जनादेश 2022/ पंजाब: मजबूत होती मोर्चेबंदी, अमरिंदर के भाजपा से हाथ मिलाने का रास्ता साफ
कृषि कानूनों के रद्द होने के ऐलान के साथ पंजाब विधानसभा चुनाव की मोर्चेबंदी अब बहुत हद तक साफ हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस घोषणा ने पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भाजपा से हाथ मिलाना आसान कर दिया है। एनडीए से अलग हुआ शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और बसपा ने पहले ही साथ लड़ने की घोषणा की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ऑटोरिक्शा में बैठकर और कार्यकर्ता के घर खाना खाकर ‘आम आदमी’ दिखने की कोशिश कर रहे हैं। इन सबको जवाब देने के लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस वामदलों को साथ लेने के प्रयास में है।
कांग्रेस में चार दशक से भी अधिक समय गुजारने वाले कैप्टन अमरिंदर 79 की उम्र में अपनी नई पार्टी के साथ नई पारी शुरू करेंगे। उन्होंने भाजपा से अपनी पार्टी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ के गठबंधन के लिए कृषि कानून रद्द करने की शर्त रखी थी। कानून वापसी की घोषणा के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री की तारीफ के पुल बांध दिए। कहा, “प्रधानमंत्री ने एक बार फिर साबित किया है कि वे जनमत की सुनते हैं। कोई और भी यह घोषणा कर सकता था, लेकिन बिना राजनीतिक नफा-नुकसान सोचे प्रधानमंत्री ने स्वयं इसका ऐलान किया।” उन्होंने कहा, “भाजपा के साथ समझौता 110 फीसदी होगा।”
अमरिंदर के समक्ष चुनौती यह है कि चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री के ऐलान का किसानों पर सकारात्मक होता है या नहीं, क्योंकि किसान अभी तक आंदोलन से पीछे नहीं हटे हैं। लेकिन अमरिंदर के साथ भाजपा के गठजोड़ को सुखदेव सिंह ढींढसा, रणजीत ब्रहमपुरा जैसे टकसाली अकाली और कांग्रेस के बगावती नेताओं का साथ मिलने पर यह चौथा मोर्चा कांग्रेस को टक्कर दे सकता है।
किसानों के भारी विरोध के चलते सालभर से घरों में दुबके पंजाब के भाजपा नेता भी अब सक्रिय हो गए हैं। मोदी के ऐलान को मास्टर स्ट्रोक बताने वाले पंजाब भाजपा के अध्यक्ष अश्वनी शर्मा ने आउटलुक से कहा, “भाजपा किसान हितैषी पार्टी है। किसानों को कृषि कानून हितकर नहीं लगा तो प्रधानमंत्री ने उन्हें रद्द करने का सही फैसला किया है।” लेकिन आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान का कहना है, “सालभर सड़कों पर कड़ाके की ठंड, आंधी, बारिश, गर्मी झेलते 700 किसानों की शहादत पर भी प्रधानमंत्री का दिल नहीं पसीजा। अब पंजाब और यूपी विधानसभा चुनाव से तीन महीने पहले कृषि कानून रद्द करने का ऐलान किया है। भाजपा ने अपनी चुनावी राह आसान करने की कोशिश की है।”
मोदी के ऐलान को सियासी स्टंट बताने वाले कई किसान नेताओं का कहना है कि इससे किसानों की जिंदगी में कोई बड़ा बदलाव आने वाला नहीं हैं। जब तक केंद्र सरकार सभी फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं देती, तब तक किसानों की आय में वृद्धि नहीं होगी। भारतीय किसान यूनियन उगरांह के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा, “कृषि कानून रद्द होने से कृषि क्षेत्र कॉरपोरेट के हाथों से बचा है, पर मसला किसानों पर भारी कर्ज और आय बढ़ोतरी का भी है।” उन्होंने कहा कि धान और गेहूं की खेती करने वाले पंजाब के किसानों पर 90,000 करोड़ रुपये से अधिक का बोझ है। कांग्रेस सरकार का किसानों को कर्ज मुक्त करने का चुनावी वादा पूरा नहीं हुआ है। उनका पांच फीसदी कर्ज भी माफ नहीं हुआ है। उगरांह के अनुसार जब तक पंजाब के किसान पूरी तरह कर्ज मुक्त नहीं हो जाते तब आंदोलन जारी रहेगा।
पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह
दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने को कांग्रेस मास्टर स्ट्रोक मान रही है। अमरिंदर के बारे में कहा जाता था कि वे अपने विधायकों की पहुंच से भी दूर हैं। बतौर सीएम 50 दिन में चन्नी ने बिजली तीन रुपये यूनिट सस्ती करने जैसे कई लोकलुभावन कदमों के साथ अधिक से अधिक समय आम लोगों के बीच रह आम आदमी के मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित होने के प्रयास किए हैं। इसका चुनावी फायदा दोआबा और माझा क्षेत्र में मिल सकता है। कांग्रेस वाम दलों को साथ लेने की कोशिश कर रही है। चन्नी पिछले दिनों भाकपा के प्रदेश सचिव बंत सिंह बरार और माकपा प्रदेश सचिव सुखविंदर सिंह सेखों से मिले। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में भाकपा और माकपा को एक भी सीट नहीं मिली थी।
चुनावी मोर्चेबंदी का क्या असर होगा, अभी यह कहना मुश्किल है। प्रदेश में भाजपा हाशिए पर रही है। अमरिंदर के साथ का उसे कितना फायदा मिलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। कांग्रेस की आपसी खींचतान भी अभी शांत पड़ती नहीं दिख रही है, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की महत्वाकांक्षाएं भी कम नहीं हैं। कुल मिलकर देखा जाए तो चुनाव के स्पष्ट संकेत मिलने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा।