सीएए से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे असम के छात्र, केंद्र को नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने असम स्टूडेंट्स यूनियनों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। दो यूनियनों ने बंगाल ईस्टर्न रेगुलेशन (बीईएफआर), 1873 में संशोधन करने वाले राष्ट्रपति के उस आदेश को चुनौती दी है जिसके जरिये राज्य को नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) से सुरक्षा के लिए बीईएफआर के तहत इनर-लाइन परमिट सिस्टम के इस्तेमाल से रोका गया है। आइएलपी के तहत पूर्वोत्तर के चार राज्यों के अतिरिक्त तीन अन्य राज्यों के कुछ स्वायत्तता प्राप्त आदिवासी क्षेत्रों और जिलों में स्थानीय नागरिकों को सुरक्षा मिलती है। लेकिन राष्ट्रपति के आदेश के कुछ जिलों को आइएलपी से बाहर कर दिया गया है।
अंतरिम स्टे देने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और हृषिकेश रॉय की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये मामले की सुनवाई की। लेकिन कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए एकपक्षीय स्टे ऑर्डर जारी करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करके मामले की सुनवाई के लिए दो सप्ताह आगे की तारीख तय की है।
आइएलपी वाले राज्यों में दूसरे राज्यों के निवासियों सहित सभी बाहरी लोगों को आने के लिए अनुमति लेनी होती है। आइएलपी सिस्टम में स्थानीय लोगों को जमीन, नौकरी और अन्य सुविधाओं में सुरक्षा मिलती है। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने स्टूडेंट्स यूनियंस की ओर से कहा कि यह मामला इनर-लाइन परमिट सिस्टम का है। अदालत को केंद्र को सुने बिना अंतरिम स्थगनादेश जारी कर देना चाहिए। लेकिन बेंच ने इसके लिए इनकार कर दिया।
स्टूडेंट्स यूनियन की आपत्तियां
ऑल ताई आहोम स्टूडेंट्स यूनियन और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद ने बीईएफआर को संशोधित करने वाले राष्ट्रपति के 31 दिसंबर, 2019 के आदेश को असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि राष्ट्रपति को इस तरह का आदेश जारी करने का अधिकार संविधान लागू होने के बाद तीन साल के भीतर ही था।
दोनों यूनियनों ने मांग की है कि सीएए को लागू किए जाने खासकर बांग्लादेश से आए लोगों से सुरक्षा देने के लिए राज्य में आइएलपी सिस्टम लागू किया जाए। असम की कई स्टूडेंट्स यूनियन सीएए का विरोध कर रहे हैं। वे बीईएफआर के तहत आइएलपी लागू करवाना चाहते हैं। उनका कहना है कि असम के अविभाजित जिलों में यह सिस्टम बहुत आवश्यक है।
असम के इन जिलों को बाहर किया
राष्ट्रपति ने पिछले साल 11 दिसंबर को इस आदेश पर हस्ताक्षर करके आइएलपी का मणिपुर में भी विस्तार कर दिया है। अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम में आइएलपी पहले से ही लागू है। ऑल ताई आहोम स्टूडेंट्स यूनियन ने अपनी याचिका में कहा है कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 372 (2) के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके बीईएफआर (आइएलपी) के दायरे से असम के जिले कामरूप, दरांग, नौगोंग, शिवसागर, लखीमपुर और काचेर को हटा दिया। इस आदेश को सीएए को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने से ठीक एक दिन पहले जारी किया गया। इस तरह राज्य इन जिलों में बाहरी लोगों को आने से रोक नहीं सकता है।
सीएए पर सरकार ने दिया था आश्वासन
आइएलपी का उद्देश्य देश के बाहरी हिस्सों की आबादी बढ़ने से रोकने और इन तीन राज्यों में स्थानीय लोगों को संरक्षण प्रदान करना है। सीएए पारित होने के बाद समूचे पूर्वोत्तर में भारी विरोध होने लगा। इस पर सरकार ने आश्वासन दिया कि संशोधित कानून आइएलपी वाले राज्यों और संविधान की छठी सूची में दर्ज क्षेत्रों में लागू नहीं होगा। असम, मेघालय और त्रिपुरा के कुछ आदिवासी क्षेत्र छठी सूची में शामिल हैं, जहां स्वायत्त परिषद और जिलों में कुछ खास कार्यकारी और विधायी शक्तियां दी गई हैं।