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22 August 2018

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के तौर पर सत्यपाल मलिक की नियुक्ति के पीछे मोदी सरकार की रणनीति

नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार के लिए ‘जम्मू-कश्मीर’ प्रमुख राजनीतिक मुद्दा है। इस बीच राज्य के नए राज्यपाल के रूप में सत्यपाल मलिक की नियुक्ति बड़ा कदम है। बागपत के जाट समुदाय से आने वाले मलिक, आतंकवाद प्रभावित राज्य के राज्यपाल नियुक्त होने वाले पहले राजनेता हैं। उन्हें जम्मू-कश्मीर का प्रभार लेने के लिए बिहार से स्थानांतरित किया गया। उनसे पहले कर्ण सिंह एकमात्र राजनेता थे जिन्होंने राज्य के पहले राज्यपाल के तौर पर काम किया। वह सत्तारूढ़ परिवार से संबंधित थे।

यह साफ है कि केंद्र 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। वे राज्यपाल के तौर पर एक ऐसे व्यक्ति को चाहते थे जो राजनीतिक मजबूरियों को समझ सके और केंद्र के साथ सहयोग करे। मलिक के पूर्ववर्ती एनएन वोहरा अब केंद्र में भाजपा सरकार के लिए सुविधाजनक नहीं थे। वोहरा ने राज्य में बाहरी लोगों को भूमि स्वामित्व अधिकारों की अनुमति देने पर अनुच्छेद 35 ए के केंद्र के संचालन पर अलग राय रखी। भाजपा के महबूबा सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद वोहरा राज्य में किसी अन्य सरकार के गठन के पक्ष में नहीं थे। राज्य तब से राज्यपाल शासन के अधीन है।

इस सूबे में हमेशा किसी नौकरशाह या एक सेवानिवृत्त सेना जनरल को केंद्र का प्रतिनिधि बनाया जाता रहा है। केंद्र में लगातार सरकारों ने यह मानदंड अपनाया कि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य को संभालने के लिए एक अनुभवी प्रशासक या एक सेना अधिकारी की आवश्यकता होती है जहां निर्वाचित सरकारें आम तौर पर कमजोर होती हैं। विभिन्न सरकारों में वोहरा को नियमित रूप से चार बार राज्य का प्रभार मिला।

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10 साल तक गवर्नर रहे वोहरा, एक सेवानिवृत्त नौकरशाह भी थे, जिन्होंने रक्षा सचिव, गृह सचिव और यहां तक कि प्रधान मंत्री आईके गुजराल के प्रधान सचिव के रूप में भी कार्य किया था। वास्तव में, वोहरा से पहले, राज्य के राज्यपाल के रूप में सेना के जनरलों की एक लंबी सूची थी, जहां तीन दशकों से सेना आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों में शामिल रही है। जगमोहन 1990 में जम्मू-कश्मीर राज्यपाल पद संभालने वाले अंतिम आम नागरिक थे। वोहरा, शायद एकमात्र राज्यपाल थे जिन्हें 2014 में मोदी सरकार द्वारा बदला नहीं गया था। उन्हें यूपीए सरकार के समय में एक और कार्यकाल मिला था।

बेबी रानी मौर्य की उत्तराखंड के राज्यपाल के तौर पर नियुक्ति से यह साफ है कि भाजपा चुनाव से पहले ओबीसी को संदेश देने की इच्छुक है। पिछड़े वर्ग से आने वाली भाजपा नेता मौर्य आगरा की महापौर भी रह चुकी हैं।

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TAGS: Modi Govt, Strategy, Behind, Appointment, Satya Pal Malik, Jammu & Kashmir, Governor
OUTLOOK 22 August, 2018
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