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07 June 2022

कांग्रेस: ...ओटन लगे कपास

“देश की सबसे पुरानी पार्टी में नई जान डालने के लिए बहुप्रतीक्षित चिंतन शिविर पीआर एक्सरसाइज बनकर रह गया, बिखराव तेज होता जा रहा”

चले थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास जैसी कहावत मानो उदयपुर में हाल में संपन्न हुए बहुप्रचारित चिंतन शिविर के लिए ही कही गई है। कहां तो उम्मीद थी कि देश की सबसे पुरानी (137 साल) और गौरवमयी इतिहास वाली पार्टी लगातार नाकामियों और पराजयों से उबरने के लिए कोई ऐसा रामवाण तरीका खोज लेगी, जिससे उसकी संभावनाएं फिर लहलहाने लगेंगी। पार्टी में नई जान और उत्साह भरने से हर नेता, कार्यकर्ता में नया जज्बा पैदा हो जाएगा, ताकि बिखराव रुक जाए। लेकिन हुआ यह कि पंजाब में वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ और गुजरात में युवा हार्दिक पटेल अलविदा कहकर दूसरी पांत में जा बैठे। चिंतन शिविर में जो तरीके ईजाद किए गए, उनमें नई बातें बस नई बोतल में पुरानी शराब सरीखी दिखती हैं। न नेतृत्व, न ही सांगठनिक ढांचे में कोई आमूल परिवर्तन की कोई उम्मीद जगी, न पार्टी की मायूसी तोड़ने की कोई उत्तेजना पैदा हुई, न कोई नया वैकल्पिक अफसाना उभरकर आया, जो देश के लोगों में कोई नई बहस और नया आकर्षण पैदा कर सके।

यही नहीं, राहुल गांधी ने उदयपुर शिविर के समापन के दिन यह कहकर क्षेत्रीय दलों को भी बिदका लिया कि “भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कांग्रेस के बारे में बात करेगी, वह कांग्रेस नेताओं के बारे में बात करेगी, कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बारे में बात करेगी, लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के बारे में बात नहीं करेगी क्योंकि वे (उसके नेता) जानते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियों की अपनी जगह है लेकिन वे भाजपा को हरा नहीं सकती हैं, क्योंकि उनके पास विचारधारा नहीं है।” हालांकि बाद में लंदन में आइडिया ऑफ इंडिया टॉक शो में उन्होंने सफाई दी कि उनकी बात को गलत समझा गया। क्षेत्रीय दलों से कांग्रेस सुपीरियर नहीं है। हमें एक साथ मिलकर ही देश की लोकतांत्रिक संस्‍थाओं और देश के मूल ‌विचार को बचाना है। यह लड़ाई सिर्फ भाजपा से नहीं, बल्कि ताकतवर डीप स्टेट से है, जिसे सब कुछ नष्ट करने का औजार बना लिया गया है।

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राहुल ने पहले भी भले थोड़े रूखे ढंग से बात की हो मगर उसमें दम तो है। मसलन, तृणमूल कांग्रेस लोकसभा की 40 सीटें जीत जाती है, तब भी वह भाजपा की चिंता के लिए बड़ी संख्या नहीं है। दूसरी तरफ, अगर कांग्रेस में जान आ जाती है तो भाजपा संकट में फंस सकती है, क्योंकि 150-200 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस में सीधी टक्कर है। उन्हीं सीटों पर पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का कमोवेश सफाया हो गया। इसलिए कांग्रेस भले चुनाव-दर-चुनाव हारती जाए, वह भाजपा के निशाने पर सबसे आगे है। यही वजह है कि राहुल को मूर्ख, ‘पप्पू’ की तरह पेश करने के अभियानों में कथित रूप से सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

सवाल यह भी है कि राहुल नरेंद्र मोदी को कोई खतरा पेश नहीं करते, न ही कांग्रेस अपने मौजूदा अवतार में कोई ताकतवर राजनैतिक ताकत है, फिर भी भाजपा राहुल और कांग्रेस पर वार में इतना समय और पैसा क्यों खर्च करती है? यहां चाहें तो भाजपा के दिग्गज लालकृष्‍ण आडवाणी का एक बार दिया वह बयान याद कर सकते हैं कि कांग्रेस उस महानद की तरह है, जो सूख जाए, फिर भी किसी बड़ी बारिश में उसमें हजारों नदी-नालों का प्रवाह शुरू हो सकता है, वह लबालब भरकर पुरजोर बहने लग सकती है।

लेकिन सवाल यह है कि यह एहसास कांग्रेस या उसके नेताओं को क्यों नहीं हो पा रहा है। मोटे तौर पर चिंतन शिविर में राहुल ने जो कहा, वह प्रशांत किशोर की बातों से बहुत अलग नहीं है, जो वे हाल में पत्रकारों से अपनी बातचीत में कहते रहे हैं। किशोर की दलील है कि भाजपा को हराने का एकमात्र तरीका यही हो सकता है कि कांग्रेस में दमखम लौट आए, उसमें आधा दमखम भी भर जाए तो भाजपा की मुश्किलें शुरू हो सकती हैं। उसे सहयोगियों पर आश्रित होने को मजबूर होना पड़ेगा, जो न मोदी के माफिक बैठेगा, न संघ परिवार के एजेंडे के लिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में अपने गठन के सौ साल के पहले ऐसी स्थिति तो नहीं ही चाहेगा।

तो, क्या कांग्रेस के पास जनमत बदलने की कोई रणनीति या तरीका है? ऐसा लगता है कि चिंतन शिविर में काफी कुछ राजनैतिक रणनीतिकार की प्रस्तुतियों से सीधे लिया गया है। मसलन, अक्टूबर में तय देशव्यापी यात्रा किशोर की सिफारिशों को ही आगे बढ़ाना है कि पार्टी लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान अभी से शुरू करे, न कि चुनाव की घोषणा होने का इंतजार करे। यहां तक कि सोनिया गांधी की केंद्रीय भूमिका में वापसी भी किशोर की योजना का हिस्सा है। इसी तरह यह भी कि चिंतन शिविर में सोनिया ने प्रतिनिधियों की बात गौर से सुनी, रात्रि भोज के दौरान उनकी मेज पर जा बैठीं, ताकि हर किसी को लगे कि उनकी पहुंच उन तक है।

किशोर ने यह समाधान भी सुझाया कि कांग्रेस देश के सामने नेताओं की एक लंबी पांत पेश करे। सोनिया गांधी अध्यक्ष जैसी शख्सियत हों मगर करीब आधा दर्जन कांग्रेस नेताओं को सामने लाना चाहिए, ताकि देश को याद दिलाया जा सके कि पार्टी में करिश्माई और अनुभवी नेता हैं। इसमें राहुल गांधी के लिए भी जगह है। शायद वे पार्टी के लोकसभा में नेता बन सकते हैं। इससे कांग्रेस राहुल बनाम मोदी के मुकाबले से मुक्त हो जाती है। दिक्कत यह है कि राहुल यह दोहराते रहते हैं कि उन्हें सत्ता में कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन असलियत में वे अपने हाथ की सत्ता रंच मात्र छोड़ना नहीं चाहते। शिविर में राहुल अपनी मां के बाद दूसरे नंबर पर दिखे।

चिंतन शिविर में फैसला करने के लिए व्यवस्था बनाने पर बात हुई लेकिन कुछ तय नहीं हुआ। ‘एक परिवार एक पद’ के सिद्धांत पर जोर दिया गया, जिसे सुविधाजनक तरीके से ऐसा मोड़ दिया गया, ताकि गांधी परिवार पर उसका असर न पड़े। ऐसे में तो कांग्रेस चाहे लाखों चिंतन शिविर कर ले, कुछ नहीं बदलेगा।

अगर कांग्रेस को फिर पूरे दमखम से जी उठना है, तो उसे आमूलचूल बदलाव के लिए तैयार होना होगा। छोटे-मोटे बदलाव नाकाम हो चुके हैं। अगर कांग्रेस अपना यह रुख नहीं बदलती है तो उसकी संभावनाओं में भी कोई सुधार देख पाना मुश्किल है।

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TAGS: Congress's Chintan Shivir, राजनीति, कांग्रेस चिंतन शिविर, कांग्रेस, Congress
OUTLOOK 07 June, 2022
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