असमंजस में राजद-जदयू के नेता और भाजपा के सहयोगी दल
मुजफ्फरपुर में भाजपा के सभी सहयोगी दलों के नेता एक साथ मंच पर थे लेकिन सभी के मन में एक शंका बरकरार थी कि चुनाव तक गठबंधन की क्या स्थिति रहती है। वैसे भी सूत्र बताते हैं कि पूर्व सांसद साबिर अली को भाजपा में शामिल कराए जाने से पासवान नाराज हैं। इससे पहले भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने ट्वीट कर साबिर अली को भाजपा में शामिल किए जाने को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। उस विवाद के बाद साबिर को भाजपा में शामिल नहीं किया गया। लेकिन भाजपा की रणनीति साफ है कि बिहार में मिशन 185 का लक्ष्य पूरा करना है इसके लिए 'येन-केन-प्रकारेण’ वाली नीति पार्टी ने अपनाई हुई है।
भाजपा नेताओं की इसी नीति से गठबंधन के सहयोगियों में निराशा है। लोजपा के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि सहयोगी दलों की सबसे बड़ी ङ्क्षचता सीटों के बंटवारे को लेकर है। अभी तक तो गठबंधन में लोजपा और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी थी लेकिन हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा के भी इसमें शामिल हो जाने और साबिर अली को भी भाजपा में लेने से नाराजगी बढ़ी है। लोजपा नेता के मुताबिक रामविलास पासवान की नाराजगी के बावजूद भाजपा ने साबिर अली को पार्टी में शामिल कर लिया। वहीं दूसरी ओर जीतनराम मांझी का नाम बार-बार भाजपा नेता लेते हैं। यही नहीं मुजफ्फरपुर की रैली में जब प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार पर हमला बोला तो वहां भी मांझी ही याद आए। लोजपा नेता के मुताबिक अगर भाजपा को लगता है कि मांझी को साथ लेकर चुनाव जीता जा सकता है तो बाकी सहयोगी दलों से किनारा कर ले।
इतना ही नहीं रालोसपा प्रमुख और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी भी सीटों के बंटवारे को लेकर बनी हुई है। इसलिए समय-समय पर वह भाजपा नेताओं को नसीहत भी देते रहते हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर टिप्पणी की थी तब कुशवाहा ने कहा था कि भाजपा नेताओं को अपनी भाषा पर संयम बरतना चाहिए। कुशवाहा की इच्छा है कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव में 60 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़े। रालोसपा नेताओं ने तो मुख्यमंत्री पद के लिए भी कुशवाहा का नाम आगे कर दिया।
भाजपा के बढ़ते सहयोगियों को देखकर कुशवाहा भी अंदर से नाराज बताए जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के साथ बगावत करने वाले जनता दल यूनाइटेड के कुछ विधायक तो भगवा रंग में रंगते जा रहे हैं लेकिन मांझी की पार्टी को भी कम से कम 50 सीटों की दरकार है। मांझी के साथ बगावत करने वाले एक विधायक के मुताबिक आज भाजपा की रणनीति है कि बागी विधायकों को पार्टी में शामिल कराके चुनाव लड़ाया जाए जबकि कई बागी विधायक इसके पक्ष में नहीं हैं। विधायक के मुताबिक हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा के बैनर तले चुनाव लडऩे से बाद का विकल्प खुला रहेगा।
भाजपा अपने सहयोगियों को कितना खुश कर पाती है यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन चुनाव से पहले भाजपा के सहयोगियों की नाराजगी की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। मजेदार बात तो यह है कि मुजफ्फरपुर की रैली में एक तरफ नरेंद्र मोदी बिहार सरकार को कोस रहे थे तो दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा नीतीश कुमार की तारीफ कर रहे थे। सिन्हा ने तो यहां तक कहा कि नीतीश कुमार 'सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री’ हैं। बाद में सिन्हा ने सफाई भी दी कि वह भाजपा के साथ हैं लेकिन नीतीश की कुशलता की सराहना की। इससे जाहिर है कि भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
राजग गठबंधन के अंदर चल रही नाखुशी की लहर विपक्षी दलों में भी दिखाई पड़ रही है। जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन के बीच वाकयुद्घ जारी है। विधानपरिषद चुनाव में जिस तरह से राजद उम्मीदवारों की जीत हुई और जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों की हार हुई उसके बाद यह चर्चा तेज हो गई कि गठबंधन के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इन दोनों दलों के गठजोड़ के साथ खड़ी कांग्रेस के नेता भी आपसी लड़ाई से नाराज बताए जा रहे हैं। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक जिस तरह से आपसी बयानबाजी चल रही है उससे तो भाजपा को शिकस्त देने की बात सोची ही नहीं जा सकती।
क्योंकि भाजपा गठबंधन के अंदर जो लड़ाई है वह सतह पर नहीं आती जबकि राजद और जदयू के नेता खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ बोलते रहते हैं। जदयू अध्यक्ष शरद यादव कहते हैं कि राजनीति में टीका टिप्पणी चलती रहती है लेकिन गठबंधन पूरी तरह से साथ है और बिहार में नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे। वहीं दूसरी ओर राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह कहते हैं कि केवल दल मिलने से कुछ नहीं होने वाला दिल भी मिलना चाहिए। रघुवंश की यह टिप्पणी दरअसल चुनाव प्रचार के लिए लगाए गए नीतीश कुमार की होर्डिंग्स को लेकर है। सिंह का कहना है कि प्रचार के लिए लगाए गए पोस्टरों पर केवल नीतीश कुमार की तस्वीर है, अन्य नेताओं की तस्वीर गायब है। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और महागठबंधन के प्रमुख मुलायम सिंह यादव की भी तस्वीर नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार बिहार का चुनाव साफ तौर पर नरेंद्र मोदी बनाम नीतीश कुमार है। इसलिए बिहार की सडक़ों पर जो होडिंग्स दिखाई पड़ रही हैं उसमें या तो नरेंद्र मोदी नजर आ रहे हैं या फिर नीतीश कुमार। चुनावी सर्वेक्षण भी अपने-अपने तरीके से बिहार विधानसभा चुनाव में हार-जीत दिखाने लगे हैं। जी-न्यूज के ओपिनियन पोल में राजग को मात्र चार सीटों से आगे बताया गया है। वहीं एबीपी न्यूज और नीलसन के ओपिनियन पोल के मुताबिक लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी रंग लाने वाली है। बिहार में 52 फीसदी लोग नीतीश कुमार को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं जबकि 42 फीसदी लोगों की पसंद सुशील मोदी हैं। लोकप्रियता के मामले में नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पीछे छोड़ दिया है। नरेंद्र मोदी बिहार के 45 फीसदी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। ओपिनियन पोल के मुताबिक नीतीश-लालू और कांग्रेस गठबंधन को करीब 129 सीटें मिलती दिख रही हैं जबकि भाजपा गठबंधन के खाते में 112 सीटें आ सकती हैं। सर्वे में 48 फीसदी लोगों की राय है कि बिहार में लालू-नीतीश, कांग्रेस और एनसीपी की जोड़ी रंग लाने वाली है। वहीं 48 फीसदी लोगों को लगता है कि बिहार में भाजपा गठबंधन की सरकार बन सकती है।