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15 July 2016

पूर्वांचल बनेगा सियासी मुद्दा

पूर्वांचल के सभी जिलों में समूहों में बैठक कर लोग अलग राज्य को लेकर बना रहे हैं रणनीति

आज एक बार फिर पूर्वांचल राज्य के गठन की मांग जोर पकड़ने लगी। भाजपा और बसपा सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन अलग राज्य के गठन की पक्षधर है वहीं समाजवादी पार्टी नहीं चाहती कि अलग राज्य का गठन हो। बुंदेलखंड के बाद पूर्वांचल उत्तर प्रदेश का सबसे पिछड़ा इलाका है। इसकी वजह जातिगत समीकरण के साथ-साथ विशाल जनसंख्या है। पूर्वांचल के प्रमुख मुद्दों में नागरिक बुनियादी सुविधाओं की कमी उचित ग्रामीण शिक्षा और रोजगार, कानून-व्यवस्था प्रमुख चिंता का कारण है। लेकिन भाजपा इस इलाके को लेकर खासा गंभीर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस से लोकसभा चुनाव लड़कर इस इलाके के विकास को लेकर प्रतिबद्धता जताई। इतना ही नहीं, गाजीपुर के सांसद मनोज सिन्हा को केंद्र में रेल राज्य मंत्री बनाया तो देवरिया के सांसद कलराज मिश्र को कैबिनेट मंत्री बनाकर इलाके में विकास की एक किरण जगाई। वहीं कैबिनेट विस्तार में चंदौली के सांसद महेंद्र नाथ पांडेय और मिर्जापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल को केंद्र में मंत्री बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की इस क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार कितनी गंभीर है। लेकिन सरकार के दावों के बावजूद यह क्षेत्र विकास से कोसों दूर है। कई सरकारें आई और चली गईं लेकिन पूर्वांचल का पिछड़ापन जस का तस रहा। अलग पूर्वांचल राज्य के गठन की मांग की लड़ाई लंबे समय से होती रही है लेकिन संगठित रूप से लड़ाई नहीं हो पाने के कारण पूर्वांचल का मुद्दा हमेशा नेपथ्य में चला गया। छोटी-छोटी सामाजिक लड़ाइयां लड़ी गईं। जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे उस समय गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने पूर्वांचल के पिछड़ेपन की चर्चा की थी। उस समय नेहरू ने पूर्वांचल के आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पटेल आयोग का गठन किया। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी लेकिन उस रिपोर्ट का क्या हुआ आजतक पता ही नहीं चला। साठ के दशक में जब आंध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाए जाने की मांग तेज हुई उस समय भी पूर्वांचल को अलग राज्य को लेकर अभियान चलाया गया। लेकिन यह आंदोलन जोर नहीं पकड़ सका।

आंध्र प्रदेश अलग हो गया, आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना बन गया लेकिन पूर्वांचल की मांग ज्यो की त्यों धरी रह गई। 1982-83 में विजय दुबे ने इस आंदोलन को पूर्वांचल मुक्ति मोर्चा के बैनर तले शुरू किया। उस समय कई लोग इस आंदोलन से जुड़े लेकिन समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव पूर्वांचल के विरोधी रहे और आंदोलन के नेताओं को पद का लालच देकर अलग करते रहे। सतरुद्ध प्रकाश से लेकर प्रभुनारायण सिंह, हरिकेवल प्रसाद आदि का नाम शामिल है। छोटे-छोटे समूहों में बंटे होने के कारण पूर्वांचल के बंटवारे का कोई बड़ा मुद्दा नहीं उठ सका। अब एक राजनीतिक दल पूर्वांचल पीपुल्स पार्टी का गठन कर इस आंदोलन को जीवित किया जा रहा है। पूर्वांचल के कई जनपदों में पार्टी के सदस्य सक्रिय हैं और अलग राज्य को लेकर अभियान शुरू कर चुके हैं।

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद सिंह आउटलुक से कहते हैं कि राजनीतिक दलों ने विकास के नाम पर पूर्वांचल के साथ केवल धोखा किया है। किसी भी पार्टी ने यहां के विकास के बारे में नहीं सोचा। यही कारण है कि आज पूर्वांचल की गिनती देश के पिछड़े इलाके में होने लगी है। सिंह कहते हैं कि आंदोलन को बड़ा स्वरूप देने के लिए अब राजनीतिक पार्टी का गठन किया गया और आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार भी खड़ा करेगी। पूर्वांचल के विकास की उपेक्षा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गोरखपुर की खाद फैक्ट्री से लेकर कई चीनी मिलें बंद हो गईं। आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बनारस के बुनकर बदहाली के कगार पर आ गए। भदोही के कालीन उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा। बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में पलायन करने लगे। आज भी देश की आर्थिक नगरी मुंबई में पूर्वांचल के लोगों का कब्जा है। यह सब इसलिए कि पूर्वांचल के विकास को लेकर कभी किसी सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया। केंद्रीय योजनाओं के तहत बुनकरों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की गई। प्रदेश सरकार ने बंद पड़ी चीनी मिलों को खोलने की पहल की। लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। आज पूर्वांचल के किसान से लेकर बुनकर तक हताशा, कर्ज, बीमारी की चपेट में आ गए हैं। चुनाव सिर पर हैं इसलिए पूर्वांचल के विशेष पैकेजों की घोषणा से लेकर तमाम तरह के वादे किए जा रहे हैं लेकिन किसी सियासी दल ने पूर्वांचल के प्रति अपनी गंभीरता नहीं दिखाई। जब-जब राज्यों के बंटवारे की बात हुई तो बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि अलग राज्य बनाया जाना चाहिए लेकिन समाजवादी पार्टी ने विरोध किया। वहीं भाजपा ने भी छोटे राज्यों का समर्थन किया ताकि विकास के लिए किए जा रहे वायदे पूरे किए जा सकें।

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पूर्वांचल राज्य की मांग सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी करती आ रही है इसलिए पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव भी लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है ताकि पूर्वांचल की मांग और तेज हो सके। पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर कहते हैं कि जब तक पूर्वांचल अलग राज्य नहीं बनेगा तब तक यहां का विकास नहीं हो सकता। पूर्वांचल को लेकर अब हर तबके से लोग सामने आ रहे हैं। बनारस के डीएवी कॉलेज के प्रोफेसर सतीश कुमार सिंह कहते हैं कि पूर्वांचल के विकास का सपना तभी पूरा होगा जब अलग राज्य का दर्जा मिलेगा। वहीं पूर्वांचल पीपुल्स पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अलग राज्य बनाने की पहल करने की मांग की है। पार्टी के कार्यकर्ता पूर्वांचल के इलाकों में घर-घर जाकर अलग राज्य को लेकर हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद सिंह कहते हैं कि जो भी दल अलग पूर्वांचल राज्य की बात करेगा उसको पार्टी समर्थन देगी। पूर्वांचल के सियासी हालात को देखते हुए एक बात तो तय मानी जा रही है कि यहां के विकास को लेकर राजनीतिक पार्टियां बड़े-बड़े वादे करेगी और चुनावी मुद्दा बनाएगी। क्योंकि पूर्वांचल में एक बड़ा वोट बैंक है और यहां वर्तमान में समाजवादी पार्टी का दबदबा है। साल 2012 के चुनाव से पहले बसपा का इस इलाके में दबदबा रहा है। भाजपा भी एक समय पूर्वांचल में अपनी जड़े जमा चुकी है। ऐसे में पूर्वांचल के विकास को मुद्दा बनाकर सियासी दल विधानसभा चुनाव में भुनाने की कोशिश जरूर करेंगे।

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TAGS: पूर्वांचल, मुद्दा, राजनीति, उत्तर प्रदेश, विधानसभा चुनाव, मांग, पूर्वांचल पीपुल्स पार्टी
OUTLOOK 15 July, 2016
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