जम्मू-कश्मीर: कहीं ये नूरा-कुश्ती तो नहीं
अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई पर भाजपा और पीडीपी में खूब जमकर बयानबाजी हो रही है। आज संसद में भी इसे लेकर हंगामा रहा। जम्मू-कश्मीर भाजपा के प्रमुख और सांसद जुगल किशोर शर्मा का यह कहना कि यह मुख्यमंत्री का एकतरफा फैसला है और इसके बारे में भाजपा से कोई मशविरा नहीं किया गया था।
इसी तरह से शपथग्रहण के समय मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद का कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए अलगावादियों, पाकिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर आदि का धन्यवाद करने पर भी बवाल उठा था। सवाल यह है कि मुफ्ती मोहम्मद जैसा सुलझा नेता यह सब क्यों कर रहा है। इसका विरोध करने वाली भाजपा को क्या इन तमाम मुद्दों का पहले से अंदाजा नहीं था।
पीडीपी का धारा ३७० को लेकर जो रुख है, वह भाजपा जानती है और भाजपा का इस धारा को विरोध से पीडीपी वाकिफ है। फिर सत्ता संभालने के तुरंत बाद मुफ्ती आखिर ये बयान देकर कश्मीर की घाटी को क्या संदेश देना चाह रहे हैं। इस तरहके बयान और कदम उठाकर मुफ्ती मोहम्मद शायद यह बताना चाह रहे हैं कि भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार बनाने के बावजूद वह अपनी पार्टी के स्टैंड में कोई परिवर्तन करने वाले नहीं है।
इसी तरह से भाजपा भी इन कदमों पर हंगामा काटकर अपने वोट बैंक को यह संदेश देना चाहती है कि वह अपने सिद्धांतों से हटी नहीं है। जबकि धारा ३७० पर जो उसका रुख रहा है, उस पर पीडीपी के आगे उसे झुकना ही पड़ा। यह कश्मीर की राजनीति की खासियत भी है। वैसे भी, कश्मीर में भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उप-मुख्यमंत्री पद हासिल करके उसने कश्मीर की राजनीति में एक जगह बना ली है।
उधर पीडीपी को यह आशंका है कि भाजपा गठबंधन को किस तरह से कश्मीर की वादी स्वीकार करेगी। ध्यान देने योग्य बात है कि अभी तक भाजपा गठबंधन के ऊपर किसी भी अलगवादी नेता की कोई टिप्पणी नहीं आई है। कश्मीर के इस हिस्से को मुखातिब है मुख्यमंत्री के ये कदम।
बाकी जो तनाव है, वह नूर-कुश्ती से ज्यादा कुछ नहीं क्योंकि दोनों पक्षों को अपने-अपने वोट बैंक की चिंता है, लेकिन साथ ही सत्ता को संभाल कर रखना उनकी राजनीतिक मजबूरी भी।