चिदंबरम ने कहा- राहत पैकेज सिर्फ 1.86 लाख करोड़ का, लोगों को चाहिए ज्यादा मदद
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि सरकार ने भले ही 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का भरपूर प्रचार किया और पांच दिनों तक इसकी घोषणाएं कीं लेकिन वास्तव में मौजूदा वित्त वर्ष के बजट प्रस्तावों के अतिरिक्त सरकार ने सिर्फ 1,86,650 करोड़ रुपये विभिन्न स्कीमों पर खर्च करने का निर्णय किया है। देश की जीडीपी के मुकाबले महज 0.91 फीसदी का राहत पैकेज कोरोना संकट और गंभीर आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए बेहद कम और अपर्याप्त है।
बजट प्रस्तावों को पैकेज में जोड़ दिया
चिदंबरम ने बयान जारी करके कहा कि बहुत छोटे राहत पैकेज के कारण जरूरतमंदों और आर्थिक मुश्किल में पड़े लोगों को संकट के बीच में छोड़ दिया गया है। उन्हें इस समय सरकार से मदद की दरकार है जो नहीं मिल पा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष में 30,42,230 करोड़ रुपये के व्यय का बजट पेश किया था। 1.86 लाख करोड़ रुपये के व्यय को छोड़कर सरकार ने बजट प्रस्तावों को ही राहत पैकेज में दिखा दिया है। उनका कहना है कि संकट की गंभीरता को देखते हुए बड़े पैकेज की जरूरत है, लेकिन सरकार ने इसे बड़ा दिखाने की कोशिश भर की है। विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों, बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने भी जीडीपी के मुकाबले राहत पैकेज सिर्फ 0.8 फीसदी से 1.5 फीसदी के बीच बताया है।
इन वर्गों को चाहिए सहायता
चिदंबरम के अनुसार, सरकार के इस रवैये के कारण देश के 50 फीसदी सबसे गरीब 13 करोड़ परिवार, प्रवासी मजदूर, किसान, भूमिहीन कृषि मजदूर, दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले गैर कृषि श्रमिक, नौकरियों से निकाले गए बेरोजगार, नौकरियां गवां चुके असंगठित और अपंजीकृत फर्मों के कर्मचारी, स्वरोजगार में लगे लोग, सात करोड़ दुकानदार, निम्न मध्यम वर्ग के परिवार और 5.8 करोड़ एमएसएमई इकाइयां, गंभीर संकट में फंसे हैं।
10 लाख करोड़ का पैकेज दे सरकार
पूर्व वित्त मंत्री ने राहत पैकेज पर निराशा जताते हुए सरकार से मांग की है कि बड़े और राहत देने वाले पैकेज पर विचार किया जाए और कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त व्यय के पैकेज की दोबारा घोषणा की जाए। सरकार का कुल व्यय जीडीपी के मुकाबले कम से कम दस फीसदी होना चाहिए।
लिक्विडिटी और कर्ज प्रवाह बढ़ाने और आर्थिक सुधारों के साथ नीतिगत घोषणाए किए जाने पर चिदंबरम ने कहा कि सरकार को ये कदम उठाने ही थे। इन उपायों की आवश्यकता तो थी लेकिन उन्हें राहत पैकेज का हिस्सा नहीं कहा जा सकता है।