बागी विधायकों पर कार्रवाई का कदम विवादों के घेरे में
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के खिलाफ मुख्य विपक्षी भाजपा और नौ बागी कांग्रेसी विधायकों द्वारा दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस के मद्देनजर उनके द्वारा बागियों की विधानसभा सदस्यता समाप्त किए जाने के लिए नोटिस देने पर ही सवालिया निशान लग जाता है। उनका मानना है कि ऐसी परिस्थिति में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा की गई कार्रवाई एकतरफा मानी जाएगी और उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इस संबंध में उनका यह भी कहना है कि जब सदन में बजट ध्वनिमत से पारित हो गया तो व्हिप के उल्लंघन का सवाल कहां से उठा।
हालांकि, कुछ अन्य राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हो जाता तब तक कुंजवाल अध्यक्ष की कुर्सी पर बने रहेंगे और अपने अधिकार के तहत बागी विधायकों पर कार्रवाई कर सकते हैं। सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी का प्रयास है कि बागी कांग्रेसी विधायकों की सदस्यता समाप्त करवा दी जाए जिससे 70 सदस्यीय सदन की प्रभावी क्षमता 61 हो जाए और हरीश रावत सरकार सदन में आसानी से अपना बहुमत साबित कर सके। नौ बागी कांग्रेस विधायकों को छोड़कर फिलहाल रावत सरकार के पक्ष में 27 कांग्रेसी विधायकों के अलावा छह सदस्यीय प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा पीडीएफ का समर्थन है। अगर इसमें अध्यक्ष कुंजवाल को छोड़ दिया जाए तो भी सरकार के पक्ष में 32 विधायक हैं जबकि दूसरी तरफ 28 के संख्या बल वाली भाजपा के इस समय सदन में 26 विधायक हैं।
भाजपा के मसूरी से विधायक गणेश जोशी जहां फिलहाल जेल में बंद हैं वहीं उसके घनसाली से विधायक भीमलाल आर्य भाजपा से असंतुष्ट चल रहे हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि वह खुद को इस प्रक्रिया से अलग रखेंगे। इस संबंध में संपर्क किए जाने पर उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि पार्टी कांग्रेस विधानमंडल दल द्वारा लिए गए किसी भी फैसले के साथ खड़ी है। उधर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने अध्यक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ खडे कांग्रेसी विधायकों को नोटिस दिये जाने को असंवैधानिक बताया और कहा कि वह सदन के ज्यादातर विधायकों का विश्वास खो चुके हैं और ऐसे में उनके किसी नोटिस का कोई औचित्य नहीं है।