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01 December 2015

जातियों को रिझाने का दौर

पीटीआई

सपा बिहार की तर्ज पर पिछड़ों को एकजुट कर रही है। इसलिए पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित सम्मेलन में मुलायम ने कहा कि समाजवादी सरकार ने अति पिछड़ों को अनुसूचित जाति की सुविधाएं देने की पहल की लेकिन बसपा और कांग्रेस की सरकारों ने उनसे ये सुविधाएं छीन ली। उत्तर प्रदेश के चुनावों में जातीय समीकरण काफी मायने रखता है। बिहार की तरह यहां भी जातियों को लामबंद करने के लिए सियासी दल समीकरण बैठान में जुट गए हैं। समाजवादी पार्टी की प्रदेश में सरकार है और पिछड़े वर्ग के कई नेताओं को इस पार्टी ने लाभान्वित भी किया है। लेकिन आशंका इस बात की है कि क्या‍ चुनाव तक यह समीकरण बना रह पाएगा। हर राजनीतिक दल का अपना गणित है और हर नेता अपने-अपने तरीके से समझाने में जुट गया है। प्रदेश में सबसे ज्यादा 39 फीसदी वोटर पिछड़े वर्ग से हैं। जबकि अनुसूचित जाति 25 फीसद और सवर्ण 18 फीसद है। जबकि मुसलमान वोटरों की संख्या‍ भी 18 फीसद है। सियासी समीकरणों पर नजर डाले तो पिछड़े वर्ग में सर्वाधिक 12 फीसदी यादव मतदाता हैं जिन पर सपा की नजर है वहीं अनुसूचित जाति में जाटव मतदाताओं की संख्या‍ 15 फीसदी है। जिस पर बसपा का दावा मजबूत है। बाकी 18 फीसद मुसलमान मतदाताओं पर सपा, बसपा और कांग्रेस का अलग-अलग दावा है। बाकी जातियों को लेकर रूख साफ है कि वह समय के साथ सियासत पर नजर रखते हैं। मुस्लिम मतदाताओं का रूख पूरी तरह से साफ है कि जो भी दल भाजपा को शिकस्त देगा वह उसके साथ रहेंगे। लेकिन अन्य जातियों को लेकर सभी दल सतर्क हैं।

समाजवादी पार्टी का दावा है कि पिछड़ा वर्ग उसके पक्ष में एकजुट है तो बसपा नेताओं का भी दावा है कि इस बार भी विधानसभा चुनाव में पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सत्ता हासिल करेगी। वहीं भाजपा सवर्णों के अलावा पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के बीच सेंध लगाने की तैयारी में है। अनुसूचित जाति में भी गैर जाटव जातियों को अपने पाले में करने के लिए भाजपा प्रयास में जुट गई है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक बिहार चुनाव में मिली हार के बाद से सभी लोग सतर्क हो गए हैं। ऐसे में पार्टी जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाने जा रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का कार्यकाल खत्म होने वाला है ऐसे में पार्टी नए चेहरे पर भी दांव लगा सकती है। भाजपा नेता के मुताबिक अगर पार्टी प्रदेश में ब्राह्मण चेहरा आगे करके चुनाव लड़े तो सफलता मिल सकती है। प्रदेश में बाह्मण मतदाताओं की संख्या‍ करीब 8 फीसद है। भाजपा नेता के मुताबिक सपा पिछड़ा और बसपा दलित चेहरे के साथ मैदान में है।

जातियों में उलझे इन दलों से नाराज मतदाता सवर्ण मुख्य‍मंत्री के पक्ष में जा सकते हैं। लेकिन भाजपा किसी एक चेहरे के साथ मैदान में उतरना नहीं चाहती। इससे अंदरूनी कलह उभरकर सामने आ सकती है। वहीं बिहार चुनाव से उत्साहित कांग्रेस प्रदेश में महागठबंधन बनाने की फिराक में है। लेकिन जानकार बताते हैं कि सपा, बसपा और कांग्रेस एक साथ हो जाएं यह संभव नहीं है। हालांकि मुख्य‍मंत्री अखिलेश यादव महागठबंधन बनाने के पक्ष में नजर आ रहे हैं लेकिन बसपा की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस का महागठबंधन का जो मंसूबा है वह कितना सफल हो पाएगा यह तो समय ही बताएगा। क्यों‍कि बिहार चुनाव में महागठबंधन में शामिल होने के कारण पार्टी के विधायकों की संख्या‍ में इजाफा हुआ और वोट प्रतिशत भी बढ़ा। ऐसा ही प्रयोग प्रदेश में कांग्रेस चाहती है। दूसरी ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल ने महागठबंधन बनाए जाने पर जोर दिया है। पार्टी नेता डा. मसूद अहमद का कहना है कि बिहार चुनाव के बाद अब यह तय हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराना है, तो उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन करना पड़ेगा। डा. मसूद कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिना रालोद के महागठबंधन अधूरा रहेगा।
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश मे महागठबंधन बनाने को लेकर चर्चाएं तो शुरू हो गई हैं लेकिन संभव नहीं है कि भाजपा विरोधी दल एक साथ एक मंच पर आ जाएं। बनारस के डीएवी कॉलेज में प्रोफेसर सतीश कुमार सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की सियासत भले ही जाति आधारित हो लेकिन बिहार से अलग है। अभी उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग को एकजुट करना मुश्किल है। डा. सिंह के मुताबिक महागठबंधन में सपा जहां कांग्रेस को पसंद नहीं करेगी वहीं बसपा और सपा एक साथ आने से कतराएंगे। वैसे भी बसपा नेता यह मान चुके हैं कि सत्ता विरोधी लहर का फायदा पार्टी को मिलने जा रहा है। बसपा के एक रणनीतिकार के मुताबिक पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी और नतीजों के बाद ही किसी विकल्प पर चर्चा करेगी। इसलिए पार्टी ने अभी से सोशल इंजीनियरिंग को अपना मुख्य‍ हथियार बना लिया है। पार्टी के रणनीतिकार बताते हैं कि प्रदेश में अगर बसपा भाजपा को हराने में सक्षम होगी तो मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव पार्टी की ओर हो जाएगा। ऐसे में बसपा को फायदा मिल सकता है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी प्रदेश में सियासी जमीन मजबूत करने में जुट गए हैं। लेकिन किसी पार्टी के साथ गठबंधन के बिना कांग्रेस का वजूद नहीं है। ऐसे में कांग्रेस मजबूत साथी की तलाश में तो है लेकिन वह तलाश तभी पूरी होगी जब सपा या बसपा से एक दल कांग्रेस के साथ हो।

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TAGS: उत्तर प्रदेश, राजनीति, मायावती, मुलायम सिंह यादव, कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, नरेंद्र मोदी, लक्ष्‍मीकांत वाजपेयी, bsp, sp, mulayam singh yadav, mayavati, narendra modi, bjp, congress
OUTLOOK 01 December, 2015
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