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25 November 2017

क्या पाटीदार आंदोलन को तोड़ने में सफल हो गयी भाजपा?

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-डॉ मेराज हुसैन

गुजरात की सियासत में इस बार पाटीदारों की चर्चा महत्वपूर्ण रूप से हो रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राजनीतिक पार्टी इस समाज को साधने में लगी हुई है। पाटीदार समाज बहुत पहले से ही एक वैभवपूर्ण समाज की तरह रहा है। इसकी शौर्यगाथा का साक्षात्कार सरदार वल्लभ भाई पटेल से किया जा सकता है जो देश के पहले गृहमंत्री रहे। गुजरात का पाटीदार समुदाय सूबे में किंग मेकर माना जाता है। राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 50 सीटें ऐसी हैं जिसे पाटीदार समाज का वोटर प्रभावित कर सकता है और 10 पाटीदार बहुल्य सीटें ऐसी जिसपर उनके वोट किसी भी उमीदवार को भी हरा या जीता सकते है। पटेलो का राजनीति पर भी विस्तृत प्रभाव रहा है, मौजूदा सरकार में भी करीब 40 विधायक और 7 मंत्री पटेल समुदाय से ही हैं।

वोटो की बात करें तो, पाटीदार समाज बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक रहा है परंतु 2014 में नरेंद्र मोदी के गुजरात के सीएम से देश का पीएम बन जाने के बाद, पाटीदारों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हो गई। इसका बड़ा श्रेय हार्दिक पटेल और PAAS (पाटीदार अनामत आंदोलन समीति) को जाता है। हार्दिक पटेल गुजरात में पटेल समुदाय द्वारा ओबीसी दर्जे की मांग को लेकर जारी आरक्षण आंदोलन के युवा नेता हैं, जो ओबीसी दर्जे में पटेल समुदाय को जोड़कर सरकारी नौकरी और शिक्षा में आरक्षण चाहते हैं।

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 जुलाई 2015 में PAAS (पाटीदार अनामत आंदोलन समीति) की अगुआई में सार्वजनिक हुए पाटीदार आंदोलन ने पाटीदारों पर बीजेपी की पकड़ को बेशक कमजोर कर दिया है।  हार्दिक पटेल बीजेपी के खिलाफ लगातार माहौल बनाने के लिए हर संभव कोशिश में लगे हुए हैं, लेकिन इन सब के बावजूद एक ओर जिन "पाटीदारों" पर राजनीति कर हार्दिक पटेल एक के बाद एक झटका बीजेपी को देते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गुजरात चुनावों से पहले ही खुद पाटीदारों के बीच दरार पड़ती दिखाई दे रही है।  एक समय में हार्दिक पटेल का साया कहे जाने वाले केतन पटेल ने हाल ही में बीजेपी ज्वाइन कर ली, जो आरक्षण आंदोलन के दौरान हार्दिक के इर्द-गिर्द नजर आते थे। बेशक इस वाकये को हार्दिक पटेल के लिए बड़े झटके के तौर पर नहीं देखा जा रहा लेकिन लगातार पाटीदार आरक्षण से जुड़े नेताओ का बीजेपी में जाना अवश्य ही हार्दिक के लिए चिंता का विषय है जिससे आंदोलन पर भी कहीं न कहीं असर पड़ता दिखाई दे रहा है।  इससे पहले भी हार्दिक पटेल के बेहद करीबी रेशमा पटेल और वरुण पटेल भी बीजेपी का दामन थाम चुके है। हार्दिक पटेल के इन करीबियों ने न केवल बीजेपी का हाथ थामा बल्कि हार्दिक पर पाटीदार समाज के साथ गद्दारी का आरोप भी लगाया, इनके अलावा इससे पहले चिराग पटेल और महेश पटेल भी PAAS को छोड़ सत्ताधारी बीजेपी के साथ जा चुके है जिसके बाद हार्दिक का डरना स्वाभाविक है। आखिरकार गुजरात चुनाव उनके आगे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो गया है| जहां एक ओर वो बीजेपी के विरोध और उसे हराने का खुलेआम एलान कर चुके है तो वही दूसरी ओर उनके और कांग्रेस के बीच आरक्षण को लेकर सहमति बन चुकी है और PAAS के संयोजक ललित वसोया ने हाल ही में ऐलान किया कि पाटीदार अनामत समिति (पास) विधानसभा चुनावो में कांग्रेस का समर्थन करेगी। मगर PAAS में पड़ती फूट से बीजेपी को फायदा पंहुचा सकती है|

 राज्य में किसी भी पार्टी के लिए सत्ता में आने के लिए पाटीदारों का वोटबैंक काफी मायने रखता है। पाटीदार गुजरात में 15 फीसदी है औऱ इस 15 फीसदी पाटीदारों में 60% लेउवा (पटेल) है और 40% कड़वा (पटेल) है| बीजेपी के पास 182 में से 44 पाटीदार विधायक है। पाटीदारों की भूमिका इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि 2 दशक से बीजेपी को सत्ता में रखने में पाटीदारों की अहम भूमिका रही है। लेकिन कडवा और लेउआ पटेलो में पड़ती फूट न सिर्फ हार्दिक पटेल बल्कि राहुल गांधी अर्थात कांग्रेस पार्टी के लिए भी बड़ा झटका साबित हो सकती है गुजरात चुनावों से पहले ही पाटीदार कांग्रेस और बीजेपी को समर्थन देने को लेकर दो धड़ों में बंटते नजर आ रहे हैं|

हाल ही में मैं मेरी गुजरात यात्रा के दौरान करीब 70 से अधिक पाटीदार समुदाय के लोगो से बातचीत हुई, जिसमें उनके रुझान बंटे हुए नजर आये, कुछ कांग्रेस के समर्थन में नजर आये तो कुछ ने बीजेपी के विकल्प पर सहमति दिखाई जिससे साफतौर पर कहा जा सकता है की पाटीदार पूर्णत: इस चुनाव में एक तरफा वोट नहीं करेंगे|

ऐसी परिस्थितियों में अगर भाजपा को भाग्यवान कहा जाए तो गलत नहीं होगा, या यूं कहे कि शायद भाजपा पाटीदार आंदोलन को तोड़ने में सफल हो गयी है।

 

(लेखक राजनीतिक चिंतक, रणनीतिकार एवं ग्लोबल स्ट्रेटेजी ग्रुप के फाउंडर चेयरमैन है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में सेंसर बोर्ड के सदस्यरह चुके हैं।)

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TAGS: BJP, succeeded, breaking, Patidar agitation, Gujrat
OUTLOOK 25 November, 2017
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