मणिपुर की भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने के फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है एनपीपी, जाने क्या रखी है शर्त
हाल ही में मणिपुर की भाजपा नीत सरकार से समर्थन वापस लेने वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने गुरुवार को कहा कि अगर भाजपा मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाती है तो पार्टी अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है।
एनपीपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष युमनाम जॉयकुमार सिंह ने भी कहा कि पार्टी के सात विधायकों में से तीन ने मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में भाग लिया, लेकिन उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योंकि सरकार से समर्थन वापस ले लिया गया था।
हालांकि, रविवार को समर्थन वापस लेने का भाजपा नीत सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि 60 सदस्यीय सदन में भगवा पार्टी के पास अपने 32 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत है। नागा पीपुल्स फ्रंट और जेडी(यू) भी सत्तारूढ़ गठबंधन में हैं।
जॉयकुमार सिंह ने पीटीआई को बताया, "मुख्यमंत्री बीरेन सिंह मणिपुर में सामान्य स्थिति लाने में पूरी तरह विफल रहे हैं। यही मुख्य कारण है कि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष (मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा) ने राज्य से समर्थन वापस ले लिया। अगर बीरेन को हटा दिया जाता है, तो संभावना है कि नई सरकार सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी। एनपीपी उस समय अपने रुख पर पुनर्विचार कर सकती है।"
उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 18 नवंबर को हुई बैठक में एनपीपी के तीन विधायक "भ्रम" के कारण शामिल हुए होंगे। एनपीपी उपाध्यक्ष ने कहा "बैठक एनडीए विधायकों के लिए थी। हमने बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया है, लेकिन हम अभी भी एनडीए के सहयोगी हैं। हालांकि, हमने अपने विधायकों को आगाह किया है कि राज्य या राष्ट्रीय अध्यक्ष की पूर्व स्वीकृति के बिना ऐसी बैठकों में भाग लेने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।"
18 नवंबर की बैठक में अनुपस्थित रहे एनडीए विधायकों को भेजे गए नोटिसों पर मीडिया रिपोर्टों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि एनपीपी विधायकों को ऐसा कुछ भेजा गया था। जॉयकुमार सिंह ने कहा"बैठक में एनपीपी के तीन विधायक मौजूद थे, जबकि चार नहीं थे। हमें बीरेन सिंह द्वारा भेजे गए किसी भी नोटिस के बारे में जानकारी नहीं है। उन्होंने भाजपा विधायकों को नोटिस भेजे होंगे, लेकिन यह उनका आंतरिक मामला है। उनके पास एनपीपी विधायकों को नोटिस भेजने का कोई अधिकार नहीं है।"
राज्य में बढ़ती हिंसा के कारण केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की अतिरिक्त 50 कंपनियों को तैनात करने के केंद्र के फैसले पर उन्होंने कहा, "मेरा आकलन है कि सुरक्षा बलों की और तैनाती की आवश्यकता नहीं है। राज्य पहले से ही सुरक्षा बलों से भरा हुआ है और सवाल यह है कि उनका प्रभावी ढंग से उपयोग कैसे किया जाए।" मणिपुर के पूर्व पुलिस महानिदेशक जॉयकुमार सिंह ने कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लगता है कि विधायकों और मंत्रियों के आवासों की सुरक्षा के लिए सीएपीएफ की अतिरिक्त कंपनियां भेजी गई हैं।
हाल ही में प्रदर्शनकारियों ने मणिपुर में कई मंत्रियों और विधायकों के आवासों पर हमला किया। पिछले सप्ताह जिरीबाम में विस्थापित व्यक्तियों के लिए बने शिविर से छह लोगों - तीन मैतेई महिलाओं और तीन बच्चों - के लापता होने के बाद मणिपुर में विरोध प्रदर्शनों की एक नई लहर देखी गई है। यह घटना सशस्त्र लोगों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी के बाद हुई, जिसमें 10 कुकी युवकों की मौत हो गई। पिछले साल मई से इम्फाल घाटी स्थित मैतेई और आसपास के पहाड़ों पर स्थित कुकी-जो समूहों के बीच जातीय हिंसा में 220 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं।