटे की लड़ाई में जेएमएम के खाते में जितनी अधिक सीटें जायेंगी जदयू-भाजपा गठबंधन की राह उतनी ही आसान होगी।