किसानों के साथ कांग्रेस की सिंघु बॉर्डर पर डिनर डिप्लोमेसी, हुई खास चर्चा
कृषि कानूनों के विरोध में एक महीने से भी ज्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर कड़ाके की ठंड में रातें गुजारते किसानों ने नए साल का आगाज भी सड़कों पर बसाए ट्रॉलियों व टैंटों के शहर में किया।
पंजाब,हरियाणा,यूपी,राजस्थान और देश के कई अन्य राज्यों से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डालने वाले किसानों ने 2021 की पूर्व संध्या अपने साथ मनाने के लिए आम नागरिकों का भी आह्रवान किया जिससे आम नागरिकोें के साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं की किसानों के साथ 31 दिसंबर की रात डिनर डिप्लोमेसी में केंद्र सरकार के साथ चार जनवरी को होने वाली आठवें दौर की बैठक की रणनीति बारे भी चर्चा हुई। 31 दिसंबर की डिनर डिप्लोमेसी में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने बकायदा किसानों को डिनर परोसा और भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी के टैंट में काफी वक्त गुजारा। रणदीप से पहले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अौर उनके सांसद पुत्र दिपेंद्र हुड्डा भी कई बार सिंधु और टिकरी बाॅर्डर पर बैठे किसानों के बीच हो आए हैं।
हालांकि किसान संगठन किसी भी राजनीतिक दल के सरंक्षण से परे होने का दावा कर रहे हैं पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता खुलकर किसानों के इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री के निर्देेश पर कांग्रेसी सांसद और विधायक बारी-बारी से किसान आंदाेलन के फेरे लगा रहे हैं। तीन बार किसानों के साथ धरने में शामिल हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किसानों के समर्थन में तमाम सरकारी मशीनरी झौंक रखी है।
कांग्रेस व अाम आदमी पार्टी के नेताओं के किसान आंदोलन में खुलकर शामिल होने के सवाल पर भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी का कहना है कि आंदोलन पूरी तरह से किसान संगठनों के हाथ है किसी सियासी दल के हाथों आंदोलन की कमान नहीं हैं। कांग्रेस और आप के कई नेता किसानों का समर्थन करने धरना स्थलों पर रोज आ रहे हैं जबकि अन्य दलों खासकर भाजपा के नेताओं ने किसानों के इस आंदोलन से दूरी बनाई हुई है। किसान संगठनों ने भाजपा नेताओं और इसके कार्यकर्ताओं का पूरी तरह से बहिष्कार किया हुआ है,इसलिए उन्हें आंदोलनरत िकसानों के बीच आने की अनुमति नहीं है।
पंजाब के बड़े किसान संगठन भाकियू(उगरांह)के महासचिव सुखदेव िसंह कोकरीकलां ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि उनकी यूनियन की कड़ी नियमावली मुताबिक किसी भी सियासी नेता को उनके धरने में शामिल होने से पहले इजाजत लेनी होती है और धरने में बैठे किसानों को संबोधित करने की किसी सियासी नेता को अनुमति नहीं दी जाती। इनका कहना है कि पंजाब की तुलना में हरियाणा के नेता किसान आंदोलन में अधिक सक्रिय इसलिए हैं कि वहां के किसान संगठन इसकी खुली अनुमति दे रहे हैं।
इस बीच शुक्रवार दोपहर दो बजे से सिंधु बॉर्डर पर किसान संगठनों की एक अहम बैठक होगी जिसमें केंद्र सरकार के साथ अगले दौर की 4 जनवरी को होने वाली बैठक बारे रणनीति तय की जाएगी। इस बैठक से पूर्व 31 दिसंबर की रात हरियाणा के किसान संगठनों के बीच कांग्रेसी नेताओं की देर रात उपस्थिती से आंदोलन की दिशा और दशा पर भी कई सवाल खड़े होना लाजिमी है।