एम.एल. फोतेदार की पुस्तक ‘द चिनार लीव्स’ में क्या है खास
कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल
पुस्तक में कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाया गया है। राहुल राजनीति के लिए तैयार नहीं किए गए हैं। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने चापलूसों की राय पर राहुल को आगे बढ़ाने का मन बना लिया है। जबकि राहुल में अडिय़लपन है। नेता बनने की उनकी इंस्पिरेशन भी मजबूत नहीं है। राहुल राजीव की तरह राजनीति नहीं करना चाहते। उन्हें राजीव गांधी की तरह इस काम के लिए तैयार नहीं किया गया है। राजीव को इंदिरा ने तैयार किया था। राहुल और सोनिया के नेतृत्व को पार्टी के अंदर से चुनौती मिलना तय है। यह केवल वक्त की बात है कि ये चुनौती कब मिलती है।
सोनिया की आलोचना
उनमें (सोनिया) कई गुण होने के बावजूद पॉलिटिकल मैनेजमेंट स्किल्स की कमी है। उनके इर्द-गिर्द चापलूस नेताओं ने ये माहौल बनाने की कोशिश की है कि पिछले चुनावों में राहुल की सक्रियता के कारण कांग्रेस की सीटें बढ़ीं। सोनिया ने इसे मानते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को श्रेय नहीं दिया। राहुल को आगे बढ़ाने की उनकी इच्छा से पार्टी के अंदर दिक्कतें खड़ी हुई हैं।
इंदिरा की सियासी वारिस प्रियंका
प्रियंका गांधी का नाम पहले सारिका रखा जाना था, लेकिन कांग्रेस नेता सतीश शर्मा ने अपनी बेटी का नाम पहले ही सारिका रख लिया था, ऐसे में उनका नाम प्रियंका रखा गया। इंदिरा जी कहती थीं कि प्रियंका गांधी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। जब वह बड़ी होगी तो लोग मुझे भूल जायेंगे, पर उसे याद रखेंगे। फोतेदार ने दावा किया है कि इंदिरा जी ने उनसे कहा था कि प्रियंका बहुत आगे जायेगी और वह वहां तक पहुंचेगी, जहां मैं हूं। उनके दावे के अनुसार, इंदिरा जी ने उनसे कहा था कि मैं यह देखने के लिए नहीं रहूंगी, लेकिन आप इसे जरूर देखेंगे। इंदिरा राहुल को कभी अपने उत्तराधिकारी के रूप में नहीं देखती थीं, बल्कि वह प्रियंका को अपना उत्तराधिकार सौंपना चाहती थीं।
सोनिया की खामोशी
जब मैं राजीव जी से कहता था कि इंदिरा जी ने प्रियंका के बारे में क्या कहा है, तो वे प्रसन्न हो जाते थे, लेकिन सोनिया गांधी खामोशी ओढ लेती थीं। राजीव गांधी ने उनसे बातचीत में माना था कि प्रियंका गांधी एक दिन इस देश की प्रधानमंत्री बनेंगी। उन्होंने 1984 की चर्चा करते हुए कहा है कि इंदिरा जी उस दौरान कश्मीर के एक मंदिर गयी थीं. वहां एक सूखा पेड़ था. उस मंदिर के ज्योतिषी ने उनसे कहा था कि कुछ अमंगल होने वाला है। ध्यान रहे कि 31 अक्तूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गयी थी।
पीएम की होड़ में प्रणब
साल 2004 में केंद्र में कांग्रेस की जीत के बाद प्रणब मुखर्जी भी प्रधानमंत्री बनने की होड़ में थे लेकिन बाजी मनमोहन सिंह के हाथ लगी। इससे पहले वीपी सिंह सरकार के पतन के बाद साल 1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर.वेंकटरमन चाहते थे कि प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनें लेकिन राजीव गांधी कुछ और ही सोच रहे थे। प्रणब के बदले उन्होंने चंद्रशेखर का समर्थन किया था। फोतेदार ने अपनी इस किताब में लिखा है कि 1990 में वीपी सिंह के इस्तीफे के बाद पैदा राजनीतिक स्थिति के बारे में मशविरा के लिए उन्होंने राष्ट्रपति वेंकटरमन से मुलाकात की। इस दौरान राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि राजीव को मुखर्जी का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने लिखा है, 'मैंने राष्ट्रपति से आग्रह किया कि वह अगली सरकार का नेतृत्व करने के लिए राजीव को आमंत्रित करें क्योंकि वह लोकसभा में अकेले सबसे बड़े दल के नेता थे। इस पर राष्ट्रपति ने मुझे जोर देते हुए कहा कि मुझे राजीव गांधी को यह बताना चाहिए कि अगर वह प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी का समर्थन करते हैं तो वह उसी शाम उन्हें पद की शपथ दिला देंगे। राष्ट्रपति ने चंद्रशेखर के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की थी। हालांकि राजीव ने चंद्रशेखर का समर्थन किया था। चंद्रशेखर कई साल से पीएम बनने का सपना देख रहे थे और मौका मिलते ही उन्होंने इसे हासिल कर लिया।
सिंधिया की चाहत
किताब में बताया है कि प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा पालने वाले माधवराव सिंधिया ने साल 1999 में एक वोट से वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को समर्थन देने के बारे में मुलायम सिंह यादव की राय बदलने के लिए किस तरह अमर सिंह का इस्तेमाल किया था।
कैसे बने मनमोहन पीएम
वाजपेयी सरकार के बाद प्रधानमंत्री पद के उक्वमीदवार के तौर पर सोनिया की ओर से मनमोहन सिंह का नाम लिए जाने के बारे में फोतेदार ने किताब में लिखा है पार्टी में कई लोगों को जब पता चला कि सोनिया जी की पहली पसंद डॉ. सिंह हैं तो कुछ लोग नाराज हो गए। दिलचस्प बात यह है कि सोनिया गांधी की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए दावेदारी के पद में मनमोहन सिंह का नाम था। सिंह का कोई राजनीतिक आधार नहीं था और वह उनके नेतृत्व के लिए कभी खतरा नहीं बन सकते थे। साथ ही वह सिख समुदाय से संबद्ध थे जो ऑपरेशन ब्लूस्टार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों के कारण गांधी परिवार से बेहद नाराज था। इस तरह सिखों की कांग्रेस के प्रति नाराजगी कम हुई।
सीताराम केसरी ने कहा था
फोतेदार ने लिखा है कि जब वे केसरी का इस्तीफा कराने गए तो केसरी ने उनसे कहा था कि सोनिया गांधी उन्हें कुछ नहीं देगी। केसरी ने सोनिया की ओर इशारा करके कहा था कि आप इसके लिए कुछ भी कर दें यह आपको कोई पद नहीं देने वाली है। फिर भी फोतेदार उनका इस्तीफा लेकर आए। इसी तरह राजीव गांधी के सबसे करीबी दोस्त अमिताभ बच्चन का इस्तीफा भी माखनलाल फोतेदार ने ही कराया। बोफोर्स कांड के खुलासे के बाद अमिताभ चौतरफा घिरे थे और राजीव गांधी के करीबी सलाहकार चाहते थे कि उनका इस्तीफ कराया जाए। राजीव गांधी ने इस पर बात करने के लिए अमिताभ बच्चन को घर पर बुलाया। लेकिन करीब दो घंटे की बातचीत में भी वे इस्तीफे के लिए नहीं कह पाए। फिर वे अमिताभ को लेकर फोतेदार के कमरे में चले गए और वहां जाकर कहा कि 'अमिताभ तुमसे फोतेदार जी कुछ कहना चाहते हैं। फिर उन्होंने इस्तीफा लिखवाने का अप्रिय काम अपने कमरे में किया।