इतनी आसानी से कैसे अपने मुख्यमंत्रियों को बदल लेती है भाजपा, लेकिन कांग्रेस में यह सब क्यों नहीं है आसान?
बीते शनिवार को अचानक दोपहर बाद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया। उसके बाद भूपेंद्र पटेल को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाया गया है। उन्होंने सोमवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पटेल के नाम के ऐलान से पहले मीडिया में कई नामों को लेकर कयास लगाए जा रहे थे। कहा जा रहा था कि उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल या केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया को सीएम बनाया जा सकता है। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। अगले साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसी के मद्देनजर पार्टी के फेरबदल को जोड़कर देखा जा रहा है।
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इससे पहले भी भाजपा चुनाव से पहले हेरफेर करती रही है। इस बार पार्टी बीते कुछ महीनों में चार से अधिक सीएम बदल चुकी है। उत्तराखंड में सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से इस्तीफा ले लिया गया और जिम्मेदारी तीरथ सिंह रावत को सौंपी गई। लेकिन, रावत बस चार महीनों के मुख्यमंत्री बनकर रह गए। अपने बयानों और भाजपा की उम्मीदों पर खड़ा ना उतरने के बीच पार्टी ने उनसे भी इस्तीफा ले लिया। उसके बाद पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया। उत्तराखंड में भी अगले साल विधानसभा चुनाव हैं।
लेकिन, इन सब के बीच एक सवाल जो सबसे लाजमी है कि भाजपा इतनी आसानी से कैसे अपने मुख्यमंत्रियों का इस्तीफा ले लेती है या बदल देती है? सामने गुजरात, उत्तराखंड, कर्नाटक उदाहरण हैं जहां बिना किसी हलचल और उठापटक के पार्टी ने खामोशी से चेहरा बदल दिया है। जबकि, दूसरी तरफ कांग्रेस में ऐसा नहीं हो पा रहा है। पिछले साल कोरोना संकट के बीच राजस्थान में पायलट खेमे ने बगावती तेवर अख्तियार करते हुए दिल्ली में दो महीने तक डेरा डाल दिया था। बड़ी मुश्किल के बाद सीएम गहलोत कुर्सी बचाने में कामयाब हुए। यहां माना जा रहा है कि सीएम पद की दावेदारी पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके खेमे लगातार कर रहे हैं जबकि गहलोत इस मूड में नहीं है। चुनाव में मिली जीत के पीछे पायलट ने बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन सीएम गहलोत बन गए, जिसके बाद से कलह के बुलबुले अभी तक निकल रहे हैं और ये जारी रहेंगे।
वहीं, पंजाब और छत्तीसगढ़ का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ है। पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं। सीएम कैप्टन और सिद्धू के बीच लगातार दंगल जारी है। दरअसल, सिद्धू चाहते हैं कि पार्टी उनको मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर आगामी चुनाव लड़े जबकि कैप्टन खेमा इस बात को नहीं चाह रहा है। आलाकमान भी कैप्टन के पक्ष में हैं। सिद्धू लगातार पंजाब से लेकर दिल्ली तक, अपनी बातों को मनवाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। यहां तक कि कैप्टन को सीएम पद से हटाने की बात भी सिद्धू खेमे ने कर रखी है। हालांकि, प्रदेश पार्टी प्रभारी हरीश रावत स्पष्ट कर चुके हैं कि पार्टी के 'कैप्टन' अमरिंदर ही होंगे।
कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में भी स्वास्थय मंत्री टीएस सिंहदेव और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच जंग छिड़ी है। पिछले दिनों दोनों दिल्ली आए थे। जिसके बाद बघेल ने कहा था कि जो पार्टी का आदेश होगा, उसे माना जाएगा। जब पार्टी कहेगी वो इस्तीफा दे देंगे।
लेकिन, कांग्रेस की कलह लगातार सामने आ रही है। जबकि भाजपा अपने कलह को भीतर ही भीतर पाटने में लगी है। दरअसल, कांग्रेस के लिए ये सब अभी आसान नहीं है, जो कदम भाजपा उठा लेती है। राजनीतिक जानकार इसके पीछे केंद्रीय नेतृत्व को मानते हैं। आउटलुक से वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक लक्ष्मीप्रसाद पंत कहते हैं, "भाजपा के भीतर केंद्रीय नेतृत्व यानी दिल्ली की लगाम काफी मजबूत है। पार्टी जिसे जब चाहे हटा सकती है। हम लगातार इस बात को देख रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस का नेतृत्व बुरी तरह से कमजोर है। सोनिया गांधी की तबियत खराब होने के बाद से वो राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। राहुल गांधी के पास उतनी क्षमता नहीं दिखाई देती है जो पार्टी की कलह को बिना किसी हलचल के पाट दे।"
दरअसल, भाजपा ने कर्नाटक में भीतर अपने मुख्यमंत्री को पिछले महीने बदले हैं। बीएस येदियुरप्पा को पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को राज्य की कमान सौंपी गई है। यहां तक कि बोम्मई मंत्रिमंडल में येदियुरप्पा के बेटे को भी जगह नहीं मिली है। इसके बाद भी प्रदेश पार्टी में कोई सुगबुगाटह नहीं है।
भाजपा का टारगेट अगले साल एक साथ पांच राज्यों में होने वाले चुनाव पर है। पंजाब, मणिपुर, गोवा, यूपी और उत्तराखंड में चुनाव होने हैं। वहीं, गुजरात और कर्नाटक में भी अागामी साल के अंत में चुनाव होने हैं। इधर हिमाचल प्रदेश में भी हलचल तेज है। लगातार सीएम जय राम ठाकुर दिल्ली का दौरा कर रहे हैं। संभावनाएं जताई जा रही है कि फिर भाजपा कुछ बड़ा करने वाली है। हालांकि, ये अभी तक स्पष्ट नहीं है।