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29 December 2018

2019 में मोदी की कठिन राह, साढ़े चार सालों में इतना बिखरा एनडीए

File Photo

पिछले कई दिनों से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में उठापटक की खबरें चल रही हैं। पिछले साढ़े चार साल में मोदी सरकार से कई दल नाराज दिखे हैं। कुछ एनडीए से अलग हो गए तो कुछ आजकल भी अपने तेवर दिखा रहे हैं। जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं तो भाजपा के लिए यह कतई अच्छी खबर नहीं मानी जा सकती।

शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी के गाजीपुर कार्यक्रम का अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने बहिष्कार किया है। वहीं, बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा एनडीए से अलग हो गई। भाजपा ने रामविलास पासवान को लेकर भी डैमेज कंट्रोल किया। चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी पहले ही एनडीए से अलग हो चुकी है। शिवसेना भी बीच-बीच में भाजपा पर निशाना साधती रहती है।

2014 जैसा करिश्मा दोहराना मुश्किल?

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2014 आम चुनाव में भाजपा ने अकेले दम पर बहुमत हासिल कर लिया था। पार्टी ने बहुमत के लिए जरूरी 272 से दस सीटें ज्यादा हासिल की थी। भाजपा की 282 सीटों में सहयोगियों की 54 सीटें जोड़ने पर 335 का आंकड़ा बना था।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा अकेले दम पर बहुमत लाने में असफल हो सकती है। ऐसे में इस तरह बिखरे हुए कुनबे के साथ एनडीए का सफर कठिन हो सकता है। आज की तारीख में भाजपा ये दावा नहीं कर सकती कि चुनाव में उसके सभी सहयोगी एनडीए की छतरी तले ही रहेंगे।

इन दलों ने किया एनडीए से किनारा

टीडीपी

आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के तेवर तीखे थे। चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा के रवैये को ‘’अपमानजनक और दुख पहुंचाने वाला’’ बताया था और खुद को एनडीए से अलग कर लिया था।

रालोसपा

पिछले दिनों बिहार में रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए से अलग होकर महागठबंधन का दामन थामा था। रालोसपा ने 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन करके लड़ा था और तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भाजपा के हाथ मिलाने के साथ ही दोनों दलों के बीच तनाव शुरू हो गया था और 2019 के लोकसभा चुनाव में कुशवाहा को दो सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया था। इसके बाद ही वह एनडीए से अलग हो गए थे।

इन्होंने जताई नाराजगी

लोजपा

हाल ही में लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने ट्वीट के माध्यम से एनडीए से नाराजगी जताई थी, जिसके बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को हस्तक्षेप करना पड़ा। रामविलास पासवान और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने साझा प्रेस कांफ्रेंस कर बिहार में सीट समझौते पर सहमति होने की घोषणा की। समझौते के मुताबिक बिहार की 40 सीटों में से भाजपा 17, जेडीयू 17 और लोजपा 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसके अलावा एनडीए रामविलास पासवान को राज्यसभा में भी भेजेगा। इसे भाजपा का डैमेज कंट्रोल कहा जा सकता है।

अपना दल

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश और केंद्र में गठबंधन के अहम सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने नाराजगी जाहिर की थी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर दावा किया, 'न केवल अपना दल बल्कि बीजेपी के भी कई विधायक, सांसद और मंत्री प्रदेश शासन से नाराज हैं। हमारे जैसे छोटे दल सम्मान चाहते हैं। हम, हमारे नेता और कार्यकर्ताओं को दु:ख होता है जब हमें अपेक्षित सम्मान नहीं मिलता।' उन्होंने उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर भी चिंता जाहिर की।

अपना दल का आरोप है कि केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को उत्तर प्रदेश में वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वे हकदार हैं। यहां तक कि वाराणसी संसदीय क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों में भी अनुप्रिया पटेल को नहीं बुलाया जाता, जबकि यह प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है और अनुप्रिया के संसदीय क्षेत्र से मिर्जापुर से सटा है। आशीष पटेल ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इसी तरह सहयोगी दलों की प्रदेश भाजपा उपेक्षा करती रही तो सोचना पड़ेगा।

शिव सेना

2014 में महाराष्ट्र में 18 लोकसभा सीटें जीतने वाली शिव सेना एनडीए में भाजपा के बाद दूसरा सबसे बड़ा घटक है लेकिन पिछले साढ़े चार सालों से शिव सेना सहयोगी भाजपा को लगातार धौंस दिखाती रही है। चाहे राम मंदिर का मुद्दा हो या राफेल का, शिव सेना भाजपा की अक्सर आलोचना करती रही है।

2014 के आम चुनाव के बाद और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के पहले दोनों अलग भी हुए थे। लगभग हर हफ्ते ही शिव सेना की तरफ से भाजपा को समर्थन देते रहने के मुद्दे पर चेतावनी भरे बयान आना आम बात रही है।

सहयोगियों को कैसे एकजुट रखा जाए, इसके जवाब खुद भारतीय जनता पार्टी को तलाशने होंगे या फिर पार्टी नरेंद्र मोदी की छवि के दम पर 2014 के नतीजे अकेले दोहराने का भरोसा रखे लेकिन ऐसा मुश्किल ही लग रहा है। ऐसे में उसे अपने पुराने सहयोगियों पर ध्यान देना ही पड़ेगा।

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TAGS: Splits, tussles, nda, modi governments
OUTLOOK 29 December, 2018
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