मंदिर के मायने: राम मंदिर का चुनावी नफा और नुकसान
अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह देश के लिए महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक पल है। इसके कई निहितार्थ हो सकते हैं। सबसे पहला तो यही कि यह मंदिर महत्वपूर्ण तीर्थस्थल के रूप में उभरेगा, जो भारत और विदेश में हिंदू समुदाय पर स्थायी सांस्कृतिक और सभ्यतागत प्रभाव डालने वाला होगा। दूसरा, विभिन्न धार्मिक आस्थाओं से जुड़े लोगों के लिए यह प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है। तीसरा, यह दुनिया भर के हिंदुओं के लिए गौरव का प्रतीक बनकर उभर सकता है। गौरव के इस एहसास का प्रभाव लोगों को संगठित या लामबंद करने के लिए भी हो सकता है जिसका आने वाले वर्षों में सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव दिखने की संभावना है।
मेरी विशेषज्ञता का क्षेत्र राजनीतिक मानवविज्ञान आधारित विश्लेषण है, इसलिए लोग मुझसे पूछते रहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के राजनीतिक निहितार्थ क्या होंगे। इसमें संदेह नहीं कि यह घटना भारतीय राजनीति पर वाकई असर डालेगी। निश्चित रूप से यह घटना आगामी आम चुनावों की प्रक्रिया और परिणाम को प्रभावित कर सकती है। मंदिर के उद्घाटन का प्रभाव सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों को ही को प्रभावित करेगा।
यह आयोजन आम चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की इच्छा रखने वाले राजनीतिक दलों को महत्वपूर्ण राजनीतिक बढ़त हासिल करने में मदद कर सकता है। इससे नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी लाभार्थी बनकर उभर सकती है। पार्टी राम मंदिर आंदोलन संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल रही है। भाजपा के मुख्य चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त किया। यही वजह है कि राम जन्मभूमि मुद्दे से पैदा हुए राजनीतिक लाभ का बड़ा हिस्सा भाजपा को मिल सकता है। इससे मतदाताओं, विशेषकर हिंदू मतदाताओं को भाजपा के लिए एकजुट करने में मदद मिल सकती है।
भारतीय समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक स्मृति में भगवान राम महत्वपूर्ण रहे हैं। भगवान राम को विभिन्न जातियों, वर्गों और समुदायों के लोगों ने कथाओं और भजनों के माध्यम से अपनी स्मृतियों में जीवित बनाए रखा है। भगवान राम ने समाज को जोड़ने और एक सूत्र में पिरोने का काम किया है। अमीर, गरीब, महिला, दलित, किसान, मध्य वर्ग सभी का राम से गहरा जुड़ाव रहा है। यही वजह है कि इस नवनिर्मित राम मंदिर से उनका भावनात्मक जुड़ाव है।
रामायण के विभिन्न पात्रों का भी एक विशिष्ट सामाजिक-कथात्मक आधार है। कई हाशिये और वंचित समुदाय के लोग हनुमान, जटायु, निषाद राज और शबरी जैसे पात्रों को अपने करीब पाते हैं। कई आदिवासी समुदाय दावा करते हैं कि वे शबरी के वंशज हैं। इसी जुड़ाव के कारण जनजातीय समुदायों में राम का प्रभाव है। राम के वनवास जाते वक्त उन्हें गंगा नदी पार करने में मदद करने वाले निषाद राज गुह्या के समुदाय के लोग देश में तटीय और नदी क्षेत्रों में रहने वाले निषाद, मल्लाह, माझी, मझवार, केवट और बड़ी संख्या में अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) समुदायों के सबसे बड़ा प्रतीक हैं।
हनुमान सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से हैं। दिलचस्प यह है कि आदिवासी, दलित और विभिन्न वंचित समुदाय उन्हें अपने में से एक मानते हैं। कुछ जनजातीय समुदायों में तो जटायु की भी आश्चर्यजनक उपस्थिति है। भारत में विभिन्न कारीगर जातियां दावा करती हैं कि वे रामेश्वरम और लंका के बीच सेतु के मुख्य वास्तुकार नल-नील के वंशज हैं। इसी सेतु से होकर राम, रावण से लड़ने के लिए लंका गए थे।
जनता को शबरी, जटायु, हनुमान और रामायण के विभिन्न पात्रों के महत्व समझाने और विभिन्न समुदायों पर उनके प्रभाव को देखते हुए राम जन्मभूमि ट्रस्ट मुख्य परिसर में इन पात्रों के मंदिर बनाने की योजना बना रहा है। विभिन्न वंचित समुदायों के लिए यह गर्व का विषय होगा और बदले में भाजपा जैसे राजनीतिक दलों के लिए यह गर्व वोट में बदल सकता है। राम मंदिर निर्माण भाजपा का अहम वादा था। पार्टी इसे वादा निभाने की 'मोदी गारंटी' के रूप में पेश कर सकती है।
महत्वपूर्ण है कि उद्घाटन समारोह के लिए आदिवासी, गिरिवासी, तटवासी, द्वीपवासी आदि जैसे 50 वंचित समुदायों के प्रतिनिधियों को अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। इस तरह आयोजकों ने अतिथि के रूप में हाशिये के इन लोगों को आमंत्रित और समान महत्व देकर समझदारी का परिचय दिया। इससे उन्हें यह साबित करने में मदद मिल सकती है कि राम मंदिर का उद्घाटन एक 'वृहद एकीकृत और एकजुटता' कार्यक्रम था, जो समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाएगा। राम मंदिर को केंद्र में रख कर होने वाली किसी भी तरह की राजनीतिक लामबंदी इन समुदायों को उन राजनीतिक दलों की ओर आकर्षित कर सकती है जो अपने चुनाव अभियान को इसके इर्द-गिर्द रखेंगी।
मंदिर के उद्घाटन का असर सिर्फ राष्ट्रीय- राजनीतिक परिदृश्य पर ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा। पूरी संभावना है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति पर इसका गहर असर पड़ेगा। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के लोगों को राम मंदिर और राज्य के बारे में यह धारणा बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके विभिन्न सहयोगी संगठनों ने प्रत्येक घर को उद्घाटन समारोह से जोड़ने के लिए व्यवस्थित रूप से काम किया। उन्होंने इसे जन-उत्सव के रूप में पेश करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इसलिए, उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मैदान में यह घटना भाजपा जैसे राजनीतिक दलों के लिए बड़ा लाभांश साबित हो सकती है।
इन सब के बीच, इस घटना को लेकर कांग्रेस और ‘इंडिया’ समूह की अन्य पार्टियां असमंजस की स्थिति में रहीं। वे न तो उद्घाटन के साथ चल रहे सार्वजनिक उत्साह को स्वीकार कर पाए, न ही राम मंदिर को पूरी तरह खारिज कर पाए क्योंकि यह हिंदुओं के लिए भावनात्मक मुद्दा है। यही वजह रही कि उद्घाटन को लेकर उनकी स्थिति अस्पष्ट थी। असमंजस की ऐसी स्थिति से हिंदुत्ववादी विचार रखने वाले उनकी पार्टी से विमुख हो सकते हैं। कुछ हद तक इसका फायदा उन्हें मुसलमानों जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के बीच मिल सकता है।
आम चुनाव में अब बहुत देर नहीं हैं। यह देखना बाकी है कि आगामी चुनावों में राम मंदिर का उद्घाटन राजनीतिक दलों के लिए क्या मायने रखता है। जाहिर है, कुछ पाएंगे, कुछ खोने की संभावना से भरे हुए हैं।
(सामाजिक इतिहासकार और मानवविज्ञानी। विचार निजी हैं।)