गुजरात: इन छह बड़े कारणों से संकट में आई रुपाणी की कुर्सी, देना पड़ा इस्तीफा
गुजरात में अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया है। शनिवार को मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद तरह तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि आखिर किसलिए रुपाणी को अपना पद छोड़ना पड़ा?
गौरतलब है कि विजय रुपाणी को साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को हटाकर गुजरात के सत्ता की बागडोर सौंपी गई थी। 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने विजय रुपाणी के नेतृत्व में लड़ा था, मगर यह चुनाव जीतने में भाजपा को भारी मशक्कत करनी पड़ी थी। वहीं गुजरात में अगले साल आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसके मद्देनजर भी रुपाणी को हटाना पड़ा।
2022 विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने की चाह
भारतीय जनता पार्टी आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में किसी भी तरह अपनी जीत को सुनिश्चित करना चाहती है, और दोबारा से सत्ता में वापसी करने की राभ में कोई व्यवधान नहीं चाहती। लिहाजा केंद्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष शनिवार को अचानक गांधी नगर पहुंचे, जहां उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल और प्रदेश प्रभारी रत्नाकर के साथ बैठक की। इसी के बाद विजय रुपाणी राज्यपाल के अपना इस्तीफा देने के लिए पहुंचे।
प्रभावी चेहरा बन कर नहीं उभर सके
गुजरात में नरेंद्र मोदी के बाद कोई भी मुख्यमंत्री बड़े सियासी चेहरे के तौर पर नहीं उभर सके हैं। विजय रुपाणी भीब पांच साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद भी सियासी तौर पर अपना प्रभाव नहीं जमा सके। 2017 में भी भले ही विजय रुपाणी पार्टी का चेहरा रहे हैं, मगर चुनाव नरेंद्र मोदी के दम पर पार्टी ने जीती थी। वहीं पश्चिम बंगाल चुनाव में मिली हार के बाद से भाजपा ने तय किया कि राज्यों में अपने नेतृत्व को मजबूत करेगी। इसी का परिणाम है कि उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद अब गुजरात में मुख्यमंत्री बदला है ताकि 2022 के चुनाव में मजबूत चेहरे के सहारे विजय श्री मिल सके।
पाटीदार प्रभाव
अहमदाबाद में विश्व पाटीदार समाज के सरदार धाम के उद्घाटन के कुछ घंटों बाद विजय रूपाणी के इस्तीफे को गुजरात में पाटीदार समाज के पटेल प्रभाव के तौर पर भी देखा जा रहा है। गुजरात में पाटीदार समुदाय काफी महत्वपूर्ण है, जो राज्य के राजनीतिक खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। राज्य में पाटीदार समाज भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है, जिसे साधे रखने के लिए भाजपा हरसंभव प्रयास में जुटी है। यही कारण है कि गुजरात के सीएम पद की दौड़ में सबसे आगे नितिन पटेल, केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडवीया, केंद्रीय मंत्री परसोत्तम रूपाला तथा गुजरात बीजेपी के उपाध्यक्ष गोवर्धन झड़फिया का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में है।
कोविड नियंत्रण में नाकामी
विजय रुपाणी की कुर्सी जाने में सबसे बड़ा कारण कोविड महामारी भी बनी। राज्य में कोरोना संकट को निपटने में विजय रूपाणी बहुत अच्छा नहीं रहे हैं, इस पर विपक्ष ने भी लगातार सवाल खड़े किए हैं। जनता के बीच भी गुजरात में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर अच्छी खासी नाराजगी देखने को मिल रही थी। ऐसे मेंकेंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा बदलकर सत्ताविरोधी लहर को समाप्त करने का दांव खेला है।
सरकार और संगठन में अनबन
सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा रही है कि गुजरात में विजय रुपाणी सरकार और बीजेपी के प्रदेश संगठन के बीच बेहतर तालमेल नहीं रहे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील और सीएम रुपाणी के बीच छत्तीस के आंकड़े थे। लिहाजा भाजपा चुनावी मैदान में उतरने से पहले संगठन और सरकार के बीच बेहतर समन्वय बनाए रखना चाहती है।
जातीय समीकरण भी बड़ा फैक्टर
भारतीय राजनीति में चुनाव करीब आते ही जातीय समीकरण पर माथापच्ची तेज होने लगती है। विजय रुपाणी जैन समुदाय से आते हैं, जिसकी वजह से गुजरात के जातीय समीकरण में वे फिट नहीं बैठ रहे हैं। राज्य में पाटीदार के बाद दूसरे नंबर पर मौजूद ओबीसी समुदाय और दलित-आदिवासी वोटर सबसे महत्वपूर्ण है। भाजपा का जैन कार्ड बहुत ही प्रभावशाली नहीं माना जाता है, जिसकी वजह से भाजपा ने 2022 के चुनाव से पहले विजय रुपाणी को हटाकर अपने राजनीतिक समीकरण को फिट करने का दांव चला है।