झारखंड: चक्रव्यूह तोड़ पाएंगे हेमंत?
“मुख्यमंत्री की विधानसभा सदस्यता खत्म होने की अफवाहों और केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता से उपजा नया राजनैतिक संकट”
पिछले महीने पश्चिम बंगाल की पुलिस ने कांग्रेस के तीन विधायकों को जब बड़ी रकम के साथ पकड़ा, तो झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने के लिए ऑपरेशन लोटस के कयास हवा में तैरने लगे। यह झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठजोड़ वाली सरकार को अस्थिर करने की आखिरी चोट का एक संकेत था। इससे पहले ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की केंद्रीय एजेंसियों द्वारा चौतरफा घेराबंदी की जा चुकी थी। सोरेन द्वारा अपने नाम माइनिंग का पट्टा लेने के मामले में चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते ही अपनी राय राज्यपाल को सीलबंद लिफाफे में भेजी। इस संकट से निपटने की रणनीति तय करने के लिए मुख्यमंत्री आवास में हेमंत सोरेन 26 अगस्त को यूपीए के विधायकों के साथ बैठक कर रहे थे। प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई थी। हेमंत बैठक से निकले और पड़ोस के जिले लातेहार के नेतरहाट में एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए चल दिए। नेतरहाट में मेला सह परिसंपत्ति वितरण के कार्यक्रम में हेमंत केंद्र सरकार पर जमकर बरसे और अपने काम का हिसाब गिनवाने लगे। उन्होंने कहा, “पिछले पांच माह से मुझे सत्ता से बेदखल करने की साजिश रची जा रही है। राज्य का केंद्र पर बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपये मांगा तो केंद्रीय एजेंसियां पीछे लगा दी गईं।” उन्होंने चुनौती देने वाले अंदाज में ट्वीट किया, “केंद्र सरकार और भाजपा जितना कुचक्र रचना है रच ले, कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं आदिवासी का बेटा हूं, झारखंड का बेटा हूं। हम डरने वाले नहीं, लड़ने वाले लोग हैं। हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही हमारे मन से डर-भय निकाल दिया है। हम आदिवासियों के डीएनए में डर और भय के लिए कोई जगह नहीं है।” लौटकर उन्होंने शाम को फिर यूपीए विधायकों की बैठक की।
संख्या के हिसाब से देखें तो सरकार को कहीं कोई परेशानी नहीं है। 81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 41 विधायकों की जरूरत है जबकि यूपीए गठबंधन में 30 झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), 18 कांग्रेस, एक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक हैं। अगर कांग्रेस के तीन विवादास्पद विधायकों की सदस्यता चली जाए तब भी फर्क नहीं पड़ने वाला। ताजा संकट के बाद झामुमो ने साफ कर दिया कि उसके लिए हेमंत का विकल्प हेमंत ही हैं। सदस्यता जाती है तो फिर यूपीए के नेता चुन लिए जाएंगे। अगर उन्हें सदस्यता और चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया जाता है तो हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन विकल्प हैं। चर्चा में शिबू सोरेन और चंपई सोरेन का भी नाम है मगर यह सब राज्यपाल के आदेश के बाद स्पष्ट होगा। हेमंत को शायद मौजूदा संकट का भान हो गया था इसलिए हाल के महीनों में वे लगातार जनहित से जुड़े फैसले करते रहे। ताजा संकट के बाद पूरा फोकस यूपीए के विधायकों को एकजुट रखने पर है।
सीलबंद लिफाफे में क्या
खुद के नाम खनन पट्टा लेने के मामले में विधानसभा से हेमंत सोरेन की सदस्यता समाप्त करने का मामला बड़ा दिलचस्प है। 24 अगस्त को चुनाव आयोग से राजभवन सीलबंद लिफाफे में एक पत्र आया। पत्र का मजमून तुरंत सार्वजनिक हो गया। लिफाफा राजभवन पहुंचा भी नहीं था कि गोड्डा से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने ट्वीट कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को पराजित करने वाले निर्दलीय विधायक सरयू राय ने एक कदम आगे बढ़कर ट्वीट किया, “चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन के खनन पट्टे को पद का लाभ माना है और उन्हें अयोग्य ठहराने की अनुशंसा की है। पद का लाभ भ्रष्ट आचरण है या नहीं, यह राज्यपाल को देखना है। भ्रष्ट आचरण होने पर पांच साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने का प्रावधान है।” चुनाव आयोग या राजभवन से कोई औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है। हेमंत ने मीडिया में खबर वायरल होते ही आपत्ति जताई कि मुख्यमंत्री कार्यालय में ऐसा कोई संदेश नहीं आया मगर एक सांसद, भाजपा और गोदी मीडिया ऐसी खबरें दे रहे हैं मानो मसौदा उन्हीं ने तैयार किया है।
हेमंत को आसन्न संकट का एहसास था। वे यूपीए विधायकों को एकजुट रखने के लिए लगातार संयुक्त बैठक करते रहे। उन्हें खूंटी के लतरातू बांध का भ्रमण भी करवाया। इस बीच कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय भी रांची पहुंचकर विधायकों को एकजुट करने में लगे रहे। चुनाव आयोग के पत्र की खबर को पांच-छह दिन हो गए, तो यूपीए ने राजभवन पर आक्रमण किया। 28 अगस्त को सीएम आवास में डिनर के दौरान यूपीए नेताओं ने कहा कि राज्यपाल फैसला सुनाएं, खुलासा करें, भले राष्ट्रपति शासन लगाएं, देरी से हॉर्स ट्रेडिंग का माहौल बन रहा है।
मुख्यमंत्री पद की लड़ाई राजभवन तक पहुंचने के बाद विधायकों की बैठक लेते सोरेन
इसी साल फरवरी में प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं ने राज्यपाल से मिलकर रांची के अनगड़ा में खाता नंबर 187 और प्लॉट नंबर 482 में हेमंत सोरेन पर अपने नाम से खनन पट्टा आवंटित कराने का आरोप लगाते हुए विधानसभा से उनकी सदस्यता समाप्त करने करने और मुख्यमंत्री पद से हटाने का आग्रह किया था। इसे राज्यपाल ने मंतव्य के लिए चुनाव आयोग के हवाले कर दिया। बचाव की मुद्रा में आए झामुमो ने कहा कि सोरेन पर जनप्रतिनिधित्व कानून के 9ए का मामला नहीं बनता। झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य और विधायक सुदिव्य सोनू ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों के हवाले से सफाई दी कि मामला नहीं बनता और खदान से एक छटांक का भी उत्पादन नहीं हुआ है। बिजली कनेक्शन और जीएसटी नंबर तथा कंसेंट टु ऑपरेट भी नहीं लिया गया। पद की मर्यादा को देखते हुए इसे मुख्यमंत्री ने सरेंडर कर दिया है।
हाल के फैसले
विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राज्य में पहली बार जनजातीय महोत्सव का आयोजन हुआ। हेमंत ने ऐलान किया कि अब कोई आदिवासी महाजनों और साहूकारों का कर्ज नहीं लौटाएगा। विवाह या मृत्यु के मौके पर सामूहिक भोज के लिए सौ किलो चावल और दस किलो दाल मुहैया कराने का ऐलान किया गया। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ तीन दशक से आदिवासी-मूलवासी की मांग को पूरा करते हुए अवधि विस्तार को खारिज किया गया। पैंसठ हजार पुलिसकर्मियों को हर साल 20 दिनों का क्षतिपूर्ति अवकाश देने का निर्णय लिया गया। इसके पहले दिल्ली पुलिस की तर्ज पर यहां के पुलिसकर्मियों को साल में एक माह का अतिरिक्त वेतन देने का प्रावधान किया गया। चुनावी वादे और तेज पकड़ती मांग के मद्देनजर पिछड़ों को आरक्षण का कोटा बढ़ाने की खातिर एसटी, एससी और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए एक उपसमिति का गठन किया गया। गुमला में सीएनटी-एसपीटी पत्थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने का निर्णय किया गया। मुख्यमंत्री बनते ही खूंटी में पत्थलगड़ी से जुड़े मामले वापस करने का फैसला किया था। 50 हजार स्कूली शिक्षकों के लिए पद सृजित किया गया। रांची में सड़क और आरओबी के लिए करीब सात हजार करोड़ की योजना का शुभारंभ किया गया। सर्वजन पेंशन योजना लागू कर कई लाख गरीबों को इससे जोड़ा गया। सरकारी सेवकों को प्रभावित करने वाली पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिए कमेटी गठित की गई। उसके पहले पैरा-शिक्षक, धोती-साड़ी योजना, सरना कोड जैसे जनता से जुड़े मुद्दों पर नियोजित तरीके से वे फैसले करते रहे।
हेमंत की घेराबंदी
पुराने मनरेगा घोटाले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने खान सचिव रहीं पूजा सिंघल और उनके ‘कुनबे’ पर हाथ डाला तो लोगों के कान खड़े हो गए। उनके सीए के पास से करीब 19 करोड़ रुपये नकद निकले। रोज नए-नए लोगों से पूछताछ होती रही। दायरा बढ़ता गया। इसी फीडबैक के आधार पर पूजा के साथ-साथ जब मुख्यमंत्री के बरहेट विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्र को गिरफ्तार करने के बाद हेमंत के प्रेस सलाहकार अभिषेक पिंटू पर ईडी ने हाथ डाला तो लगा अब ईडी का ऑपरेशन चरम पर है। ईडी ने पिंटू से कई दिन लगातार पूछताछ की। पंकज मिश्र के बारे में लोगों की समझ है कि संथाल परगना में माइनिंग तो क्या, उनके इशारे के बिना पत्ता तक नहीं खड़कता। चुनाव आयोग के नोटिस के दौरान ही प्रेम प्रकाश और झामुमो के सीएम जयपुरियार के यहां पड़े छापे के बाद लगने लगा कि ईडी अब रुकने वाली नहीं है। प्रेम प्रकाश गिरफ्तार हुए, उनके घर से पुलिसवालों द्वारा दो एके47 और 60 गोलियों की बरामदगी ने भी अपना रंग दिखाया। पूजा प्रकरण की जांच के सिलसिले में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सह सूचना एवं गृह सचिव राजीव अरुण एक्का के बिल्डर बहनोई निशित केशरी और उनके करीबी विशाल चौधरी के ठिकानों पर भी ईडी मई में छापा मार चुका है। इस तरह हेमंत की चौतरफा घेराबंदी कर दी गई है।
अब हेमंत भी चौकस हैं और कांग्रेस भी। ऐसे में आगे और दिलचस्प घटनाक्रम से इनकार नहीं किया जा सकता।