भाजपा ने बिहार में झोंकी पूरी ताकत, जदयू के दो ‘वार रूम’
केंद्र में सरकार बनने के बाद से शायद पहली बार ही है जब सिन्हां के साथ ही पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को भी बिहार में अपने 40 स्टार चुनाव प्रचारकों में शामिल किया है। सिन्हा पिछले एक अरसे से अपने बयान और टिप्पणियों के जरिए बिहार में भाजपा के लिए असुविधाजनक स्थिति पैदा करते रहे हैं। आडवाणी और जोशी भी दबी जुबान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालार भाजपाध्यक्ष अमित शाह और उनकी टीम की कार्यशैली के आलोचक रहे हैं। ऐसे में बिहार में इन नेताओं को स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किए जाने पर यहां भाजपा मुख्यालय में खास उत्साह नहीं दिख रहा है। प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि प्रधनमंत्री मोदी के साथ इन नेताओं के 36 के आंकड़े को देखते हुए कौन उम्मीदवार इन नेताओं को अपने क्षेत्र में बुलाना पसंद करेगा और कौन उनकी आवभगत में सामने आएगा। एक और नेता कहते हैं कि सिन्हा जी को पार्टी का जितना नुकसान करना था, वह वे नीतीश कुमार और लालू प्रसाद से अपनी निकटता बताकर पहले ही कर चुके हैं। अब लगता भी नहीं कि वह बिहार में भाजपा के लिए सघन चुनाव अभियान चलाएंगे। उनके किसी भी करीबी को विधानसभा का टिकट नहीं मिला है।
दूसरी तरफ भाजपा बिहार विधानसभा के अभूतपूर्व साबित होने जा रहे चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कोई कसर छोड़ने के मूड में नहीं है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता अमित शाह से हुई बातचीत के हवाले से कहते हैं कि वह किसी भी कीमत पर बिहार का चुनाव जीतना चाहते हैं। रुपये पैसे की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। चुनाव अभियान के प्रथम चरण में तीन चार बड़ी चुनावी रैलियां कर चुके प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्रा से लौटने के बाद बिहार में तकरीबन एक दर्जन और चुनावी रैलियां करने वाले हैं। चुनाव भी तो उनके ही नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। भाजपा सूत्रों के अनुसार कोशिश यही है कि प्रधानमंत्री 12 अक्टूबर से पांच नवंबर तक पांच चरणों में होने वाले इस विधानसभा चुनाव में प्रत्येक चरण के अंतराल पर बिहार में कम से कम दो चुनावी रैलियां को संबोधित करें। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह भी थोड़े थोड़े अंतराल पर लगातार बिहार और खासतौर से राजधानी पटना में ही बने रहनेवाले हैं। मोदी सरकार के दर्जन भर मंत्री बिहार के विभिन्न हिस्सों में लगातार डेरा डाले पड़े हैं। तमाम मंत्रियों, पड़ोसी मध्यप्रदेश और झारखंड के मुख्यमंत्रियों को भी अधिकतम समय बिहार में देने को कहा गया है। केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार और भाजपा के महासचिव भूपेंद्र यादव की देखरेख में पड़ोसी राज्यों के मंत्रियों और सांसदों को भी उनकी उपयोगिता के हिसाब से विभिन्न हिस्सों में तैनात किया गया है।
बिहार से राजग सरकार के सभी मंत्रियों-रामविलास पासवान, राधामोहन सिंह, रविशंकर प्रसाद, उपेंद्र कुशवाहा, राजीव प्रताप रूडी, रामकृपाल यादव, गिरिराज सिंह और पड़ोसी उत्तर प्रदेश से मनोज सिन्हां को चुनाव संपन्न होने तक बिहार में ही जमे रहने को कहा गया है। इन नेताओं के साथ ही पार्टी के तमाम प्रवक्ताओं से दिल्ली और पटना के भाजपा मुख्यालयों में बने रहने और मीडिया के साथ सघन समन्वय बनाने और उनके लिए उपलब्ध रहने को कहा गया है। पटना के कुछ पत्रकारों, पूर्व पत्रकारों को भी परोक्ष और अपरोक्ष रूप से मीडिया को साधने के काम में लगाया गया है। ज्ञानवर्धन मिश्र बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष मंगल पांडेय के मीडिया प्रभारी हैं तो दिल्ली में अंग्रेजी प्रिंट मीडिया के साथ जुड़े रहे देवेश कुमार को प्रदेश भाजपा का प्रवक्ता बनाया गया है। भाजपा मुख्यालय में पार्टी के राज्यसभा सदस्य आर.के. सिन्हा के पुत्र ऋतुराज की देखरेख में एक ‘वार रूम’ भी बना है हालांकि भाजपा सूत्रों के अनुसार रणनीति से संबंधित बातें अमित शाह, अनंत कुमार और धर्मेंद्र प्रधान के स्तर पर ही तय की जाती हैं।
नीतीश कुमार ने भी बनाए ‘वार रूम’
जदयू, राजद और कांग्रेस को मिलाकर बने महागठबंधन के नेता, राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने चुनाव अभियान को गति देने के लिए दो वार रूम बनाए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान की देखरेख करनेवाले प्रशांत किशोर एक अरसे से नीतीश कुमार के साथ सक्रिय हैं। उनकी बड़ी तस्वीरों और लोकलुभवन नारों के साथ बड़े बड़े होर्डिंग लगाने के से लेकर घर घर दस्तक जैसे चुनाव प्रचार के तरीकों के पीछे उनका ही दिमाग बताया जा रहा है। वह नीतीश कुमार और उनके करीबी राज्यसभा सदस्य आर.सी.पी. सिंह के निवास से ही सक्रिय हैं। राज्यसभा के सदस्य और पत्रकार-बिहार में बहु-प्रसारित हिंदी दैनिक प्रभातखबर के प्रधान संपादक हरिवंश भी पूर्व राजनयिक एवं राज्यसभा सांसद पवन वर्मा के साथ उनके निवास से सक्रिय हैं। जदयू के सांसद अली अनवर कहते हैं कि भाजपा ने इसी तरह से दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी पूरी राजनीतिक और आर्थिक ताकत झोंकी थी लेकिन चुनाव परिणाम सबके सामने हैं। भाजपा और इसके सहयोगियों का यही हाल बिहार में भी होने वाला है।