हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी की सरकार, जानिए, सत्ता के लिए क्या हुआ सौदा
शिवसेना के नेता संजय राउत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से गठबंधन धर्म निभाने की बात पर कहा कि महाराष्ट्र में कोई ‘दुष्यंत’ नहीं है जिसके पिता जेल में हों। ऐसा कहकर उन्होंने सीधे हरियाणा में भाजपा-जजपा (जननायक जनता पार्टी) गठबंधन पर सवाल खड़े किए हैं। ऐसे ही सवाल हरियाणा के सियासी गलियारों और जजपा समर्थकों के बीच भी उठ रहे हैं। एक-दूसरे के खिलाफ लड़ी भाजपा-जजपा ने नतीजों के बाद गठबंधन करके सरकार बना ली। भाजपा के मनोहरलाल खट्टर दोबारा मुख्यमंत्री बने तो ‘किंगमेकर’ दुष्यंत चौटाला उप-मुख्यमंत्री बन गए हैं। बहुमत से छह दूर 40 सीटों पर अटकी भाजपा ने जजपा के दस और सात निर्दलीय मिलाकर 57 विधायकों की स्थायी सरकार बनाने का दावा किया है। गठबंधन पर तंज कसते हुए स्वराज इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव ने इसे “दुष्यंत के पिता अजय सिंह और दादा पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को राहत दिलाने” वाली डील बताया।
मई में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 10 सीटों पर जीत के साथ 79 विधानसभा सीटों पर बढ़त दर्ज करने वाली भाजपा पांच महीने के भीतर ही करीब आधी सीटें भी हासिल नहीं कर पाई। स्थानीय मुद्दों पर घिरी मनोहरलाल खट्टर सरकार के प्रति नाराजगी के आगे राष्ट्रवाद का नारा नहीं टिका। लोकसभा चुनाव में उसका 58 फीसदी वोट शेयर विधानसभा चुनाव में गिरकर 36 फीसदी रह गया। खट्टर कैबिनेट के आठ मंत्रियों समेत प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला को करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा की 40 में से चार सीटों पर जीत का अंतर 1,500 से भी कम और पांच सीटों पर 3,400 मतों से कम रहा है।
‘75 पार’ का दावा करने वाली भाजपा को दोबारा सत्ता पर काबिज होने के लिए घुटने टेकने पड़े। भाजपा से कभी गठबंधन न करने का दावा करने वाली जजपा ने भी उसका ही दामन थाम लिया। इससे जजपा के अब सत्ता में भागीदार बनने से उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। दुष्यंत चौटाला ने आउटलुक से कहा, “मेरी पार्टी के दस विधायकों को जनसेवा के लिए जनमत मिला है। भाजपा के साथ गठबंधन सरकार मंे उनकी पार्टी जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेगी।” मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कहा, “75 पार का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाने की पार्टी समीक्षा कर रही है। 2014 के विधानसभा चुनाव की तुलना में पार्टी का वोट शेयर तीन फीसदी बढ़ा है। हम जनमत का सम्मान करते हैं। राज्य के विकास के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाएंगे।”
जजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन सपनों को पूरा करने की होगी, जिन्हें दिखाकर वह हरियाणा की सियासत में तेजी से उभरी है। पार्टी ने अपने ‘जनसेवा पत्र’ (घोषणापत्र) में प्राइवेट नौकरियों में हरियाणा के युवाओं को 75 फीसदी आरक्षण, किसान कर्जमाफी, 5,100 रुपये वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगारी भत्ता जैसे वादे किए थे, जो भाजपा के ‘संकल्प पत्र’ में नहीं हैं। जाटों ने भाजपा के खिलाफ जाकर कांग्रेस और जजपा को वोट किया, इसलिए भाजपा से गठबंधन के चलते जाट वोटरों में जजपा के प्रति नाराजगी है। ऐसे में पार्टी के लिए अपने वादे पूरे करना और अहम हो गया है। गठबंधन सरकार के सामने कांग्रेस के रूप में सशक्त विपक्ष भी होगा, जिसके विधायक 15 से बढ़कर 31 हो गए हैं।
भाजपा 1987 से 2014 तक के चुनावों में लोकदल, हरियाणा विकास पार्टी (हविपा), इनेलो और हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) से गठजोड़ में भागीदार थी। 2014 के चुनाव में इसने अकेले सरकार बनाई और ये क्षेत्रीय दल खत्म हो गए। राजनीतिक विश्लेषक कयास लगा रहे हैं कि अगली बारी जजपा की है। इसीलिए कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आउटलुक से कहा, “सत्ता की ड्योढ़ी जजपा के लिए जनता से किए वादों से बड़ी हो गई है। भाजपा के खिलाफ वोट मांगकर जजपा के 10 विधायक जीत कर आए, पर आज सत्ता के लिए वह भी भाजपा की बी-टीम बन गई।”
भाजपा ने विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवाद को भुनाने की कोशिश की। लेकिन स्थानीय मुद्दों और खट्टर सरकार के प्रति नाराजगी के आगे यह टिक नहीं पाए। अनुच्छेद 370, मोदी मैजिक, स्टार प्रचार- ये सब भाजपा के लिए वोट जुटाने के बजाय इवेंट मैनेजमेंट अधिक साबित हुए। चुनाव से दो महीने पहले सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में जनआशीर्वाद यात्रा के बावजूद खट्टर जनता का मूड नहीं भांप सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत पार्टी के सभी स्टार प्रचारकों की 285 चुनावी रैलियों की तुलना में कांग्र्रेस के राहुल गांधी ने सिर्फ दो रैलियां कीं। पार्टी के चुनाव प्रभारी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने भी 25 दिन ही चुनाव प्रचार किया। इसके बावजूद 31 सीटों पर जीत हासिल करने से हुड्डा और सैलजा का कद मजबूत हुआ है। आउटलुक से पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा ने कहा, “पार्टी हाईकमान उन्हें लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद जिम्मेदारी सौंप देता तो प्रदेश में सरकार कांग्रेस की होती। जनमत भाजपा के खिलाफ था। जोड़-तोड़ की यह सरकार ज्यादा दिन टिकने वाली नहीं है। मजबूत विपक्ष के तौर पर कांग्रेस जनता की आवाज को विधानसभा में उठाएगी।”
जाट बनाम गैर-जाट
भाजपा ने पिछले पांच साल जाट-गैर जाट (पंजाबी, ब्राह्मण, अहीर, वैश्य आदि) के जाति समीकरण की जो जमीन तैयार की थी, वह भी विधानसभा चुनाव में काम नहीं आई। हरियाणा की सियासत में 27 फीसदी वोट बैंक के साथ सबसे प्रभावी जाटों को साधने के लिए भाजपा, कांग्रेस, इनेलो, जजपा सबने जाट उम्मीदवार उतारे। 90 विधानसभा क्षेत्रों में 30 फीसदी सीटों पर जाट उम्मीदवार ही एक-दूसरे के सामने थे। भाजपा ने 20, कांग्रेस ने 27, जजपा ने 34 और इनेलो ने 30 जाट चेहरों को टिकट दिए थे। लेकिन भाजपा के चार जाट उम्मीदवार ही जीत पाए। कांग्रेस के 10 जाट चेहरे विधायक बने जबकि जजपा के 10 विधायकों में से पांच जाट हैं।
जाटलैंड (रोहतक, जींद, सोनीपत, झज्जर, भिवानी, चरखी-दादरी) की 25 सीटों में से कांग्रेस ने 12 और भाजपा ने सात सीटें जीतीं जबकि जजपा को चार सीटें मिलीं। भाजपा के चार दिग्गज जाट नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को उचाना कलां सीट से दुष्यंत चौटाला से करारी हार का सामना करना पड़ा। वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु को नारनोंद में जजपा के ही रामकुमार गौतम ने पटखनी दी। कृषि मंत्री ओपी धनखड़ बादली से हार गए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को टोहाना से जजपा के देवेंद्र सिंह बबली ने हरा दिया। कांग्रेस के भी चार जाट नेताओं रणदीप सुरजेवाला, करण दलाल, आनंद सिंह दांगी और जयप्रकाश की हार हुई। कैथल में सुरजेवाला को भाजपा के लीलाकृष्ण गुज्जर ने 1,246 मतों से हराया।
भाजपा जीटी रोड बेल्ट (पंचकूला, अंबाला, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, करनाल, पानीपत, कैथल) को अपना गढ़ मानती थी, लेकिन कांग्रेस ने इसमें सेंध लगा दी। 2014 में जीटी रोड बेल्ट की 27 में से 22 सीटें पाने वाली भाजपा इस बार 14 सीटों पर सिमट गई। यहां कांग्रेस की सीटें एक से बढ़कर नौ हो गईं। दक्षिणी हरियाणा के छह जिलों गुड़गांव, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, नूंह, पलवल और फरीदाबाद की 23 सीटों में 15 भाजपा को मिलीं। कांग्रेस यहां छह सीटों पर सिमट गई। पश्चिमी हरियाणा के हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जिले की 15 सीटों में से भाजपा को चार, कांग्रेस को तीन और जजपा को छह सीटें मिलीं।
भाजपा गैर-जाट समीकरण के दम पर ही प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी है। इसके 40 विधायकों में से 19 वैश्य, पंजाबी, अहीर हैं। स्टार खिलाड़ी योगेश्वर दत्त और बबीता फोगाट हार गईं। टिक-टॉक स्टार सोनाली फोगाट आदमपुर में कांग्रेस के कुलदीप बिश्नोई के आगे नहीं टिकीं। टिकट कटने से निर्दलीय जीते चार विधायकों ने भी भाजपा का खेल बिगाड़ा।
कांग्रेस और जजपा जाट वोट बैंक के अलावा रामरहीम के डेरा सच्चा सौदा और रामपाल के अनुयायियों को भी अपने पक्ष में करने में सफल रहीं। जाट खट्टर सरकार की वापसी नहीं चाहते थे, पर जजपा और कांग्रेस में वोट बंट जाने से कांग्रेस बहुमत से पीछे रह गई। सरकार में शामिल जजपा स्थायी सरकार देने और जनता की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है, यह वक्त ही बताएगा।