प्रधानमंत्री के प्रधानसचिव पर कोयला घोटाले की आंच
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर भले कानून बदला पर मिश्रा से संबंधित हितों के टकराव का एक नया विवाद आकार लेता दिख रहा है। नियुक्ति से पहले मिश्रा एक ऐसी कंपनी में निदेशक के तौर पर कार्य कर रहे थे जिस पर कोयला ब्लॉक आबंटन घोटाले के दाग लगे थे। फिर भी मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से जांच पूरी होने तक उस कंपनी द्वारा खनन जारी रखने की अनुमति मांगी थी। यह कंपनी उन 46 कंपनियों में शामिल है जिनको लेकर केंद्र सरकार ने हलफनामा देकर कहा था कि इनका आबंटन नहीं रद्द किया जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सभी आबंटन रद्द कर दिए। आउटलुक के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि भारत के नियंत्रक महालेखाधिकार (सीएजी) ने साल 2010 जिन कंपनियों के गलत तरीके से आबंटन का सवाल उठाया था उनमें से एक उषा मार्टिन है। इसकी वेबसाइट पर नृपेन्द्र मिश्रा का नाम बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की सूची में शामिल है। उषा मार्टिन को झारखंड के लोहार और डाल्टनगंज में कोयला ब्लॉक आबंटित किया गया था। दस्तावेज के मुताबिक नृपेन्द्र मिश्रा 22 मार्च 2010 से 26 मई 2014 के दौरान उषा मार्टिन लिमिटेड के निदेशक मंडल में रह चुके हैं, जबकि 5 अगस्त 2010 से 26 मई 2014 तक गिन्नी फिलामेंट्स लिमिटेड के स्वतंत्र गैर-कार्यकारी निदेशक रहे हैं। उषा मार्टिन की सालाना रिपोर्ट में भी मिश्रा का नाम निदेशक के रूप में दर्ज है। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना प्रधान सचिव क्यों बनाया जो कि ऐसी कंपनी के निदेशक थे जिनका नाम कोयला ब्लॉक के आबंटन घोटाले में सामने आ चुका है। एक लाख 85 हजार करोड़ रुपये से अधिक के इस घोटाले में जब सीबीआई ने जांच शुरू की तो कई रोचक तथ्य सामने आए थे। घोटाला सामने आने के बाद से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को भाजपा सहित कई दलों ने आड़े हाथों लिया था लेकिन आज जब भाजपा की सरकार बन गई तो इसी सरकार ने उसी घोटाले की एक दागी कंपनी के निदेशक को महत्वपूर्ण पद पर बिठा दिया, वह भी ऐसे समय में जबकि इस मामले की जांच सीबीआई कर रही हो।
टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के पूर्व अध्यक्ष रहे नृपेन्द्र मिश्रा की प्रधानमंत्री कार्यालय में हुई नियुक्ति ही विवादों में थी क्योंकि सरकार ने उस कानून को संशोधन करने के लिए अध्यादेश लागू किया जो मिश्रा की महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति प्रतिबंधित करता था। नृपेंद्र मिश्रा ट्राई के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए थे और नियमों के मुताबिक रिटायरमेंट के 2 साल बाद तक अध्यक्ष या सदस्य कोई नया पद नहीं ले सकते हैं, लेकिन मोदी सरकार ने अध्यादेश लाकर इस नियम को पलट दिया। उस समय कांग्रेस ने मिश्रा की नियुक्ति को लेकर सवाल उठाए थे। मिश्रा के उषा मार्टिन से संबंधों के मामले में भी कांग्रेस महासचिव दिज्विजय सिंह कहते हैं, 'अगर किसी व्यक्ति का ताल्लुक सीबीआई जांच घेरे में चल रहे कोल ब्लॉक आबंटन से है तो उसे महत्वपूर्ण पद पर नहीं बिठाया जाना चाहिए। इससे जांच प्रभावित होने की संभावना प्रबल होती है। सीबीआई जैसी संस्था सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन आती हैं और यह संभव है कि जो व्यक्ति किसी कंपनी का निदेशक रह चुका हो उस कंपनी पर हो रही जांच इस बात से प्रभावित हो सकती है कि उस कंपनी से संबंद्घ रहा व्यक्ति प्रधानमंत्री के कार्यालय में ही उच्च पद पर है।Ó मालूम हो कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा था कि सारे आवंटन रद्द कर दिए जाएं और जो ब्लॉक्स चल रहे हैं, उन्हें कोल इंडिया के हवाले किए जाए या 2जी स्पेक्ट्रम की तर्ज पर जब तक नए आवंटन नहीं होते 46 कोयला ब्लॉकों को चलने दिया जाए। इन 46 कंपनियों में उषा मार्टिन भी थी। 1 सितम्बर को हुई सुनवाई के दौरान भारत सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोर्ट सारे आवंटन रद्द कर देता है तो भी सरकार तैयार है, लेकिन हो सके तो उन 46 ब्लॉक्स को छोड़ दिया जाए जो या तो शुरू हो चुके हैं या शुरू होने वाले हैं। इसके लिए 295 रुपये प्रति टन का जुर्माना वसूला जा सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों को नहीं माना। राजनीतिक विश्लेषक शहजाद पूनावाला ने प्रधानमंत्री कार्यालय से सूचना के अधिकार के तहत 17 जुलाई 2014 को यह जानकारी मांगी कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय या प्रधानमंत्री ने अपने कार्यालय में किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया है जो कि ऐसी कंपनी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पहले कभी जुड़ा रहा हो जिसकी पहचान भारत के नियंत्रक महालेखाधिकार (सीएजी) ने कोयला ब्लॉक आवंटन में लाभार्थी कंपनी के तौर पर है। अगर ऐसा है तो उस व्यक्ति का नाम और पद बताया जाए। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय पूनावाला के सवाल का ठीक से जवाब नहीं दे पाया। पूनावाला सवाल उठाते हैं कि देश के सबसे बड़े कार्यालय में हितों के टकराव की बू आने वाली यह एक कहानी है। विडंबना देखिए कि इसी कोयला घोटाला मसले को लेकर भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर जमकर हमले बोले थे। लेकिन आज प्रधानमंत्री इस मसले पर मौन हैं। पूनावाला कहते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने जो जानकारी दी है वह गैर जरूरी और भ्रामक है। उन्होंने कहा कि जवाब मांगे जाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय वक्त मांगता रहा लेकिन किसी प्रकार की आपत्ति नहीं उठाई। सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने वाले एक शख्सियत के बारे में सही जानकारी देने में क्या अड़चन आ रही है। जबकि आमतौर पर होता यह है कि प्रधानमंत्री या उनके मंत्रिमंडल में अगर काम करने के लिए किसी व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है तो उसके लिए खुफिया ब्यूरो और सतर्कता विभाग से मंजूरी ली जाती है जबकि नृपेन्द्र मिश्रा के मामले में ऐसा क्यों नहीं किया गया। जानकार बताते हैं कि यह स्पष्ट रूप से हितों के टकराव का मामला बनता है। इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय इसका जवाब देने से बच रहा है। आउटलुक के पास उपलब्ध दस्तावेज पूनावाला के आरोपों की पुष्टि करते दिखते हैं। साथ ही पूरे मसले से यह संदेह भी पैदा होता है कि यदि सीबीआई द्वारा कोयला घोटाले की जांच में उषा मार्टिन के खिलाफ निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी जाती है तो भी क्या नृपेंद्र मिश्रा अपने पद पर बने रहेंगे।
वैसे भी नृपेन्द्र मिश्रा कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। उनके लिए खुद प्रधानमंत्री और सरकार ने अध्यादेश के जरिए पूरी प्रक्रिया बदल दी। उत्तर प्रदेश के 1967 बैच के आईएएस अधिकारी रहे मिश्रा 2009 में सेवानिवृत हुए। साल 2006 से 2009 तक मिश्रा टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के चेयरमैन रहे और इसी समय 2जी घोटाले की बात सामने आई। इसमें भी उनका नाम विवादों में रहा। मिश्रा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दूरसंचार सचिव का काम भी संभाल चुके हैं। इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों और विदेश में काम करने का भी अनुभव रहा है। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले की सुनवाई में दिल्ली की एक अदालत में अभियोजन पक्ष के गवाह के रुप में मिश्रा पेश हो चुके हैं। इस मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा आरोपी हैं। इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय से जानकारी मांगी गई लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उधर लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नृपेन्द्र मिश्रा के सीआईए एजेंट होने से संबंधित आरोपों को व्यक्तिगत स्तर पर देखने का अनुरोध किया है। ठाकुर ने एक अखबार की खबर को आधार बनाते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि 1992 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के प्रमुख सचिव मिश्रा ने अमेरिकी दूतावास में राजनीतिक मामलों की सलाहकार रोबिन राफेल के साथ कई अनधिकृत गैर सरकारी यात्राएं की थीं। उषा मार्टिन में निदेशक रहे मिश्रा को लेकर यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके व्यक्ति को आखिर किसी कंपनी का निदेशक क्यों बनना पड़ा।
कौन हैं नृपेंद्र मिश्रा
- नृपेंद्र मिश्रा उत्तर प्रदेश कैडर के 1967 बैच के आईएएस अधिकारी रहे हैं और 2009 में रिटायर हो चुके हैं।
- 2006 से 2009 तक मिश्रा टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के चेयरमैन रहे हैं। इसी समय 2जी घोटाले की बात सामने आई।
- 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में धांधली की वजह से मिश्रा का नाम विवादों में भी रहा।
- मिश्रा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दूरसंचार सचिव का काम भी संभाल चुके हैं। इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों और विदेश में काम करने का भी अनुभव रहा है।
- मिश्रा 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले की सुनवाई में दिल्ली की एक अदालत में अभियोजन पक्ष के गवाह के रुप में पेश हो चुके हैं। इस मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा आरोपी हैं।