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03 March 2015

ऐसे कैसे चलेगी भाजपा-पीडीपी सरकार

पीटीआइ

अपनी स्‍थापना से लेकर आज तक पार्टी लगातार कश्मीर में सत्ता संभालने का ख्वाब संजोती आई है मगर अब जब यह ख्वाब साकार हुआ तो पार्टी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि यह सरकार उसे इतनी भारी पड़ने वाली है।

जिस पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीपी) के साथ मिलकर भाजपा सत्ता में हिस्सेदारी कर रही है उसकी कश्मीर के अलगाववादियों के प्रति नरमी जगजाहिर है और पीडीपी के मुखिया मुफ्ती मोहम्मद सईद तो हमेशा से कश्मीर की स्वायत्ता के पैरोकार रहे हैं।

दूसरी ओर भाजपा हमेशा से अलगाववादियों को सख्ती से कुचलने और कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों की तरह की सामान्य दर्जा देने की पक्षधर रही है। इस विचारधारात्मक अलगाव के बावजूद दोनों पार्टियां सरकार बनाने के लिए एकसाथ आईं तो इसलिए क्योंकि दोनों के ही पास इसके सिवा और कोई चारा नहीं था।

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ऊपर से भले ही दोनों ने सरकार बनाने के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाया हो मगर अपने-अपने एजेंडे छोड़ने के लिए दोनों में से कोई भी तैयार नहीं है और पीडीपी ने भाजपा को सरेआम इसका अहसास कराना शुरू कर दिया है। तभी तो मुख्यमंत्री का पदभार संभालते ही मुफ्ती ने सबसे पहला बयान यह दिया कि राज्य में शांतिपूर्ण विधानसभा चुनाव के पीछे अलगाववादी हुर्रियत कान्फ्रेंस और सीमा पार वालों के सहयोग से ही हुआ है। जाहिर है कि इस ‌बयान पर हंगामा मचना ही था और मचा। जम्मू-कश्मीर से लेकर दिल्ली तक विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी कर ली। संसद में विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग करते हुए वाकआउट तक कर डाला।

भाजपा के पास इस बयान से पल्ला झाड़ने के सिवा कोई चारा नहीं था मगर तबतक मुफ्ती भाजपा की किरकिरी करा चुके थे। अभी मोदी सरकार और भाजपा इस किरकिरी से उबरने की कोशिश में ही थे कि मुफ्ती की पार्टी ने दूसरा बम गिराया। पार्टी के 8 विधायकों ने एक बयान जारी कर संसद हमले के दोष में फांसी पर चढ़ाए गए अफजल गुरु के अवशेषों की मांग कर डाली। इन विधायकों ने कहा कि वह चाहते हैं कि ये अवशेष अफजल के परिवार को सौंपे जाएं। वैसे पीडीपी चुनाव प्रचार के दौरान भी ये मांग उठाती रही थी मगर भाजपा को उम्मीद नहीं थी कि पीडीपी साझा सरकार का नेतृत्व करने के बावजूद उसके लिए असुविधाजनक सवाल इस प्रकार उठाती रहेगी।

इन दोनों झटकों से सकते में आई भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार को ही जवाबी हमला किया। पीडीपी-भाजपा के साझा न्यूनतम कार्यक्रम में भले ही कहा गया हो कि जम्मू-कश्मीर में सशस्‍त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा की समय के साथ समीक्षा की जाएगी मगर सोमवार को गृह मंत्रालय के हवाले से यह खबर चली कि मंत्रालय ने अफस्पा को हटाने के खिलाफ अपनी सिफारिश प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी को दी है।

जाहिर है कि इस खबर से पीडीपी को मिर्ची लगनी ही है। अभी तक पार्टी की ओर से कोई बयान नहीं आया है मगर दोनों पार्टियां जिस तरह एक दूसरे पर तलवार ताने हैं उससे साफ लगता है कि ये साझा सरकार नहीं विरोधाभाषी सरकार है जिसके दोनों घटकों में आपस में ही कोई तालमेल नहीं हैं। भाजपा के लिए तो स्थिति प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः जैसी हो गई यानी पहले कौर में ही मक्‍खी।

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TAGS: भाजपा, पीडीपी, जम्मू-कश्मीर, सरकार, विवाद
OUTLOOK 03 March, 2015
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