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08 May 2019

सरकार बनाने की कवायद में अभी से सक्रिय हैं दक्षिण के नेता, जानें क्या है प्लान

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का दौर समाप्त होता जा रहा है वैसे ही नई-नई सियासी बिसातें भी बिछती जा रहीं हैं। खासतौर पर पांचवें चरण के मतदान खत्म हो जाने के बाद दक्षिण भारत के दिग्गज नेताओं की सक्रियता इस दिशा में बखूबी देखी जा सकती है। जबकि राष्ट्रीय स्तर के नेताओं में भी यही सुगबुगाहट जोर पकड़ रही है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर)  से लेकर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू तक अपनी खिचड़ी बनाने में व्यस्त हैं। वहीं विपक्ष के कई नेता भी ‘दक्षिण भारत’ के साथ कथित सौतेला व्यवहार की दुहाई दे रहे हैं, उनके इन बयानों से दक्षिण की अहम भूमिका उभरकर सामने आ रही है।

लोकसभा चुनाव 2019 पूरे होने में अब सिर्फ दो चरण ही बाकी हैं। पांच चरणों में कुल 543 लोकसभा सीटों में से 425 पर मतदान हो चुका है और सिर्फ 118 सीटें बाकी हैं। ऐसे में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष को चारों खाने चित बता रहे हैं, वहीं कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी का सत्‍ता से जाना लगभग तय है। दूसरी तरफ, गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस वाद का नारा बुलंद करने वाले दल मानते हैं कि इन दोनों बड़े दलों की हवा निकल गई है और उनकी सत्ता की चाबी उनके हाथ लग सकती है। इसी कारण केसीआर तीसरे मोर्चे की कवायद  कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस बार दक्षिण भारत से किसी नेता को प्रधानमंत्री बनाने की कवायद उनके एजेंडे में है और इसी को लेकर वे सक्रिय हैं।

क्षेत्रीय दलों को मिलाकर गैर-कांग्रेस, गैर भाजपा संघीय मोर्चा बनाने के मिशन पर टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव काम कर रहे हैं। राजनीतिक हितों को साधने के मकसद से वह लगातार क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं से बैठक कर रहे हैं। इस सिलसिले में केरल के अपने समकक्ष पिनराई विजयन  से उन्होंने सोमवार को मुलाकात की। ऐसी चर्चा है क इस दौरान उन्होंने '1996 फॉर्मूले' के आधार पर कांग्रेस और के बगैर तीसरा मोर्चा बनाने पर चर्चा की। केसीआर का आकलन है कि 'न तो भाजपा और न ही कांग्रेस अपने वर्तमान सहयोगियों के साथ सरकार बनाने में सफल होगी। तब केंद्र सरकार के गठन में क्षेत्रीय दल व्यापक भूमिका निभाएंगे।’

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खबरें हैं कि केसीआर ने बैठक में ‘1996 के फार्मूले’ पर लोकसभा के इस चुनाव में ‘दक्षिण भारत से प्रधानमंत्री’ देने का प्रस्ताव भी रखा।

इस मुहिम में केसीआर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी जैसे कांग्रेस सहयोगियों से भी संपर्क कर रहे हैं, इसके अलावा द्रमुक अध्यक्ष एम. के. स्टालिन से भी 13 मई को मुलाकात करेंगे। केसीआर की उत्तर और पूर्वी भारत के राज्यों का दौरा करने की भी योजना है। इस दौरान उनकी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात होने की संभावना है।

चंद्रबाबू भी मुस्तैद

दूसरी ओर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी कई बड़े नेताओं से मेल-मुलाकात कर रहे हैं। हालांकि वे खुद को पीएम की रेस से बाहर बता रहे हैं लेकिन बतोर विपक्षी दल उनकी सक्रियता बढ़ी हुई दिखाई दे रही है। एक ताजा इंटरव्यू में चंद्रबाबू नायडू ने कहा है कि इस बार लोकसभा चुनाव में किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। टीडीपी प्रमुख ने जनता दल सेक्युलर के नेता एचडी देवेगौड़ा और राष्ट्रवादी कांग्रेस के पार्टी शरद पवार का नाम लेते हुए कहा कि यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है ये दोनों नेता विपक्ष की ओर से पीएम पद के लिए सबसे अच्छे उम्मीदवार हैं।

कांग्रेस को थी भनक

इस लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत की भूमिका को लेकर कांग्रेस पार्टी पहले से सचेत थी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का वायनाड सीट से उतरने का फैसला भी इसी ओर इशारा करता है। राहुल समेत कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनावी अभियान में ‘दक्षिण भारत  के साथ केन्द्र के सौतेले व्यवहार’ का मुद्दा उछालते रहे हैं।

हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार में दक्षिण भारत के साथ “सौतेला व्यवहार” किया गया। साथ ही उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार को सत्ता से बेदखल करने में दक्षिणी राज्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे और “जबर्दस्त ढंग से” कांग्रेस का साथ निभाएंगे।

भाजपा को किंगमेकर की जरूरत नहीं

भाजपा का कहना है कि उन्हें ‘किंगमेकर’ की जरूरत नहीं है।  पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव द्वारा ‘तीसरे संघीय मोर्चे’ की कवायद पर तंज कसते हुए कहा, “मुझे अच्छी तरह पता है कि लोकसभा के इस चुनाव में के चंद्रशेखर राव की इच्छा किंगमेकर बनने की है। इस दिशा में उनकी पार्टी पूरी कोशिश भी कर रही हैं। मगर मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि भाजपा के पास पहले से ही किंग है। ऐसे में हमें किसी किंगमेकर की आवश्यकता पड़ने वाली नहीं है।”

राह नहीं आसान

दक्षिण भारत के दोनों नेता- नायडू और केसीआर जोरशोर से प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह प्रयास अभी बिखरा हुआ है। केसीआर पहले दक्षिण भारत के सभी दिग्गजों को एकजुट करके एक दबाव समूह बनाने की इच्छा रखते हैं। जबकि दूसरी तरफ नायडू देश भर की दूसरी पार्टियों का समर्थन जुटाने में लगे हैं। केसीआर ने खुद को भाजपा और कांग्रेस के समकक्ष बताया है, मगर अमूमन उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी और पीएम मोदी का विभिन्न मुद्दों पर समर्थन करते हुए देखा गया है। साथ ही डीएमके अध्यक्ष स्टालिन से उनके मुलाकात को लेकर भी संदेह बरकरार है। कांग्रेस ने केसीआर की टीआरएस को भाजपा की 'बी टीम' करार दिया है। कांग्रेस का कहना है कि उनकी कोशिशों से भाजपा को लाभ मिलेगा।

1996 फॉर्मूला कितना सफल?

इतिहास की बात करें तो '1996 फॉर्मूला' बहुत सफल नहीं माना जाता। 1990 के दशक के आखिर में, अस्थिर गठबंधनों के प्रमुख के रूप में सत्ता संभालने वाले तीन प्रधानमंत्रियों की सरकारें कुछ ही दिनों में गिर गई थी। दरअसल, देश में 1996 के आम चुनाव के नतीजे में त्रिशंकु संसद का गठन हुआ था। मतदाताओं ने उस दौरान मिला-जुला नतीजा दिया था। भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी को महज 13 दिन में प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा तो उसके बाद आए संयुक्त मोर्चा के राज में क्रमश: एच.डी.देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल का कार्यकाल केवल 18 महीने में खत्म हो गया।

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OUTLOOK 08 May, 2019
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