Advertisement
07 September 2019

कश्मीर में सूख गई मुख्यधारा की सियासत

गैटी इमेजेज

केंद्र में 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद से जम्मू-कश्मीर की दो क्षेत्रीय पार्टियां पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) भारत के संविधान के अनुच्छेद 35ए के साथ छेड़छाड़ के किसी भी कदम के खिलाफ केंद्र सरकार को चेतावनी देती रही हैं। अब अनुच्छेद 370 के साथ-साथ अनुच्छेद 35ए को हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के गैर-निवासी भी इलाके में भूमि पर मालिकाना हक हासिल कर सकते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने पांच अगस्त को संसद में न सिर्फ अनुच्छेद 35ए, बल्कि अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को खत्म करने की बात कही। साथ ही, राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया। फैसले से दो दिन पहले सुरक्षा बलों की तैनाती और भय के माहौल ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री से मिलने और राज्य की विशेष स्थिति पर आश्वासन लेने को मजबूर किया।

पहचान जाहिर न करने की शर्त पर एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “उन्होंने सोचा कि भाजपा अनुच्छेद 35ए को हटाएगी या राज्य को तीन भागों में बांटेगी। उन्हें अंदाजा नहीं था कि भाजपा इससे आगे तक जाएगी। उसने अनुच्छेद 35ए, 370 को हटाया, राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया। इसने यहां की मुख्यधारा को चौंका दिया।” वे कहते हैं कि अनुच्छेद 370 के इर्द-गिर्द ही दोनों दलों की राजनीति घूम रही थी और सरकार के कदम ने यहां केंद्रीय राजनीति को विस्तार दिया है। पर्यवेक्षकों के अनुसार, सरकार एनसी, पीडीपी या अन्य छोटे क्षेत्रीय दलों जैसे सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्‍फ्रेंस और शाह फैसल के पीपुल्स यूनाइटेड फोरम (पीयूएफ) के लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा है। वे कहते हैं, “जो कुछ भी हुआ उसे लेकर वे अब भी सदमे की स्थिति में हो सकते हैं।”

नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, “जम्मू-कश्मीर सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील राज्य है। जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बलों की यूनिफाइड कमांड काउंसिल के प्रमुख होता था। वह विदेश मामलों में भी बात कर सकता था। और, अचानक केंद्रशासित प्रदेश के तहत आपने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री को उप-राज्यपाल के अधीन कर दिया है। फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं के लिए यह असंभव है या फिर अलग मामले में देखें, तो सज्जाद लोन और शाह फैसल का भी मौजूदा व्यवस्थाओं के तहत मुख्यमंत्री बनने के लिए सहमत होना असंभव है।”

Advertisement

दक्षिण कश्मीर क्षेत्र के पूर्व सांसद जी.एन. रतनपुरी का कहना है, “उमर अब्दुल्ला ने बार-बार कहा है कि यदि अनुच्छेद 370 को हटाया जाता है, तो नई दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बारे में बात करने का एकमात्र विकल्प विलय की संधि है, जो सशर्त थी। मुझे संदेह है कि वह यह कदम उठाएंगे।”

5 अगस्त के बाद एनसी छोड़ चुके रतनपुरी कहते हैं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसदों ने संसद से इस्तीफा नहीं दिया है। वे एनसी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की हिरासत को चुनौती देने के लिए अदालत भी नहीं गए हैं। रतनपुरी कहते हैं, “फारूक अब्दुल्ला की घर में नजरबंदी के बाद मैंने एनडीटीवी पर उनका एक संक्षिप्त साक्षात्कार देखा, जिसमें वह भारत से बात कर रहे थे और देश से पूछ रहे थे कि “हमने एक साथ कई लड़ाइयां लड़ी हैं।” मुझे लगता है कि फारूक अब्दुल्ला अपने पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के विपरीत हैं। शेख अब्दुल्ला ने 1953 की गिरफ्तारी के बाद जनमत संग्रह शुरू किया और लंबे प्रतिरोध की बुनियाद रखी। लेकिन अब्दुल्ला मौजूदा हालात के साथ सामंजस्य कायम कर सकते हैं।”

एनसी के पूर्व विधायक कबीर पठान इसे अपमानजनक मानते हैं। वे कहते हैं, “उन्होंने एक-के-बाद एक हमारा अपमान किया। वे अनुच्छेद 370, 35ए को हटा चुके हैं और राज्य को केंद्रशासित प्रदेशों में बांट चुके हैं। उन्होंने डॉ. फारूक अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया है। हम इस सबके साथ कैसे सामंजस्य बिठाएंगे?”

महबूबा मुफ्ती

महबूबा मुफ्ती खुले तौर पर भाजपा के साथ गठबंधन को “जहर का प्याला” बताएंगी। वे अक्सर कहती रही हैं कि अगर केंद्र ने अनुच्छेद 370 को हटाया, तो जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ संबंध खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा था कि अगर केंद्र अनुच्छेद को खत्म करता है तो देश को जम्मू-कश्मीर के साथ नियम और शर्तों पर फिर से बातचीत करनी होगी। महबूबा अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के तीन महीने बाद 2016 में मुख्यमंत्री बनीं और जानकारों का कहना है कि वे मौजूदा हालात से आसानी से सहमत नहीं होंगी। अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद उनका आखिरी ट्वीट यह था कि भारत को अब जम्मू-कश्मीर में “कब्जा करने वाली ताकत” के रूप में देखा जाएगा। यह उस रास्ते के लिए पर्याप्त संकेत है कि उनका अगला कदम क्या हो सकता है।

एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है, “भाजपा ने एनसी, पीडीपी और अन्य के पास विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं छोड़ा है। शाह फैसल ने कहा है कि कश्मीर में भारत समर्थक पार्टियों के लिए यही विकल्प बचता है कि या तो वे अलगाववादी हो जाएं या कठपुतली बन जाएं। मुझे लगता है कि स्थापित दलों में से कोई भी खुद को कश्मीर में कठपुतली के रूप में नहीं देखना चाहेगा।”

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Mainstream politics, kashmir, mehbooba mufti, omar abdullah
OUTLOOK 07 September, 2019
Advertisement