इशरत मामले में पक्ष-विपक्ष की धारें हुई तेज
गुजरात में फर्जी एनकाउंटर में मारी गई इशरत जहां को लेकर राजनीति गरम हो गई है। संसद में इस पर तीखी बहस और घेराबंदी होने की संभावना है। पूर्व गृह सचिव जी.के. पिल्लै के इस विवादित बयान कि कांग्रेस सरकार ने इशरत के मामले में हलफनामा बदला था, भाजपा को कांग्रेस पर निशाना साधने का मौका जरूर दिया, लेकिन इस मामले की पड़ताल करने वाली स्पेशल इंवेस्टीगेटिव टीम (एसआईटी) में शामिल रहे अधिकारी सतीश वर्मा द्वारा इशरत के एनकाउंटर को पूर्वनियोजित हत्या कहने लगता है कि दोनों पक्ष इस मुद्दे पर पूरी मोर्चाबंदी के मूड में है।
इस बीच जी.के पिल्लै के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब माने जाने वाले उद्योगपति गौतम अडानी समूह की कंपनी अडानी पोटर्स में स्वतंत्र निदेशक के रूप में काम करने की बात सामने आई है। इससे भी विपक्ष को यह नया आधार मिल गया है कि इतने सालों तक चुप रहने के बाद आखिर अब उन्होंने इस मसले पर क्यों बोला।
सतीश वर्मा के बयान ने अभी तक इस मामले पर अदालत में चली कार्रवाई और फैसले की ही पुष्टि की है, जहां इशरत समेत चार लोगों की हत्या को फर्जी एनकाउंटर माना गया था। गौरतलब है कि इस फर्जी एनकाउनटर के दोषी पुलिस अधिकारियों को सजा भी सुनाई गई थी। एसआईटी के पूर्व अधिकारी ने दो टूक शब्दों में कहा कि हमने अपनी जांच में पाया था कि इशरता और तीन लोगों को एक सोची समझी रणनीति के तहत मारा गया था। आईबी से इस बारे में कोई इनपुट नहीं था। उन्होंने कहा कि अब इस मामले को दोबारा सिर्फ इसलिए गलत ढंग से पेश किया जा रहा है ताकि इस पर राष्ट्रवाद की राजनीति हो सके और एक मासूम लड़की को दुर्दांत आतंकवादी घोषित किया जा सके। उन्होंने गृह मंत्रालय के पूर्व अधिकारी आरवीएस मणि द्वारा उनपर प्रताड़ना करने के आरोप को यह कह कर खारिज कर दिया कि मणि इन आरोपों को 2013 में भी लगा चुके थे।
इस बीच, इस सारे मामले पर एक बार फिर बहस राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया में तेज हो गई है। भाजपा इस मसले पर पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम को घेर रही है। कांग्रेस इस मामले में अपनी रणनीति को तैयार कर रही है। इसे लेकर दो दरफा जवाब देने पर विचार चल रहा है। पहला यह कि जो सरकार ने किया, वह सही था और उसके लिए पर्याप्त सबूत तत्कालीन गृह मंत्रालय के पास थे।