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01 January 2017

राष्ट्रीय राजनीति में पहचान खो रही है माकपा

गूगल

हरकिशन सिंह सुरजीत और ज्योति बसु जैसे दिग्गज नेताओं के नेतृत्व में माकपा ने 1989 में वीपी सिंह सरकार, 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार और 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग-1 सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।

इन सभी सरकारों में माकपा ने न केवल बाहर से समर्थन दिया बल्कि एक ऐसे दल की भूमिका भी निभायी जिसने विभिन्न क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय दलों को एकजुट रखा।

लेकिन यह सब अब अतीत की बातें हैं और इस समय माकपा के पास राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए ना तो मजबूती है और न ही नेतृत्व है। माकपा पोलितब्यूरो के सदस्य हानन मुल्ला ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हां यह सच है कि कई मौके पर वाम मोर्चा ने विपक्षी ताकतों को एकजुट रखने में बड़ी भूमिका निभायी थी। लेकिन इस समय हमारे पास संसद में जो मजबूती है और संगठनात्मक क्षमता है, उसमें हमारे लिए वह भूमिका निभाना संभव नहीं है। जब तक हम अपनी खामियां दूर नहीं करते, हमारे लिए ऐसा करना संभव नहीं होगा।’’

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वर्ष 1996 में संयुक्त मोर्चा के शासन में माकपा नेतृत्व वाले वाम मोर्चा की लोकसभा में 52 जबकि 2004 में संप्रग-1 के शासन में 60 सीटें थीं। वर्ष 1989 में वीपी सिंह सरकार के शासन में वाम मोर्चा के पास लोकसभा में 52 सीटें थीं।

लेकिन वर्ष 2014 में लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या घटकर केवल 11 हो गयी। मुल्ला ने कहा, ‘‘पहले 50 से अधिक सीटों के साथ हम नेतृत्व करने वाली स्थिति में थे। लेकिन अब वाम मोर्चा एक बेहद मामूली ताकत है और इस मजबूती के साथ आप एक बड़ी भूमिका निभाने का सपना नहीं देख सकते।’’

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TAGS: Once a pivotal force, uniting the opposition, CPI(M), depleted strength, now just a shadow, Trinamool Congress
OUTLOOK 01 January, 2017
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